रांची: झारखंड के लिए बुरी खबर है. यहां के आदिवासी युवाओं में मनोरोग के लक्षण ज्यादा दिख रहे हैं. यह चौंकानेवाली जानकारी राज्य के प्रतिष्ठि संस्थान रिनपास में हुए एक अध्ययन से मिली है. अध्ययन से पता चला है कि यहां के 21 से 40 साल के बीच के आदिवासियों युवाओं में मनोरोग की समस्या ज्यादा है. यही नहीं 10 फीसदी से अधिक लोग डिप्रेशन के शिकार हैं. करीब 22 फीसदी आदिवासी स्किजोफ्रिनिया से पीड़ित हैं. आम तौर पर यह माना जाता रहा है कि आदिवासी अलकोहल (शराब-हड़िया) आदि का प्रयोग ज्यादा करते हैं. अध्ययन में पता चला कि रिनपास में इलाज के लिए आनेवाले ड्रग एब्यूज मरीजों की संख्या काफी कम है.
झारखंड के आदिवासियों में मनोरोग को लेकर रिनपास के मनोवैज्ञानिक राजकिशोर सिंह मुंडा ने संस्थान के निदेशक डॉ अमूल रंजन सिंह के दिशा-निर्देशन में यह अध्ययन किया. यह अध्ययन संस्थान में आनेवाले मरीजों के आधार पर किया गया है. करीब एक साल का डाटा इकट्ठा कर किये गये अध्ययन में कई ऐसी बातें सामने आयी है, जो वर्षो पहले आदिवासियों पर हुए तमाम अध्ययनों में सामने आया था. मीडिया फे लोशिप के तहत जुटाये गये तथ्यों से पता चलता है कि आदिवासियों के मनोरोग पर बहुत कम लोगों ने काम किया है.
70} मनोरोगी ग्रामीण पृष्ठभूमि के : राजकिशोर सिंह मुंडा ने रिनपास के ओपीडी में आनेवाले 389 मरीजों को अपने अध्ययन में शामिल किया था. इसमें उन्होंने 62.46 फीसदी मरीजों की उम्र सीमा 21 से 40 साल के बीच की पायी. उनसे बातचीत करने पर पता चला कि जीवन-यापन में आनेवाली परेशानियों के कारण वे अपना मानसिक संतुलन खो बैठे. मनोरोगियों में 70 फीसदी ग्रामीण पृष्ठभूमि के थे. करीब 70 फीसदी आदिवासी मनोरोगी कम आय श्रेणी (प्रतिमाह एक हजार से नीचे) वाले थे. 15 फीसदी एक से चार हजार तथा शेष चार हजार से ऊपर आय वर्ग वाले थे. अध्ययन में सबसे आश्चर्यवाली बात यह थी कि मात्र तीन फीसदी मनोरोगियों का पारिवारिक पृष्ठभूमि मनोरोग का था.
देर से आते हैं इलाज के लिए : अध्ययन में पाया गया कि बीमारी के एक साल बाद करीब 75 फीसदी आदिवासी इलाज के लिए रिनपास आते हैं. बीमार लोगों में से करीब 38 फीसदी कृषि कार्य से जुड़े थे. घरेलू महिलाओं, बेराजगारों की श्रेणी इसके बाद थी.
70 फीसदी सरना धर्म माननेवाले : अध्ययन से यह भी पता चला है कि 70 फीसदी से अधिक मनोरोगी सरना धर्म माननेवाले थे. शेष ईसाई समुदाय से थे.