सीएनटी-6प्रो मानिक चंद साहुमेरा मानना है कि यह कानून अंगरेजों के जमाने में बना था. उस वक्त आदिवासी समाज शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक दृष्टिकोण से बिल्कुल पिछड़े हुए थे. लोग जंगलों, पहाड़-पर्वतों पर निवास करते थे, इस वजह से यह कानून बनाना मजबूरी था. यह सोच कर कि आदिवासियों का अस्तित्व ही समाप्त हा हो जायेगा. लेकिन आज वैसी बात नहीं है. आज आदिवासी वर्ग भी शिक्षित होने के साथ-साथ जागरूक हो चुके हैं. हां, कानून में वैसी बाध्यता है कि आदिवासी की जमीन को कोई आदिवासी ही खरीद सकता है. यह भी बाध्यता है कि जमीन खरीदने और बेचनेवाला व्यक्ति आदिवासी होने के साथ-साथ एक ही प्रखंड का हो, लेकिन इसका भी अनुपालन नहीं हो पाता है. मेरा मत है कि इस कानून से आदिवासियों का भारी शोषण हो रहा है और शोषण करनेवाला दूसरा कोई नहीं शिक्षित एवं संपन्न आदिवासी ही हैं.मेरे विचार से सीएनटी एक्ट सिर्फ कृषि योग्य भूमि पर ही लागू होना चाहिए. ऐसा करने से गैर कृषि योग्य भूमि, जो आदिवासियों को मजबूरी में औने-पौने दामों में बेचना पड़ता है, उसका पूरा मूल्य मिलेगा. वैसे भी शहर से सटे जमीन कृषि के लिए अनुकूल नहीं है और ज्यादातर इस तरह की भूमि में खेती नहीं के बराबर होती है. निष्कर्ष यह है कि गैर कृषि योग्य भूमि से सीएनटी एक्ट को हटा देना ही आदिवासियों के हित में होगा.(लेखक टाना भगत कॉलेज, घाघरा में कार्यरत हैं)
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आदिवासियों के विकास में सबसे बड़ी बाधा
सीएनटी-6प्रो मानिक चंद साहुमेरा मानना है कि यह कानून अंगरेजों के जमाने में बना था. उस वक्त आदिवासी समाज शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक दृष्टिकोण से बिल्कुल पिछड़े हुए थे. लोग जंगलों, पहाड़-पर्वतों पर निवास करते थे, इस वजह से यह कानून बनाना मजबूरी था. यह सोच कर कि आदिवासियों का अस्तित्व ही समाप्त हा हो […]
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