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सीपीएम में टकराव, लगातार घट रहा जनाधार

करात-येचुरी में उभरे मतभेदसेंट्रल कमेटी की बैठक में येचुरी बहस के लिए अलग से दस्तावेज जमा कियेदस्तावेज में करात को गलत फैसले लेने के लिए दोषी ठहराया गया एजेंसियां, नयी दिल्लीलगातार घटते जनाधार और विधानसभा चुनावों के साथ-साथ लोकसभा चुनावों में मिली हार के बाद सबसे बड़ी लेफ्ट पार्टी सीपीएम के भीतर वैचारिक टकराव तेज […]

करात-येचुरी में उभरे मतभेदसेंट्रल कमेटी की बैठक में येचुरी बहस के लिए अलग से दस्तावेज जमा कियेदस्तावेज में करात को गलत फैसले लेने के लिए दोषी ठहराया गया एजेंसियां, नयी दिल्लीलगातार घटते जनाधार और विधानसभा चुनावों के साथ-साथ लोकसभा चुनावों में मिली हार के बाद सबसे बड़ी लेफ्ट पार्टी सीपीएम के भीतर वैचारिक टकराव तेज हो गया है. पार्टी महासचिव प्रकाश करात और वरिष्ठ पोलित ब्यूरो नेता सीताराम येचुरी के बीच मतभेद खुल कर सामने आ गये हैं. दिल्ली में सीपीएम की सेंट्रल कमेटी की बैठक में पार्टी के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी ने बहस के लिए एक दस्तावेज अलग से जमा किया है, जो पार्टी की सामूहिक लाइन को चुनौती देता है. येचुरी का कहना है कि पार्टी की नीतियां पिछले 10 सालों में ठीक से लागू नहीं हुई, जिसकी वजह से सीपीएम का ग्राफ लगातार गिरता गया. साफ तौर से जहां सीपीएम एक सामूहिक फैसले की बात करती रही है वहीं येचुरी का दस्तावेज पार्टी महासचिव करात को अहम मौकों पर गलत फैसलों के लिए दोषी ठहरा रहा है. लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद पार्टी की महत्वपूर्ण पोलित ब्यूरो में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि पिछले 30 सालों में पार्टी ने रणनीतिक रूप से कांग्रेस के खिलाफ जो लाइन ली और मोरचे खड़े किये उससे सीपीएम को नुकसान हुआ है. इस प्रस्ताव में कहा गया है कि इस रणनीति की वजह से सीपीएम की हार हुई और क्षेत्रीय पार्टियों को फायदा हुआ.44 से नौ सांसदों तक सिमटीअसल में 2004 के लोकसभा चुनावों में 44 सीट जीतनेवाली सीपीएम आज नौ सीटोंवाली पार्टी रह गयी है. पश्चिम बंगाल और केरल में पार्टी हार चुकी है और अभी केवल त्रिपुरा जैसे छोटे राज्य में ही उसकी सरकार बची है. पश्चिम बंगाल में पार्टी लगातार हाशिये पर जा रही है. 2004 में सीपीएम ने कांग्रेस को केंद्र में सरकार बनाने में मदद की, लेकिन 2008 में न्यूक्लियर डील पर पनपे मतभेदों के बाद समर्थन वापस ले लिया. उसके बाद से लगातार पार्टी का पराभव होता गया. अब भाजपा के के लगातार बढ़ते दबदबे को भी कई नेता सीपीएम की रणनीतिक भूल मानते हैं. पार्टी नये सिरे से बदलाव करने और रणनीति बनाने की बात कर रही है, जिसमें सीपीएम के भीतर संगठनात्मक बदलाव भी शामिल हैं.

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