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यहां आम है आना-जाना व भाग जाना

….संदर्भ की कुछ तसवीर लग सकती हैझारखंड में सरकार बनाना, बचाना और गिरानाआने वाला फिर आयेगा, जाने वाला फिर जायेगासंजय रांचीझारखंड की राजनीति में नेताओं-प्रत्याशियों का ऐन वक्त पर आज यहां, कल वहां होना नया चलन है. टिकट मिलने के बाद पार्टी बदल लेने का कीर्तिमान नेताओं ने अब बनाया है, पर जीत जाने के […]

….संदर्भ की कुछ तसवीर लग सकती हैझारखंड में सरकार बनाना, बचाना और गिरानाआने वाला फिर आयेगा, जाने वाला फिर जायेगासंजय रांचीझारखंड की राजनीति में नेताओं-प्रत्याशियों का ऐन वक्त पर आज यहां, कल वहां होना नया चलन है. टिकट मिलने के बाद पार्टी बदल लेने का कीर्तिमान नेताओं ने अब बनाया है, पर जीत जाने के बाद विधायकों का कहीं आना-जाना या भाग जाना यहां आम बात है. यह सब सरकार बनाने, बचाने या फिर नयी सरकार बनाने के लिए होता रहा है. सबसे पहले बाबूलाल जी की सरकार गिराने के लिए विधायक भागे थे. तारीख थी 16 मार्च 2003. तब यूपीए (झामुमो, राजद व जदयू) के विधायक कृष्णा रथ पकड़ कर बुंडू चले गये थे. बुंडू में खाने-खेलने (लूडो, ताश व चेस) के बाद 17 मार्च को इन विधायकों को खजाना मिल गया. मुख्यमंत्री बाबूलाल चले गये और अर्जुन मुंडा आ गये. वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव के बाद फिर सरकार बनाने का खेल शुरू हुआ, तब के राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने शिबू सोरेन को सरकार बनाने का न्योता दिया. इससे खफा एनडीए दिल्ली चला गया. हुजूर अन्याय हो रहा है का भाव लिये राष्ट्रपति के समक्ष एनडीए विधायकों की परेड करवायी गयी. लालकृष्ण आडवाणी भी साथ थे. दिल्ली के बाद यह कुनबा जयपुर गया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर यूपीए को बहुमत साबित करने को कहा गया. पर ऐन मौके पर कमलेश सिंह व जोबा ने धोखा दिया. कमलेश बीमार होने चले गये व जोबा ने गाड़ी पंक्चर करवा ली. बहुमत साबित करने के दिन दोनों सदन नहीं पहुंचे. बाद में फिर अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने. अब बारी झारखंड की राजनीति को विशेष पहचान दिलाने वाले मधु कोड़ा की थी. कोड़ा मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा व सुदेश महतो से नाराज चल रहे थे. वह दिल्ली चले गये. उनकी टीम में शामिल एनोस एक्का व हरिनारायण राय ने भी प्लेन पकड़ लिया. यह तीनों तो इंद्रप्रस्थ पहुंच गये, पर भागते हुए कमलेश जमशेदपुर में धरा गये, फिर यह टीम देशाटन पर निकल पड़ी और लौट कर सरकार गिरा दी. आने-जाने के क्रम में किसी-किसी की किस्मत में इंतजार भी लिखा था. रघुवर दास व शिबू सोरेन 28 दिसंबर 2009 का दिन नहीं भूले होंगे. सुदेश के इंतजार में और खास कर उनसे संपर्क न होने से इन दोनों की हालत पतली हो गयी थी. एयरपोर्ट पर विशेष विमान खड़ा था. इधर, खेल बिगड़ने का खौफ जारी था. रघुवर एक घंटे व इनके आधे घंटे बाद एयरपोर्ट पहुंचे शिबू सुदेश महतो के इंतजार में बैठे रहे. आखिरी वक्त में सुदेश, हेमंत व अन्य के साथ एयरपोर्ट पहुंचे. फिर सब मुंबई-दिल्ली उड़ गये. कभी-कभी किसी का आना बड़ा सुहाना लगता है. राजभवन में सरकार बनाने की अपनी गिनती पूरी करते (आठ सितंबर, 2010) यूपीए को अकील अख्तर का आना भी बड़ा प्रिय लगा था. कुछ ऐसा कि अख्तर के वहां पहुंचते ही तालियां बजने लगी थी. इसके साथ ही संख्या हो गयी थी 43. फिर साइमन आये और संख्या हो गयी 44. ताली बजाने का एक और मौका नौ जुलाई 2013 को भी मिला था. मधु जी की धर्मपत्नी गीता कोड़ा को मनाने की भरपूर कोशिश यूपीए ने की थी. वह मान गयीं, फिर शाम को वह जब राजभवन पहुंची, तो विधायकों ने खुशी से तालियां बजायी. किसी के आने का इंतजार सदन में भी हुआ है. हेमंत सरकार को विश्वास मत हासिल करना था. असमंजस की स्थिति थी. अलग-अलग मामलों में फरार सीता सोरेन व नलिन सोरेन अपना मत देने आयेंगे या नहीं, यह कयास लगाया जा रहा था, पर साहब ये दोनों सदन पहुंच गये. हॉर्स ट्रेडिंग मामले में फंसी सीता तो सदन शुरू होने से पहले ही वहां हाजिर थीं. यही नहीं, एक हत्या कांड के मामले में जेल में बंद खिजरी विधायक सावना लकड़ा भी कोर्ट से अनुमति लेकर पुलिस कस्टडी में सदन पहुंच गये और सरकार बच गयी. बीज घोटाले में फरार चल रहे नलिन ने विश्वास मत में हिस्सा लेकर खुद को सरेंडर कर दिया था.

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