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अब दिल्ली नहीं जाना चाहती सिनगी

झारखंड से हर साल बड़ी संख्या में लड़कियां ट्रैफिकिंग की शिकार होती हैं. दलाल इन्हें बेहतर जिंदगी व नौकरी का लालच देकर महानगरों में भेजने का काम करते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी और रोजगार का अभाव है. इसका फायदा दलाल उठाते हैं. कई लड़कियां परिजनों की धोखाधड़ी की भी शिकार होती हैं. संवाददातारांची : […]

झारखंड से हर साल बड़ी संख्या में लड़कियां ट्रैफिकिंग की शिकार होती हैं. दलाल इन्हें बेहतर जिंदगी व नौकरी का लालच देकर महानगरों में भेजने का काम करते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी और रोजगार का अभाव है. इसका फायदा दलाल उठाते हैं. कई लड़कियां परिजनों की धोखाधड़ी की भी शिकार होती हैं. संवाददातारांची : सिमडेगा निवासी सिनगी टोपनो (बदला हुआ नाम) सातवीं कक्षा तक पढ़ी है. उसके पिता किसान हैं. ज्यादा उपज नहीं होने की वजह से घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. सातवीं के बाद घर की स्थिति को देखते हुए सिनगी को बाहर निकलना पड़ा. अपने पिता के एक परिचित के साथ सिनगी दिल्ली चली गयी. वहां उसने दो हफ्ते तक एक घर में काम किया. सुबह से शाम उससे घर का काम करवाया जाता था. जब तक सिनगी कोठी में रही, उसे कभी भी चैन से बैठने नहीं दिया गया. हमेशा कुछ न कुछ काम करते रहना पड़ता था. थक जाने के बाद भी उसे आराम नहीं करने दिया जाता था. दिल्ली में सिनगी के समक्ष भाषा की भी समस्या थी. सिनगी ने कहा कि मालकिन हर काम में गलती निकाल कर डांटती थी. अक्सर मार भी पड़ती थी. प्रताड़ना से तंग आकर वह घर से भाग गयी. किसी तरह वह दिल्ली रेलवे स्टेशन तक पहंुची. वहां वह भटक रही थी, तभी उसे पुलिस ने पकड़ लिया. पुलिस ने उसे भारतीय किसान संघ के ट्रांजिट होम में भेज दिया. उसके बाद वह रांची पहंुची. फिलहाल वह भारतीय संघ के बीजूपाड़ा स्थित ट्रांजिट होम में रह रही है. जल्द ही उसे सिमडेगा स्थित घर भेजा जायेगा. दिल्ली का अनुभव सिनगी के लिए इतना कड़वा रहा है कि वह अब कभी भी वहां नहीं जाना चाहती.

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