नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने बिहार के विभिन्न विश्वविद्यालयों में सहायक प्रोफेसर के 3364 पदों पर नियुक्तियों के लिए जारी विज्ञापन को निरस्त करने की मांग करनेवाली एक याचिका पर बिहार सरकार और बिहार लोक सेवा आयोग से जवाब मांगा है. इस याचिका में कहा गया है कि विज्ञापन में नि:शक्त वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए तीन फीसदी अनिवार्य आरक्षण के प्रावधान को पूरा नहीं किया गया है, इसलिए इसे निरस्त कर दिया जाना चाहिए. न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन और न्यायमूर्ति प्रफुल्ल सी पंत की खंडपीठ ने गैरसरकारी संगठन ‘सोसायटी फॉर डिसेबिलिटी एंड रिहैबिलिटेशन स्टडीज’ के अध्यक्ष जीएन कर्ण की ओर से दायर याचिका पर यह नोटिस जारी किया. राज्य सरकार और बिहार लोक सेवा आयोग को एक सप्ताह में जवाब देना है. साथ ही न्यायालय ने टिप्पणी की कि यह याचिका पटना हाइकोर्ट में दायर की जा सकती थी. याचिका में आरोप लगाया गया है कि राज्य सरकार और राज्य लोक सेवा आयोग ने नि:शक्त व्यक्तियों (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) कानून के प्रावधानों और शीर्ष अदालत के फैसलों का पालन नहीं किया है, जिनमें नि:शक्त व्यक्तियों के लिए तीन फीसदी आरक्षण की व्यवस्था है. याचिका में नि:शक्त वर्ग के लिए तीन फीसदी आरक्षण का प्रावधान नहीं करने के आधार पर राज्य लोक सेवा आयोग के 13 सितंबर के विज्ञापन को निरस्त करने का अनुरोध किया गया है. इस विज्ञापन के माध्यम से बिहार में विश्वविद्यालयों में सहायक प्रोफेसर के 3364 पदों पर नियुक्तियों के लिए आवेदन आमंत्रित किये गये हैं.
नि:शक्त व्यक्तियों को आरक्षण: न्यायालय ने बिहार सरकार और राज्य लोकसेवा आयोग से मांगा जवाब
नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने बिहार के विभिन्न विश्वविद्यालयों में सहायक प्रोफेसर के 3364 पदों पर नियुक्तियों के लिए जारी विज्ञापन को निरस्त करने की मांग करनेवाली एक याचिका पर बिहार सरकार और बिहार लोक सेवा आयोग से जवाब मांगा है. इस याचिका में कहा गया है कि विज्ञापन में नि:शक्त वर्ग के अभ्यर्थियों के […]
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