त्रदयामनी बरलारांची. झारखंड अलग राज्य की मांग सिर्फ जिलों की सीमाओं से बने एक मात्र राज्य की परिकल्पना नहीं थी. वरन यहां के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के गांव में हमारा राज, जंगल,जमीन, नदी, पहाड़, भाषा, संस्कृति व इतिहास पर अपना पारंपरिक स्वशासन अधिकार की मांग थी. खूंटी मुंडा आदिवासियों के अबुआ राइज के संघर्ष का अपना इतिहास रहा है. सन 1800 में मुंडा सरदारों ने अंगरेजी हुकूमत और जमींदारी लूट के खिलाफ जंग छेड़ा था. 15 नवंबर 1875 को उलीहातू में वीर बिरसा मुंडा का जन्म हुआ. बड़ा होने पर उन्होंने अंगरेजों व जमींदारों के दमन और शोषण के खिलाफ उलगुलान का हथियार उठाया. उलगुलान के बिगुल से समूचा मुंडा इलाका डोल गया. नौ जनवरी को अंगरेज सैनिकों ने डोम्बारी में गोलियों की बौछार कर दी, जिसमें हजारों आदिवासी पुरुष, महिला व बच्चे शहीद हुए . राज्य के ग्रामीण इलाकों के संपूर्ण विकास के लिए अलग झारखंड बनने के बाद कई जिलों का गठन किया गया. इसी क्रम में बिरसा मुंडा जन्म और उलगुलान की धरती खूंटी को भी 12 सितंबर 2007 को जिला के रूप में स्थापित किया गया. खूंटी पूरी तरह कृषि प्रधान जिला है. जिला का अड़की, मुरहू व रनिया प्रखंड जंगलों से आच्छादित है. हर साल करोड़ों रुपये का वनोत्पाद बाहर जाता है. सैकड़ों पत्थर खदान चल रहे हैं. दर्जनों बालू घाटों को मुंबई की कंपनी को बेचा जा चुका है. खूंटी व मुरहू का इलाका लाह की खेती के लिए देश भर में जाना जाता है, लेकिन दुख की बात है कि वनोत्पाद व माइनर मिनरल्स से जोड़ने के लिए स्थानीय समुदाय की कोई को-ऑपरेटिव आज तक नहीं बनायी गयी. न ही फूड प्रोसेसिंग यूनिट व वन संपदा आधारित कुटीर उद्योग की स्थापना हुई. जिला गठन के बाद शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि व कुटीर उद्योग के क्षेत्र में कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई है. केंद्र की योजनाएं धरातल पर कहीं दिखायी नहीं देती. मनरेगा समेत अन्य विकास योजनाओं में लूट मची है. विकास की रह में खूंटी जिला एक कदम नहीं बढ़ा है, लेकिन जिला में समानांतर सरकार चलाने वाले उग्रवादी संगठनों का खूब विकास व विस्तार हुआ है. प्रशासन जिले में नागरिकों को सुरक्षा देने व शांति-व्यवस्था बनाये रखने का दंभ भरता है. वहीं दूसरी ओर बिरसा मुंडा की धरती उग्रवादी हिंसा व आपराधिक घटनाओं से लाल हो रही है. खूंटी अलग जिला बनने के बाद से अब तक जमीन विवाद, उग्रवादी हिंसा, डयन बिसाही समेत अन्य घटनाओं में हजारों लोगों की मौत हो चुकी है. जिस धरती को अंगरेजों व जमींदारों के शोषण से मुक्त के लिए बिरसा मुंडा, गया मुंडा, डोका मुंडा, नरसिंग मुंडा, भरमी मुंडा, सुगना मुंडा, माकी मुंडा जैसे नायकों की अगुवाई में उलगुलान किया गया था, उसी धरती पर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए आदिवासी-मूलवासी एक दूसरे के खून के प्यासे हो गये हैं. अपने भाई-बहनों के खिलाफ हथियार उठा रहे हैं. आतंक के कारण गांव खाली होते जा रहे हैं. इसी लड़ाई के कारण हजारों बेकसूर जेल में बंद हंै.खूंटी जिला बनने के बाद उग्रवादी हिंसा में हुई मौतें वर्ष घटनाआदिवासीगैर आदिवासी/मूलवासी200761620084-420098752010131432011201211201237321020132617122014 (मई तक)102-2014(सिर्फ जून में) 11152अन्य मामलों में हुई हत्याएं कबघटनाआदिवासीगैर आदिवासी अज्ञात2007849–672008615014520096935171520106646111820111016629122012896513112013755312122014 (मई तक)402649अन्य मामलों में हत्या का प्रखंडवार आंकड़ाप्रखंड20072008200920102011201220132014तोरपा15576814106रनिया893657112कर्रा21415161913179खंूटी1013141935231610मूरहू2618251321191911अड़की5956131322
विकास की राह पर एक कदम भी नहीं बढ़ा खूंटी जिला…ओके
त्रदयामनी बरलारांची. झारखंड अलग राज्य की मांग सिर्फ जिलों की सीमाओं से बने एक मात्र राज्य की परिकल्पना नहीं थी. वरन यहां के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के गांव में हमारा राज, जंगल,जमीन, नदी, पहाड़, भाषा, संस्कृति व इतिहास पर अपना पारंपरिक स्वशासन अधिकार की मांग थी. खूंटी मुंडा आदिवासियों के अबुआ राइज के संघर्ष का अपना […]
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