रांची : कनीकी ज्ञान को अपनाकर ही गांवों का विकास संभव है़ इसी बात को ध्यान में रखते हुए ग्रामीणों को तकनीकी ज्ञान प्रदान करने का काम केजीवीके कर रहा है़ अबतक जिन गांवों में ऐसा किया गया, वहां के ग्रामीणों को कई तरह के फायदे मिल रहे हैं़ केजीवीके के वाइस प्रेसिडेंट बृजकिशोर झवर ने ये बातें कहीं.
उन्होंने शुक्रवार को बुंडू प्रखंड के मधुकामा व बडकोलमा गांवों का दौरा किया. वहां श्रीविधि से हुई धान की खेती की जानकारी ली़ ग्रामीण महिलाओं व बच्चों से स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, पेयजल, खाद्य व पोषण सुरक्षा, आयवृद्घि से जुड़े क्रिया कलापों की जानकारी ली और कई महत्वपूर्ण सुझाव दिये. बीएयू व हार्प पलांडू में मौजूद कृषि व इससे जुड़े तकनीकी ज्ञान का लाभ ग्रामीणों तक पहुंचाने का भी आह्वान किया़. इस अवसर पर केएल चौधरी, डीएल मिश्र, डॉ मयंक मुरारी, डॉ नवीन, सुरेंद्र सिंह, अंजली नायर समेत कई केजीवीके कर्मी मौजूद थ़े
अब बच्चों के पेट को हंसुए से नहीं दागा जाता
केजीवीके की पहल पर स्वास्थ्य जागरूकता के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किये गये हैं. ग्रामीण रविंद्र महतो व सहिया प्रमिला देवी ने बताया कि गर्भवती महिलाओं की देखभाल के लिए कोहोर्ट चार्ट का पालन पूरी तरह किया जा रहा है़ सौ फीसदी संस्थागत प्रसव व टीकाकरण का कार्य हो रहा है़ गांव में एक भी कुपोषित बच्च नहीं है. किशोरियों के लिए आयोजित जागरूकता कार्यक्रम के बाद अब किशोरियों को आयरन की गोली नियमित रूप से दी जाती है. ग्रामीणों के अंधविश्वास में भी कमी आई है. अब शिशुओं को पेट संबंधी रोगों से बचाने के लिए गर्म हंसुए से दागा नहीं जाता. जागरूकता कार्यक्रम से इस मामले में कमी आयी है़
श्रीविधि अपनानेवाले किसानों की संख्या बढ़ी
बुंडू के बडकोलमा व मधुकामा समेत दर्जनों गांवों में केजीवीके की पहल से श्रीविधि तकनीक का प्रचार प्रसार हुआ़ है. इस विधि को अपनानेवाले किसानों की संख्या में हर वर्ष गुणात्मक दर से वृद्घि हो रही है़ मधुकामा में श्रीविधि से धान की खेती करनेवाले पहले किसान करमा मुंडा ने बताया कि उन्होंने पहली बार 2007 में श्रीविधि को अपनाया. उत्पादन में दोगुना से अधिक लाभ को देखते हुए वर्ष 2008 में गांव के पांच अन्य किसानों ने इस तकनीक को अपनाया़ वर्ष 2014 की खरीफ फसल के दौरान गांव के 128 में से 118 किसानों ने श्रीविधि तकनीक को अपनाया है. बडकोलमा के दुर्लभ महतो व शारदा महतो ने कहा कि उनके गांव में 2008 में श्रीविधि तकनीक से खेती की शुरुआत की गई़ छह वर्षो में यहां के 250 में से 180 किसान इस तकनीक को अपना चुके हैं.