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राष्ट्रीय उद्योग मिशन. जिला के उद्यान विकास पदाधिकारियों को काम की जिम्मेदारी नहीं दी गयी थी

हेडिंग ::: बिना कमेटी की अनुशंसा के होता था राशि का भुगतान सब काम मुख्यालय से होता था, मंत्रालय को भी नहीं होती थी जानकारीमनोज सिंह , रांची राष्ट्रीय उद्यान मिशन में जिला के उद्यान विकास पदाधिकारियों को काम की जिम्मेदारी नहीं दी गयी थी. मिशन के दिशा-निर्देशों पर राज्य में काम नहीं हो रहा […]

हेडिंग ::: बिना कमेटी की अनुशंसा के होता था राशि का भुगतान सब काम मुख्यालय से होता था, मंत्रालय को भी नहीं होती थी जानकारीमनोज सिंह , रांची राष्ट्रीय उद्यान मिशन में जिला के उद्यान विकास पदाधिकारियों को काम की जिम्मेदारी नहीं दी गयी थी. मिशन के दिशा-निर्देशों पर राज्य में काम नहीं हो रहा था. राष्ट्रीय उद्यान मिशन के परियोजना निदेशक डॉ प्रभाकर सिंह संस्था का चयन और उनको मिलने वाली राशि का भुगतान मुख्यालय स्तर से ही करते थे. जिला उद्यान पदाधिकारियों को इसकी जानकारी भी नहीं होती थी. जबकि राष्ट्रीय उद्यान मिशन का स्पष्ट निर्देश था कि जिला स्तरीय कमेटी की अनुशंसा के बाद ही राशि का भुगतान होगा. यही कारण है कि जिला स्तर पर गड़बड़ी होने के कारण कृषि विभाग ने सीधे परियोजना निदेशक पर कार्रवाई की है. जांच समिति के सदस्यों ने भी अपनी रिपोर्ट में इसका जिक्र किया है. मंत्री ने खुद किया था निरीक्षण देवघर के मालेडीह प्रखंड के कई प्लॉटों की जांच समिति के सदस्यों ने की थी. 16 अक्तूबर को विभागीय मंत्री बन्ना गुप्ता खुद आरोप वाले स्थल पर गये थे. मंत्री लाभुक से भी मिले. लाभुक गौतम ठाकुर ने मंत्री को बताया था कि उनकी जमीन पर आलू की खेती होती है. लेकिन, वहां काजू की खेती दिखाकर संस्था को भुगतान कर दिया गया है. श्री ठाकुर का कहना था कि उनके पास चार एकड़ जमीन पर है, जबकि रचना संस्था (एनजीओ) ने चार हेक्टेयर जमीन दिखायी. बेटा सामान्य बाप को बना दिया ओबीसी मंत्री ने निरीक्षण के क्रम में पाया कि जमीन का मालिक संजय ठाकुर हैं. उनके पिता का नाम गोपाल ठाकुर है, वह सामान्य वर्ग है. लेकिन, संस्था ने कागज पर संजय के पिता का नाम मुड़ल वर्मा बता दिया है, जो ओबीसी श्रेणी में हैं. क्या है नियम नियम है कि काम जिला स्तरीय कमेटी से तय होगी. कमेटी अपनी अनुशंसा एनएचएम के राज्य कार्यालय को भेजेगी. वहां इसकी वार्षिक योजना तय की जायेगी. योजना के हिसाब के राज्य स्तरीय कमेटी काम करनेवाली संस्था का चयन करेगी. इसकी सूचना जिला को भेजी जायेगी. जिला स्तरीय कमेटी की देखरेख में काम होगा. जिला उद्यान पदाधिकारी पूरी योजना की मॉनीटरिंग करेंगे. संस्था को मिलने वाली राशि जिला को दी जायेगी. काम के रिपोर्ट के आधार पर राशि का आवंटन संस्था को किया जायेगा. लेकिन, ऐसा कुछ नहीं होता था. खर्च होनेवाली राशि की जानकारी मंत्रालय को भी नहीं दी जाती थी. पांच साल में मिले 505 करोड़ रुपये राष्ट्रीय उद्यान मिशन के तहत राज्य को पिछले पांच साल में 505 करोड़ रुपये मिले हैं. 2007-08 और 2008-09 में 90 करोड़ रुपये से अधिक मिले थे. इसके बाद आवंटन धीरे-धीरे कम भी होता गया. कब-कब कितनी राशि मिली (करोड़ में) वर्ष राशि मिली 2005-0659.902006-0783.252007-0890.182008-0998.732009-1047.672010-1151.002011-1263.752012-1368.002013-1468.00 (प्रस्तावित)

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