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चतरा में नक्सलियों की सक्रियता बढ़ी, तीन तरफ से घुसा नक्सलियों का दस्ता

रांची: इटखोरी थाना के पास पुलिस गश्ती दल को लैंड माइन ब्लास्ट में उड़ाने के बाद नक्सली चतरा जिला में बड़ी घटना को अंजाम देने की फिराक में हैं. साथ ही पलामू के बाद चतरा में भी उग्रवादी संगठन टीपीसी को भी तगड़ी चोट देने की फिराक में है. सूचना के मुताबिक नक्सलियों का अलग-अलग […]

रांची: इटखोरी थाना के पास पुलिस गश्ती दल को लैंड माइन ब्लास्ट में उड़ाने के बाद नक्सली चतरा जिला में बड़ी घटना को अंजाम देने की फिराक में हैं. साथ ही पलामू के बाद चतरा में भी उग्रवादी संगठन टीपीसी को भी तगड़ी चोट देने की फिराक में है. सूचना के मुताबिक नक्सलियों का अलग-अलग दस्ता तीन तरफ से चतरा में प्रवेश कर चुका है. पुलिस को भी नक्सलियों के प्रवेश करने की सूचना है.

पुलिस लगातार उन्हें रोकने की कोशिश कर रही है, लेकिन नक्सली दस्ते से आमना-सामना नहीं हो रहा है. पुलिस के एक अधिकारी ने इस खबर की पुष्टि करते हुए बताया है कि विधानसभा चुनाव के दौरान व उससे पहले फोर्स ज्यादा थी. इसका फायदा पुलिस को मिला. लेकिन चुनाव के बाद फोर्स के वापस जाने के बाद अचानक नक्सली गतिविधियां बढ़ गयी हैं. सूत्रों के मुताबिक भाकपा माओवादी का जोनल कमांडर सोहन गंझू और सरिता के नेतृत्व में बड़कागांव व केरेडारी की तरफ से नक्सलियों का दस्ता चतरा में प्रवेश कर चुका है.

लातेहार में सक्रिय नक्सली उदय गंझू के नेतृत्व में खलारी-पिपरवार की तरफ से और इंदल और मानस के नेतृत्व में प्रतापपुर की तरफ से नक्सली दस्ता चतरा में पहुंचा है. इसी दस्ते ने पिछले माह इटखोरी थाना के बिल्कुल नजदीक पुलिस गश्ती दल को लैंड माइन ब्लास्ट में उड़ा दिया था. जिसमें एक हवलदार की मौत हो गयी थी और तीन जवान घायल हो गये थे. जांच में यह तथ्य सामने आया है कि नक्सलियों ने इस घटना को अंजाम देने के लिए उसी दिन लैंड माइन लगायी थी. मतलब यह कि नक्सली दस्ते के साथ लैंड माइन लगाने और उसे विस्फोट करानेवाला विशेषज्ञ भी है.

लेवी को लेकर है झगड़ा

खुफिया एजेंसी से जुड़े अधिकारियों की समीक्षा में यह तथ्य सामने आया है कि वर्ष 2006 में जब माओवादी संगठन से टूट कर टीपीसी संगठन बना, तब चतरा में माओवादियों के पैर उखड़ गये. जिसके बाद टंडवा व पिपरवार इलाके के कोयला कारोबारियों से टीपीसी के उग्रवादी लेवी वसूलने लगे. नक्सलियों की नजर लेवी की इसी राशि पर है. हाल में राजनीतिक और आर्थिक कारणों से टीपीसी में फूट पड़ी है. नक्सलियों के निशाने पर टंडवा-पिपरवार की एक कोल कंपनी और उसके ट्रांसपोर्टर भी हैं.

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