बना के क्यों बिगाड़ा रे…बना के क्यों बिगाड़ा रे…बिगाड़ा रे नसीबा …ऊपरवाले…इन दिनों रांची के एक प्रत्याशी यही गीत गा रहे हैं. अपने नेताजी व पार्टी सुप्रीमो से यही सवाल कर रहे हैं कि जब मदद नहीं करनी थी, तो प्रत्याशी काहे बना दिये. टिकट पा के जिंदगी की एक मंजिल तो मिल गयी, लेकिन अब असली मंजिल दूर लगती है. दरअसल नेता जी को भी मालूम है कि जो कुछ हो रहा है, वह टाइम पास है. इसको गांधी मैदान में बइठ के चिनिया बेदाम खाना भी बोलते हैं. इसमें ज्यादा लगाना बुड़बकइ है. गोइठा में घी सुखाना, समझदारी थोड़े है. इसलिए वह माल पर कुंडली मार कर बइठ गये हैं. इधर, भाई साहब भकुआल हैं. चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है. उनकी आर्थिक बेचैनी बढ़ रही है. किससे कहें, का कहें. टेंपो से परचार करवा रहे हैं. मंगलवार राते का बात है. उनका मूड खराब था. एतने मे एगो टेंपो वाला फोन कर दिया….भैया…..(भाई साहब पहले से गरमाएल थे)….का रे….भैया टेंपो में तेलवा खतम हो गया…..त हम का करें….भैया त अब का करें….कहां हो…भैया अभी तो कांटाटोली में फंसल हैं..त हुएं टेंपो खड़ा करके आर परचरवा करते रहो. टेंपो वाला भी समझ गया कि असली नेता से पाला है. इधर भाई साहब की परेशानी दूर होने के बजाय धीरे-धीरे बढ़ रही है. राम जाने का होगा.
बना के क्यों बिगाड़ा रे…(कानाफूसी)
बना के क्यों बिगाड़ा रे…बना के क्यों बिगाड़ा रे…बिगाड़ा रे नसीबा …ऊपरवाले…इन दिनों रांची के एक प्रत्याशी यही गीत गा रहे हैं. अपने नेताजी व पार्टी सुप्रीमो से यही सवाल कर रहे हैं कि जब मदद नहीं करनी थी, तो प्रत्याशी काहे बना दिये. टिकट पा के जिंदगी की एक मंजिल तो मिल गयी, लेकिन […]
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