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उम्मीदों को किल करती किल दिल (फिल्म समीक्षा)

फिल्म : किल दिलकलाकार : गोविंदा, परिणीति चोपड़ा, अली, रणवीर सिंहनिर्देशक : शाद अलीरेटिंग : 2 स्टारशाद अली ने इससे पहले बंटी और बबली और झूम बराबर झूम का निर्माण किया है. उनकी फिल्मों की कहानियों से उनकी शैली का पता चलता है. वे चोर, चोरियों की कहानियां दिखाने में काफी दिलचस्पी रखते हैं. मगर […]

फिल्म : किल दिलकलाकार : गोविंदा, परिणीति चोपड़ा, अली, रणवीर सिंहनिर्देशक : शाद अलीरेटिंग : 2 स्टारशाद अली ने इससे पहले बंटी और बबली और झूम बराबर झूम का निर्माण किया है. उनकी फिल्मों की कहानियों से उनकी शैली का पता चलता है. वे चोर, चोरियों की कहानियां दिखाने में काफी दिलचस्पी रखते हैं. मगर कहानी में उन्हें कामयाबी मिल जाये यह जरूरी नहीं. चूंकि शैली आपकी जो भी हो, अगर कहानी में नयापन नहीं होगा तो उसे दर्शक नहीं मिलेंगे. सबसे ज्यादा अफसोस किल दिल के साथ यह है कि फिल्म में सभी अच्छे कलाकार हैं. गोविंदा की यह कमबैक फिल्म थी, लेकिन कहानी में चूंकि नयापन नहीं है, इसलिए कलाकारों पर दोष नहीं मढ़ा जा सकता. पिछले कुछ सालों से यशराज की कोशिश हो रही कि वे शादी व्याह और नाच गाने से अलग कुछ कहानियां गढें. सो काला पत्थर के तर्ज पर उन्होंने गुंडे बनाने की कोशिश की और वह कामयाब भी रही. लेकिन यह जरूरी नहीं कि उनका फार्मूला हर बार काम करे. इस बार किल दिल में एक एक्स फैक्टर की उम्मीद थी, चूंकि सारे अच्छे कलाकार थे. फिल्म के ट्रेलर ने प्रभावित किया था. फिल्म के कहानी दो लड़कों की है, जो कचरे के ढेर से उठाये गये हैं और जैसा कि फिल्म का ही संवाद है, जन्म कहीं भी हो, आदमी बनता वैसा ही है जहां पला-बढ़ा हो. सो, दोनों लड़के चोर बन जाते हैं. गोविंदा फिल्म में सबसे बडे डॉन बने हैं. फिल्म में रणवीर और अली दोनों की ही वेशभूषा से चोर दिखाने की कोशिश तो की गयी है, मगर अच्छे कलाकार होने के बावजूद रणवीर अपनी छाप इस फिल्म में छोड़ पाने में कामयाब नहीं हो पाये हैं. अली हमेशा की तरह इस फिल्म में भी ठंडा अभिनय करते नजर आये हैं. उनके अभिनय में एक उदासीनता नजर आती है. मगर हिंदी सिनेमा में हर तरह के कलाकारों की खपत है, सो उन्हें अब भी बड़े मौके मिल रहे हैं. परिणीति को अपने अभिनय में भिन्नता लानी होगी. चूंकि उनकी खासियत उनकी रु कावट बन सकती है. वे भी एक सा किरदार निभाती नजर आने लगी हैं. फिल्म की कहानी को देखने से अधिक मजा फिल्म के गानों के फिल्मांकन में है. फिल्म के कुछ संवाद आपको हंसाते हैं, लेकिन फिल्म से बहुत अधिक उम्मीद थी और उस उम्मीद पर फिल्म खरी नहीं उतरती. गोविंदा ने फिल्म में अधिक लाउड होने की कोशिश की है, जो उनका ट्रेडमार्क रहा है. लेकिन शायद इस दौर के दर्शकों को ऐसी फिल्म पसंद आये. यशराज को फिल्म वक्त अलर्ट होने की जरूरत है कि आखिर फिल्मों की कहानियां क्यों लुभाने में कामयाब नहीं हो पा रही हैं.

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