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यूपीए सरकार भी चाहती थी संस्कृत को अनिवार्य बनाना

तत्कालीन मंत्री पल्लम राजू ने सीबीएसइ को दिया था निर्देशनयी दिल्ली. केंद्रीय विद्यालयों में जर्मन की जगह संस्कृत पढ़ाये जाने के लेकर वर्तमान सरकार पर विरोधी हमले कर रहे हैं, जबकि पिछली यूपीए सरकार ने भी संस्कृत को 10वीं तक अनिवार्य रूप से पढ़ाने की दिशा में कोशिश की थी. तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री […]

तत्कालीन मंत्री पल्लम राजू ने सीबीएसइ को दिया था निर्देशनयी दिल्ली. केंद्रीय विद्यालयों में जर्मन की जगह संस्कृत पढ़ाये जाने के लेकर वर्तमान सरकार पर विरोधी हमले कर रहे हैं, जबकि पिछली यूपीए सरकार ने भी संस्कृत को 10वीं तक अनिवार्य रूप से पढ़ाने की दिशा में कोशिश की थी. तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री पल्लम राजू ने सीबीएसइ को नोट भेज कर सभी सेकेंड्री स्कूलों में ऐसा करने के लिए रास्ता निकालने का निर्देश दिया था. मंत्रालय के छह दिसंबर, 2013 के नोट में निर्देश दिया गया था कि लखनऊ में सितंबर 2013 में आधुनिक युग में संस्कृत के महत्व पर आयोजित सेमिनार में पारित किये गये प्रस्ताव को लागू करने के लिए तरीका निकाला जाये. इस सेमिनार में 10वीं तक संस्कृत को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाये जाने का प्रस्ताव पारित किया गया था. लखनऊ में तीन दिन के सेमिनार का उदघाटन राजू ने किया था और उस समय केंद्रीय राज्य मंत्री जतिन प्रसाद और कांग्रेस नेता कर्ण सिंह भी इसमें मौजूद थे. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने मंत्रालय के नोट के हवाले से लिखा है, नेशनल सेमिनार का आयोजन लखनऊ में 13 से 15 दिसंबर को हुआ था, जिसमें यह सहमति बनी थी कि संस्कृत को 10वीं तक पढ़ाना अनिवार्य किया जाये. हालांकि, जब अखबार ने राजू से संपर्क किया तो उन्होंने इस बात से इनकार कर दिया कि उनका इरादा संस्कृत को अनिवार्य विषय बनाने का था. उन्होंने कहा कि वह इसे वैकिल्पक विषय बनाना चाहते थे, लेकिन महसूस हुआ टीचर इसके लिए पर्याप्त नहीं थे. राजू ने कहा कि वह भाषा को मजबूत बनाना और वेदों में बंद वैज्ञानिक ज्ञान को दुनिया के सामने फिर से लाना चाहते थे.

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