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जन घोषणा पत्र के प्रारूप पर विमर्श

सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों के लिए जन घोषणा पत्र जारी किया जायेगाझारखंड गठन के मूल उद्देश्यों एवं राज्य में हाशिये पर पड़ी जनता की आवाज बुलंद हो तसवीर सुनील देंगेसंवाददातारांची : गोस्सनर कंपाउंड स्थित एचआरडीसी सभागार में शनिवार को विभिन्न जनसंगठनों व जनांदोलन से जुड़े आंदोलनकारी व सामाजिक कार्यकर्ताओं की बैठक हुई. बैठक में […]

सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों के लिए जन घोषणा पत्र जारी किया जायेगाझारखंड गठन के मूल उद्देश्यों एवं राज्य में हाशिये पर पड़ी जनता की आवाज बुलंद हो तसवीर सुनील देंगेसंवाददातारांची : गोस्सनर कंपाउंड स्थित एचआरडीसी सभागार में शनिवार को विभिन्न जनसंगठनों व जनांदोलन से जुड़े आंदोलनकारी व सामाजिक कार्यकर्ताओं की बैठक हुई. बैठक में सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों के लिए जन घोषणा पत्र के प्रारूप पर विचार किया गया. जन घोषणापत्र में मनरेगा, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून, जनवितरण प्रणाली, मध्याह्न भोजन, वनाधिकार, ट्राइबल सबप्लान सहित अन्य विषय शामिल किये गये हैं. बैठक में अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज, आंदोलनकारी दयामनी बरला सहित अन्य मौजूद थे. कार्यक्रम के उद्देश्य के संबंध में जानकारी देते हुए सामाजिक कार्यकर्ता बलराम ने कहा कि राज्य में जनपक्षीय विकास को रोकने का काम किया गया है. हमलोग चाहते हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव के दौरान झारखंड गठन के मूल उद्देश्यों एवं राज्य में हाशिये पर पड़ी जनता की आवाज बुलंद हो और उससे नीतिगत बदलाव हो. उन्होंने कहा कि विभिन्न संगठनों से बातचीत के बाद जन घोषणापत्र का ड्राफ्ट तैयार किया गया है. आगामी 29 नवंबर को जनघोषणा पत्र के लिए एक रैली का आयोजन होगा. रैली के साथ सभा भी होगी और बाद में सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के जरिये जन मुद्दों से जुड़े सवालों को लोगों के सामने रखा जायेगा. 30 नवंबर को जन घोषणा पत्र जारी किया जायेगा. लोगों ने जो विचार रखे : फादर स्टेन स्वामी ने विस्थापन से जुड़े सवालों पर अपनी राय रखी. उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से 1995 तक पंद्रह लाख एकड़ भूमि का अधिग्रहण हुआ है और लगभग पंद्रह लाख लोगों का विस्थापन हुआ. सन 2000 के बाद 102 एमओयू हुए. अगर ये सभी क्रियान्वित हुए तो इसके लिए दो लाख एकड़ भूमि चाहिए. इससे और 10 लाख लोग विस्थापित होंगे. उन्होंने कहा कि विस्थापन के मामले में कभी भी समुचित पुनर्वास की पहल नहीं हुई. वरिष्ठ पत्रकार फैसल अनुराग ने कहा कि झारखंड व खनिज संपन्न अन्य राज्यों में सरकारें खनिज, जंगल व सस्ता श्रम के दोहन के लिए काम कर रही है. ज्यादातर राजनीतिक दलों ने राज्य को पंूजीपतियों के लिए खुले मैदान की तरह छोड़ दिया है. एक अन्य वक्ता पीपी वर्मा ने स्वास्थ्य सेवाओं को निजी क्षेत्रों में देने पर चिंता प्रकट की. उन्होंने यह भी कहा कि यह अवधारणा गलत है कि बड़ी कंपनियों के आने से बेरोजगारी दूर होगी.

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