रांची. 22 अक्तूबर को प्रभात खबर में छपे आपका पत्र पढ़ कर मैं आपके एक -एक शब्द से सहमत हूं और मुझे पूर्ण विश्वास है कि मुझ जैसे हजारों कार्यकर्ता भी सहमत होंगे. परंतु मैं आपके कुजात जैसे अलंकार से सहमत नहीं हूं, क्योंकि जो छाती ठोक कर या डंके की चोट पर सच बोलता है या दृढ़ता और सच्चाई से अपने सिद्धांतों पर अडिग रहता है, वो कुजात नहीं एकात्ममानववादी होता है. कुजात तो वो लोग हैं जो गांधी, जयप्रकाश, लोहिया व पं दीनदयाल की विरासतों को गंदी राजनीति में परिवर्तित करते हैं. झारखंड भाजपा में दलबदलुओं, बेईमानों, धनपशुओं, तस्करों, भ्रष्ट अ.प्रा. नौकरशाहों, दूसरे दलों के चूके हुए नेताओं, सातीर रकीबुलों एवं हर दल से आये हुए अवसरवादियों को प्रश्रय दे रहे हैं. कुजात तो वो लोग हैं, जो भाजपा की पीठ पर खंजर घोंप कर अटल, आडवाणी को गालियां देकर पार्टी तोड़ने का पाप कर्म करते हैं. इस सबके बावजूद पार्टी में वापस आकर राज्य के शीर्ष नेतृत्व की कुरसी हथिया कर धुर्तता का मिशाल कायम कर आज निष्ठा का पाठ पढ़ा रहे हैं. कुजात तो वो हैं, जो मोदी लहर में जिन दलों के चमन उजड़ गये, उन उजड़े चमन के व्याकुल पक्षियों को भाजपा के गुलजार चमन के डाल पर बसेरा डलवा कर प्यार से दाना डाल रहे हैं. कहते हैं कि कुलगार को यदि परिवार का मुखिया बनाया जाये, तो कुल का नाश होता है, यही कहावत आज भाजपा में चरितार्थ हो रही है. मुझे विश्वास है कि आपकी क्रांतिकारी लेखनी आनेवाले समय में पार्टी को एक नयी दिशा देगी. इसी आशा और विश्वास के साथ आपको दीपावली की शुभकामना एवं एक सलाह की आप अपने को कुजात नहीं एक एकात्ममानववादी कहें, तो ज्यादा अच्छा होगा.
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कुजात नहीं, एक एकात्ममानववादी कहें
रांची. 22 अक्तूबर को प्रभात खबर में छपे आपका पत्र पढ़ कर मैं आपके एक -एक शब्द से सहमत हूं और मुझे पूर्ण विश्वास है कि मुझ जैसे हजारों कार्यकर्ता भी सहमत होंगे. परंतु मैं आपके कुजात जैसे अलंकार से सहमत नहीं हूं, क्योंकि जो छाती ठोक कर या डंके की चोट पर सच बोलता […]
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