फोटो—अमित कम उम्र में होता है सरकोमा कैंसर राज अस्पताल व राम जनम सुलक्षणा कैंसर अस्पताल का सेमिनार संवाददाता, रांची मांसपेशियों के ट्यूमर को हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि यह कैंसर का रूप हो सकता है. इसे सरकोमा कैंसर कहा जाता है. शुरू में यह गांठ छोटे रूप में होता है, जो पैर एवं हाथ में होता है. लेकिन धीरे-धीरे यह गांठ बड़ा रूप ले लेता है. इसमें दर्द भी नहीं होता है. उक्त बातें शनिवार को बीएनआर चाणक्या में राज अस्पताल एवं राम जनम सुलक्षणा कैंसर अस्पताल के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सेमिनार में कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ अनामिका कुमारी ने कही. उन्होंने बताया कि गांठ को ऑपरेशन कर निकाला जाता है एवं जांच के लिए भेजा जाता है. अगर कैंसर निकलता है, तो आवश्यकता के अनुसार रेडियोथैरेपी से इलाज किया जाता है. सही समय पर इलाज शुरू हो जाने से यह पूरी तरह ठीक हो जाता है. कैंसर विशेषज्ञ डॉ प्रभात कुमार रैना ने कहा कि सरकोमा कैंसर 15 से 25 साल की युवा उम्र में या 50 साल की उम्र में होता है. अगर कम उम्र में मरीज इलाज के लिए आ जाते हैं, तो उन्हें पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है. यह भ्रांति है कि रेडियोथेरेपी का शरीर पर बहुत विपरीत प्रभाव होता है. कार्यक्रम में शहर के कई चिकित्सक मौजूद थे.
मांसपेशियों के ट्यूमर को हल्के में न लें
फोटो—अमित कम उम्र में होता है सरकोमा कैंसर राज अस्पताल व राम जनम सुलक्षणा कैंसर अस्पताल का सेमिनार संवाददाता, रांची मांसपेशियों के ट्यूमर को हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि यह कैंसर का रूप हो सकता है. इसे सरकोमा कैंसर कहा जाता है. शुरू में यह गांठ छोटे रूप में होता है, जो पैर एवं […]
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