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तकरार. केंद्र का फरमान मानने से कुरैशी का इनकार

सुप्रीम कोर्ट की शरण में उत्तराखंड के गवर्नरकोर्ट ने केंद्र से छह हफ्ते में जवाब मांगाएजेंसियां, नयी दिल्लीउत्तराखंड के गवर्नर अजीज कुरैशी ने इस्तीफा देने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. शीर्ष कोर्ट ने गवर्नर की याचिका पर केंद्र और अन्य संबद्ध पक्ष को नोटिस देकर छह हफ्ते में जवाब मांगा […]

सुप्रीम कोर्ट की शरण में उत्तराखंड के गवर्नरकोर्ट ने केंद्र से छह हफ्ते में जवाब मांगाएजेंसियां, नयी दिल्लीउत्तराखंड के गवर्नर अजीज कुरैशी ने इस्तीफा देने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. शीर्ष कोर्ट ने गवर्नर की याचिका पर केंद्र और अन्य संबद्ध पक्ष को नोटिस देकर छह हफ्ते में जवाब मांगा है. साथ ही मामले को पांच जजों की संविधान पीठ को भेज दिया. अजीज ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिस पर चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा की बेंच गुरु वार को सुनवाई की.याचिका में कुरैशी ने कहा कि गृह सचिव ने उन्हें फोन कर इस्तीफा देने के लिए कहा. यह दुस्साहसिक और राज्यपाल के पद का अपमान है. ज्ञात हो कि केंद्र में एनडीए सरकार बनने के बाद यूपीए सरकार के दौरान नियुक्त कई राज्यपालों पर इस्तीफे का दबाव बनाने की खबरें आयीं. इस बाबत केंद्रीय गृह सचिव का फोन करना कुरैशी को रास नहीं आया और वह सुप्रीम कोर्ट चले गये.याचिका में कहा गया है कि संविधान के आर्टिकल 156 (1) गवर्नर के तौर पर किसी की नियुक्ति देश के राष्ट्रपति की मर्जी पर होती है. सिर्फ राष्ट्रपति ही उन्हें पद छोड़ने के लिए कह सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कई बार साफ किया है कि गवर्नर केंद्र का कर्मचारी नहीं होता. ज्ञात हो कि एनडीए सरकार बनने के बाद गोवा के गवर्नर बीवी वांचू, यूपी के बीएल जोशी, पश्चिम बंगाल के एमके नारायणन और छत्तीसगढ़ के गवर्नर शेखर दत्त ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. वहीं, मिजोरम की गवर्नर कमला बेनीवाल पर भ्रष्टाचार के आरोप होने की बात कह कर उन्हें बरखास्त कर दिया गया.क्या है संविधान पीठसंविधान पीठ सुप्रीम कोर्ट के उस पीठ को कहते हैं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के कम से कम पांच जज होते हैं. किसी अहम फैसले पर इस पीठ (बेंच) की नियुक्ति की जाती है. खासतौर पर इस बेंच का गठन तब किया जाता है, जब संविधान और कानून से जुड़ी पेचीदगियों का मतलब निकालने में दिक्कत आ रही हो. संविधान के अनुच्छेद 143 (3) में इस बेंच को मान्यता दी गयी है. भारत के प्रधान न्यायाधीश को इस बेंच के गठन और उसे मामले सौंपने का अधिकार है.कॉलेजियम खत्म करने के खिलाफ चार याचिका (फ्लैग)सुनवाई 25 को (हेडिंग)सुप्रीम कोर्ट 121वें संविधान संशोधन को चुनौती देनेवाली चार जनहित याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई करेगा. इस संविधान संशोधन के तहत हाइकोर्ट में जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को खत्म कर दिया गया है. इसकी जगह नये तंत्र के रूप में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) का प्रस्ताव किया गया है. जब याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने आग्रह किया कि उनके मामले पर तत्काल सुनवाई की जानी चाहिए, तो चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा की अध्यक्षतावाली पीठ ने कहा कि मामला सोमवार (25 अगस्त) को सुनवाई के लिए उनके समक्ष आ रहा है.कॉलेजियम प्रणाली की जगह नया तंत्र लाने के लिए संसद द्वारा दो विधेयक पारित किये जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में एनजेएसी के खिलाफ दायर याचिका में इस कदम को असंवैधानिक करार दिया गया है. याचिकाएं पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बिश्वजीत भट्टाचार्य, अधिवक्ताओं आरके कपूर और मनोहर लाल शर्मा तथा सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड की ओर से दायर की गयी हैं. इसमें कहा गया है कि खुद संविधान ही अनुच्छेद 50 के तहत न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करते हुए एक स्पष्ट सीमांकन को मान्यता देता है, जो स्वस्थ न्यायिक प्रणाली के लिए अंतर्निहित शक्ति है. संविधान सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट के जजों की नियुक्ति में और एक हाइकोर्ट से दूसरे में जजों के प्रत्येक स्थानांतरण में प्रधान न्यायाधीश को फैसला लेने की शक्ति प्रदान करता है.इधर, ‘नंबर वन हरियाणा’ पर हुड्डा सरकार को नोटिसचंडीगढ़. विधानसभा चुनाव से ऐन पहले ‘नंबर वन हरियाणा’ विज्ञापन ने हरियाणा की भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार की मुसीबत बढ़ा दी है. पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट ने नोटिस भेज कर राज्य सरकार से इस विज्ञापन के खर्च पर जवाब तलब किया है. बताया जा रहा है कि ‘नंबर वन हरियाणा’ के इन विज्ञापनों पर 113 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. हाइकोर्ट ने सरकार से चार सितंबर तक खर्च की गयी धनराशि का स्रोत बताने के लिए कहा है.

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