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अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन. नेहरू की विरासत को मिटाने का भाजपा पर सोनिया ने लगाया आरोप, कहा

धर्मनिरपेक्षता भारत के लिए अकाट्य जरूरतएजेंसियां, नयी दिल्लीकांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की विरासत को दृढ़तापूर्वक सामने रखने का प्रयास किया. प्रकारांतर से भाजपा पर हमला करते हुए सोनिया ने सोमवार को कहा कि उनके (नेहरू के) विचारों पर खतरा पैदा हो गया है, क्योंकि तथ्यों को गलत […]

धर्मनिरपेक्षता भारत के लिए अकाट्य जरूरतएजेंसियां, नयी दिल्लीकांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की विरासत को दृढ़तापूर्वक सामने रखने का प्रयास किया. प्रकारांतर से भाजपा पर हमला करते हुए सोनिया ने सोमवार को कहा कि उनके (नेहरू के) विचारों पर खतरा पैदा हो गया है, क्योंकि तथ्यों को गलत ढंग से रखा जा रहा है और तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है. उन्होंने धर्मनिरपेक्षता की अकाट्य जरूरत पर भी जोर दिया.नेहरू की 125वीं जयंती पर कांग्रेस द्वारा आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री के लिए धर्मनिरपेक्षता और सभी धर्मों के प्रति आदर आस्था का सवाल था. सोनिया ने कहा, ‘धर्मनिरपेक्षता के बिना कोई भारतीयता, कोई भारत नहीं हो सकता,धर्मनिरेपक्षता आदर्श से भी बढ़ कर है और रहेगी. भारत जैसे विविधतापूर्ण देश के लिए यह एक अकाट्य जरूरत है.’सोनिया ने कहा कि नेहरू का यह मत बिल्कुल सही साबित हुआ है कि बहु जातीय, बहु धार्मिक, बहु भाषाई और बहु क्षेत्रीय समाज में सिर्फ संसदीय लोकतंत्र और एक धर्मनिरपेक्ष सरकार ही देश को एकजुट रख सकती है. लोकसभा चुनावों में करारी हार के छह महीने बाद कांग्रेस द्वारा इस तरह का यह पहला आयोजन है. पार्टी के इस आयोजन को सभी गैर भाजपा और गैर एनडीए दलों को धर्मनरपेक्षता की छतरी तले एकजुट करने की कोशिश के रूप में भी देखा जा रहा है.परमाणु करार के मुद्दे पर वाम दलों ने वर्ष 2008 में यूपीए-1 सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, जबकि तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने वर्ष 2012 में यूपीए-2 सरकार से नाता तोड़ लिया था. लेकिन, इस आयोजन में ममता बनर्जी और वामदल दोनों ने हिस्सा लिया.सोनिया ने कहा कि यह सम्मेलन सिर्फ पंडित नेहरू की 125वीं जयंती मनाने भर का नहीं, नेहरू की विरासत की प्रासंगिकता, स्थायित्व और अपरिहार्यता की पुष्टि करने का एक अवसर है. उन्होंने उम्मीद जतायी कि सम्मेलन उस उद्देश्य की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान करेगा.जीत और हार को गरिमा से स्वीकार करना जानते हैंऐसे समय में जब कांग्रेस लोकसभा और उसके बाद विधानसभा चुनाव में सबसे बुरी पराजय से उबरने की कोशिश कर रही है, सोनिया ने नेहरू का हवाला देते हुए कहा, ‘लोकतंत्र में, हम जीत और हार को गरिमा से स्वीकार करना जानते हैं. जो लोग जीते हैं, उन्हें जीत को सिर पर हावी नहीं होने देना चाहिए. जो लोग हारे हैं, उन्हें निरुत्साहित नहीं महसूस करना चाहिए. जीतने और हारने का तरीका चुनाव परिणाम से अधिक महत्वपूर्ण है. गलत तरीके से जीतने से बेहतर सही तरीके से हारना है.’समारोह में दो विषयों ‘समावेशी लोकतंत्र एवं लोक सशक्तिकरण और दुनिया के बारे में नेहरू के विचार’ तथा ’21वीं सदी में लोकतांत्रिक वैश्विक व्यवस्था’ पर चर्चा हो रही है.इन दलों के नेता नहीं आयेनेशनल कॉन्फ्रेंस, द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम, तेलुगू देशम पार्टी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टीये रहे मौजूदडीपी त्रिपाठी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी), ममता बनर्जी (तृणमूल कांग्रेस), शरद यादव (जनता दल यूनाइटेड), प्रकाश करात और सीताराम येचुरी (मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी), डी राजा (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी) और जयप्रकाश नारायण यादव (राष्ट्रीय जनता दल) पता करके बताऊंगायूपीए सरकार में सहयोगी रहे कई नेताओं की गैरमौजूदगी के बारे में आयोजन समिति से जुड़े कांग्रेस नेता एम वीरप्पा मोइली से पूछा गया, तो वह कोई साफ जवाब नहीं दे पाये. कहा कि अभी देख नहीं पाये हैं कि कौन आया और कौन नहीं. बाद में पता करके इसकी जानकारी मीडिया को देंगे. इनको नहीं दिया गया न्योताप्रधानमंत्री समेत भाजपा और एनडीए के नेताओं को न्योता नहीं दिया गयाअन्य देशों के नेता भी आये सम्मेलन मेंसमारोह में अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई, घाना के जॉन कुफूर, नाइजीरिया के जनरल ओबासांजो, नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री माधव नेपाल, भूटान की रानी मां दोरजी बांग्मो वांगचुक, पाकिस्तान की मानवाधिकार कार्यकर्ता अस्मा जहांगीर, दक्षिण अफ्रीका के वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी अहमद काथराडा और दुनिया भर से 11 राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.

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