रांची: देश की स्वतंत्रता आंदोलन में टाना भगतों का अहम योगदान रहा है. उन्होंने देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया. राज्य सरकार की ओर से आजादी के बाद आज भी टाना भगतों की उपेक्षा की जा रही है.
न तो ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त उनकी जमीन-जायदाद लौटायी जा रही है और न ही किसी तरह की सरकारी सहायता ही उपलब्ध करायी जा रही है.
20 प्रतिशत टाना भगतों को छोड़ कर 80 प्रतिशत टाना भगत अपनी जब्त जमीन की वापसी के लिए मोहताज हैं. लोहरदगा, गुमला व चतरा में कुछ टाना भगतों को उनकी जमीन का परचा दिया गया है. मोरहाबादी स्थित महात्मा गांधी स्मारक स्थल का रख रखाव व सुरक्षा करनेवाले टाना भगतों को सरकारी सहायता से अब तक उपेक्षित रखा गया है. न तो उन्हें किसी तरह का मानदेय दिया जा रहा है और न ही स्मारक स्थलों की सुरक्षा की कोई व्यवस्था की जा रही है. बापू की सेवा में पिछले दो वर्षो से दिन-रात बिगा टाना भगत, जतरू उरांव टाना भगत आदि लगे हुए हैं.
टाट व प्लास्टिक से बनायी गयी झोपड़ी में टाना भगत रहते हैं. बिना सरकारी सहायता के पूरी ईमानदारी से गांधी स्थल की साफ-सफाई व सुरक्षा करते हैं. पर्यटकों के पूछने पर बापू के विषय में बताते है. रामजीत उरांव टाना भगत ने बताया कि 1912 में बापू आये थे. कुडू के पास वे टाना भगतों से मिले थे और आजादी के अहिंसक संघर्ष में साथ मांगा था. गांधी जी के आह्वान के बाद टाना भगत आजादी के आंदोलन में कूद पड़े. यह अंगरेजों को नागवार गुजरा. उन्होंने टाना भगतों की जमीन जायदाद जब्त कर ली. खाने के लाले पड़ गये, लेकिन टाना भगत नहीं टूटे. सब कुछ न्योछावर कर दिया. अब देश आजाद है.
167 रुपये मिलना है मानदेय : टाना भगत ने बताया कि गांधी स्मारक स्थल के रख रखाव की जिम्मेवारी देने का उपायुक्त से आग्रह किया गया था. आरआरडीए को आवेदन अग्रसारित करने पर कहा गया कि रांची नगर निगम को हैंड ओवर कर दिया गया है. बाद निगम से चार सिक्यूरिटी गार्ड देने की मांग की गयी. निगम ने कहा कि प्रतिदिन 167 रुपये के हिसाब से भुगतान किया जायेगा. दो वर्ष होने को हैं, लेकिन वह न्यूनतम राशि भी अब तक नहीं मिली है. इसके बावजूद टाना भगत समुदाय के लोग पूरी निष्ठा से सेवा कर रहे हैं.