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मानव मन में अब सेवा की भावना नहीं

कोलकाता के प्रसिद्ध लेखक संजीव चटर्जी ने साहित्य सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आज मनुष्य भोग के पीछे भाग रहा है. उसके मन में अब सेवा का भाव नहीं रहा. वह समाज से कट रहा है. उसका एकमात्र मकसद सिर्फ अपने लिए ही कुछ करना है. श्री चटर्जी ने कहा कि मनुष्य अपनी […]

कोलकाता के प्रसिद्ध लेखक संजीव चटर्जी ने साहित्य सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आज मनुष्य भोग के पीछे भाग रहा है. उसके मन में अब सेवा का भाव नहीं रहा. वह समाज से कट रहा है. उसका एकमात्र मकसद सिर्फ अपने लिए ही कुछ करना है. श्री चटर्जी ने कहा कि मनुष्य अपनी सुविधा के लिए करोड़ों के गाड़ी व बंगला खरीद सकता है परंतु वह किसी बीमार के मदद के लिए हजार रुपया भी खर्च नहीं करता है. महिलाएं इस धरती की आवरण हैं. वे एक मां, बहन, बेटी, बहू सभी रूपों में बेहतर काम कर रही हैं. परंतु समाज में आज भी महिलाओं के साथ दोयम दरजे का व्यवहार हो रहा है. हमें इसको बदलने की जरूरत है.

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