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पारादीप-खूंटी पाइपलाइन (संपादित)

समय के साथ बढ़ती जा रही है लागत (दिनेश केडिया)पारादीप पोर्ट से खूंटी तक पाइप के माध्यम से डीजल, पेट्रोल व केरोसिन तेल पहुंचेगापरियोजना में देरी का पहला कारण फॉरेस्ट क्लियरेंस में विलंब दूसरा जमीन नहीं मिलना.रांची. इंडियन ऑयल की पारादीप-खूंटी तेल पाइपलाइन परियोजना सालों से अधर में लटकी हुई है. इस परियोजना के पूरा […]

समय के साथ बढ़ती जा रही है लागत (दिनेश केडिया)पारादीप पोर्ट से खूंटी तक पाइप के माध्यम से डीजल, पेट्रोल व केरोसिन तेल पहुंचेगापरियोजना में देरी का पहला कारण फॉरेस्ट क्लियरेंस में विलंब दूसरा जमीन नहीं मिलना.रांची. इंडियन ऑयल की पारादीप-खूंटी तेल पाइपलाइन परियोजना सालों से अधर में लटकी हुई है. इस परियोजना के पूरा होने के बाद पारादीप पोर्ट से खूंटी तक पाइप के माध्यम से डीजल, पेट्रोल व केरोसिन तेल पहुंचेगा. यह परियोजना सितंबर 2012 में पूरी होनी थी, लेकिन अब यह मार्च 2015 की डेडलाइन तक पहुंच गयी है. समय बढ़ने के साथ ही इसकी लागत भी दोगुनी हो गयी. 164 करोड़ की परियोजना पर अनुमानित लागत 325 करोड़ हो गयी है. परियोजना में देरी दो कारणों से हो रही है. पहला तो फॉरेस्ट क्लियरेंस और दूसरा जमीन नहीं मिलना. इंडियन ऑयल के डिपो के लिए 32 एकड़ भूमि की आवश्यकता है, लेकिन काफी प्रयास के बाद भी 28 एकड़ जमीन ही मिल पायी है. सरकार की ओर से 32 एकड़ जमीन देनी की बात थी. लेकिन तीन साल बाद भी मामला अटका हुआ है. इसके साथ ही झारखंड में पाइपलाइन बिछाने के काम में भी रूकावट आ गयी है. दूसरे फेज के फॉरेस्ट क्लियरेंस नहीं मिलने से यह परेशानी आ रही है. फॉरेस्ट क्लियरेंस मिल रहा है, लेकिन काफी धीमी गति से. पाइपलाइन के लिए 98 किमी पाइप झारखंड में बिछाये जाने हैं. इसमें से 70 किमी का काम हो सका है. परियोजना के तहत पारादीप से सीधे पाइपलाइन के द्वारा रांची को डीजल, पेट्रोल व केरोसिन की सप्लाइ की जानी है. इससे कंपनी का निर्माण खर्च तो बढ़ ही गया है, व्यापार भी प्रभावित हो रहा है.पुनर्वास नीति हटाने का आग्रहजमीन का मामला आरआर पॉलिसी यानी पुनर्वास व पुन:स्थापन नीति लागू किये जाने के कारण अटका हुआ है. कंपनी सूत्रों के अनुसार शुरुआत में ऐसी कोई बात नहीं थी. पूरी जमीन 60 साल से सरकार के कब्जे में थी. यह जमीन कृषि विभाग की थी. पहले यहां बीज संस्करण का काम होता था. जमीन पर न तो किसी का घर है और न ही यह किसी की आजीविका का साधन है. दोनों चीजें रहने पर ही यह पॉलिसी लागू होती है.इंडियन ऑयल ने बाजार दर से ज्यादा पर जमीन की कीमत चुकाने को मंजूरी दी है. सरकार के पास यह मामला लंबे समय से लंबित है. कंपनी का कहना है कि शुरुआत में बतायी गयी जमीन के अनुसार ही पूरा प्रोजेक्ट डिजाइन किया गया है. खूंटी उपायुक्त के निर्देश के अनुसार कंपनी ने मुआवजे की राशि भी सरकार के पास जमा करा दी थी. जमीन नहीं मिलने के कारण बाउंड्री का काम पूरा नहीं हो पा रहा है. बनने से फायदा ही फायदापरियोजना के शुरू होने से न केवल कंपनी को बल्कि सरकार व लोगों को भी फायदा होगा. सरकार को पूरा टैक्स मिलेगा. साथ ही एक्साइज ड्यूटी, जो अभी हल्दिया या बरौनी को मिल रही है, झारखंड के हिस्से में आ जायेगी. बड़ी संख्या में लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा. इस परियोजना से तेल के आने में प्रदूषण नहीं होता. इससे सरकार को कार्बन क्रेडिट का लाभ भी मिलता. वहीं कुछ कम कीमत पर पेट्रोल-डीजल मिलते. कारण कि पाइपलाइन से ट्रांसपोर्टेशन रेलवे की तुलना में काफी सस्ता होता है. ट्रांसपोर्टेशन कीमत में लगभग 30 प्रतिशत की कमी आती.अन्य कंपनियां भी बना पातीं अपने डिपोइंडियन ऑयल द्वारा बनाये जा रहे डिपो का काम पूरा होता और सरकार जमीन देती, तो दो और तेल कंपनी हिंदुस्तान पेट्रोलियम और भारत पेट्रोलियम के डिपो भी वहां बन पाते. पूरे देश में जहां भी रिफाइनरी से पाइपलाइन द्वारा तेल पहुंचने की व्यवस्था है, वहां तीनों तेल कंपनियां अपना डिपो बनाती हैं. इससे खर्च में कमी आती है. तेल कंपनियां साझा तौर पर इनका इस्तेमाल करतीं. लेकिन झारखंड में एक कंपनी के लिए भी जरूरत भर जमीन नहीं मिल पा रही है.लागत भी बढ़ी जब इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की गयी थी, तो झारखंड में 164 करोड़ रुपये खर्च होने थे, जिसमें अब 325 करोड़ से ज्यादा राशि खर्च होने का अनुमान है. इसके साथ ही कंपनी का कारोबार भी प्रभावित हो रहा है.

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