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सरकारी उदासीनता से 4005.7 करोड़ का विकास कार्य रूका

फ्लैग – टाटा स्टील, टाटा मोटर्स समेत तमाम कंपनियों ने तैयार की योजनाएं – राज्य सरकार की ओर से नहीं मिल पा रहा है क्लियरेंस – 50-50 फीसदी खर्च करेगी कंपनियां व राज्य सरकार- योजनाएं लंबित रहने से जमशेदपुर के विकास पर असरब्रजेश सिंह, जमशेदपुरराज्य सरकार की उदासीनता के कारण जमशेदपुर के विकास के लिए […]

फ्लैग – टाटा स्टील, टाटा मोटर्स समेत तमाम कंपनियों ने तैयार की योजनाएं – राज्य सरकार की ओर से नहीं मिल पा रहा है क्लियरेंस – 50-50 फीसदी खर्च करेगी कंपनियां व राज्य सरकार- योजनाएं लंबित रहने से जमशेदपुर के विकास पर असरब्रजेश सिंह, जमशेदपुरराज्य सरकार की उदासीनता के कारण जमशेदपुर के विकास के लिए बनायी गयी 4005.7 करोड़ की परियोजनाएं लंबित हैं. जमशेदपुर की टाटा स्टील, टाटा मोटर्स समेत तमाम कंपनियों ने शहर के विकास के लिए बड़ी योजनाएं तैयार की हैं. 50 फीसदी के पार्टनरशिप पर योजनाएं बनायी गयी हैं. परियोजनाओं को धरातल पर इस कारण नहीं उतरा जा सका है क्योंकि सरकारी स्वीकृति नहीं मिल पा रही है. यही हालात जमशेदपुर से सटे सरायकेला-खरसावां जिले के अधीन आदित्यपुर और गम्हरिया क्षेत्र का भी है. सरकार का सिंगल विंडो क्लियरेंस का दावा भी अधूरा साबित हो रहा है. केस 1योजना : जमशेदपुर के विकास के लिए टाटा स्टील ने 1600 करोड़ की योजना बनायी है. इसमें राज्य सरकार को 50 फीसदी राशि का वहन करना है. टाटा स्टील 50 फीसदी हिस्सा खर्च करने को तैयार है. इस योजना के तहत शहर में 11 किलोमीटर फ्लाइओवर निर्माण होना है. वहीं, जमशेदपुर पूर्वी क्षेत्र में एक नये पुल का निर्माण किया जाना है, ताकि यातायात व्यवस्था दुरुस्त हो सके.क्या है परेशानीशहर में हर साल सड़क दुर्घटना में करीब 200 से 250 लोगों की मौत होती है. बीते साल 198 लोगों की मौत हुई. इसके अलावा नो इंट्री की अवधि अधिक होने के कारण कंपनियों को उत्पादन में परेशानी हो रही है.योजना से क्या होगा लाभशहर में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या कम होगी. बड़े वाहनों की इंट्री शहर में बंद हो जायेगी. जुस्को (टाटा स्टील की शत-प्रतिशत सब्सिडियरी कंपनी) के सर्वे के मुताबिक करीब 40 फीसदी गाडि़यां शहर में इस कारण प्रवेश करती हैं, क्योंकि उन्हें एक तरफ से दूसरी तरफ होते हुए बंगाल या ओडि़शा जाना होता है. ऐसी गाडि़यों को बाहर जाने का रास्ता ऊपरी हिस्से से मिल जायेगा. इसके अलावा कंपनियों की गाडि़यां नो इंट्री में नहीं फंसेंगी. करीब 12 घंटे का नो इंट्री शहर में होता है.परियोजना लंबित है – वर्ष 2010 से.वर्तमान स्थितियोजना को लेकर सचिवों का टास्क फोर्स गठित हुआ है. इसकी बैठक अब तक तीन बार हो चुकी है. सरकार को इस पर फैसला लेना है. एक कंपनी का गठन कर इसे धरातल पर उतारने की कोशिश शुरू की जानी है. ———————————केस 2क्या है योजना शहर में सबसे अधिक आवश्यकता एक राष्ट्रीय स्तर के एयरपोर्ट की है. इसके लिए टाटा स्टील ने 50-50 फीसदी पार्टनरशिप पर राज्य सरकार को एक नया एयरपोर्ट बनाने का प्रस्ताव दिया था. इसके लिए आदित्यपुर से सटे एरिया में करीब 300 एकड़ जमीन चिह्नित की गयी है. यह करीब 900 करोड़ रुपये की परियोजना है. पहले चरण में यहां 7500 फीट का रनवे बनाना है, ताकि बड़े विमान उतर सके. फिर इसका विस्तार 10 हजार फीट तक करने का प्रावधान है. क्या है परेशानी शहर में सोनारी एयरपोर्ट है, लेकिन इसका रनवे छोटा है. टाटा स्टील के छोटे निजी विमान उतरने के अलावा बड़ा विमान नहीं उतर पाता है. एक अनुमान के मुताबिक हर माह करीब 1500 से ज्यादा उद्यमी और व्यवसायी इंडस्ट्रियल हब होने के कारण यहां से कोलकाता व रांची से हवाई जहाज यात्रा करते हैं. एनएच की स्थिति खराब होने से आने-जाने में काफी दिक्कत होती है. हवाई कनेक्टिविटी नहीं होने के कारण टाटा स्टील ने ओडि़शा प्रोजेक्ट पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया है. टाटा मोटर्स का मल्टी एक्सल प्लांट शिफ्ट हो रहा है. एक्सएलआरआइ को एक सेंटर दिल्ली में खोलना पड़ रहा है. आदित्यपुर की कई औद्योगिक इकाइयां है, जिसके लिए हर दिन फ्लाइट की सुविधा होना जरूरी है. योजना से क्या होगा लाभशहर में लोगों का आना-जाना बढ़ेगा. निवेशक और कंपनियों के जरूरी लोग आ सकेंगे. एयर कनेक्टिविटी हो जाने से संपर्क व्यवस्था दुरुस्त हो सकती है. परियोजना लंबित है – वर्ष 2011 से. वर्तमान स्थिति- एयरपोर्ट ऑथोरिटी ऑफ इंडिया ने क्लियरेंस दे दिया है. जमीन अधिग्रहण का कुछ नेता विरोध कर रहे हैं. अबतक पर्यावरणीय क्लियरेंस राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को नहीं भेजी है. ——————————केस 3क्या है योजना – टाटा मोटर्स का वेंडर्स पार्क बनाने की योजना है. करीब 600 एकड़ जमीन टाटा मोटर्स के आसपास दिलाने की योजना पर काम किया जा रहा है. कंपनी खुद निवेश करना चाहती है, ताकि राज्य के बाहर से माल मंगाने के बजाय, वहां ही कंपनियों को बुला लिया जाये और वहां से आसानी से खरीदा जा सकेगा. इसमें टाटा मोटर्स की ओर से करीब 1400 करोड़ रुपये का निवेश अपने स्तर से ही किया जाना था. करीब 100 कंपनियां यहां स्थापित होने वाली थीं. क्या है परेशानी – वेंडर्स पार्क की योजना को मंजूरी नहीं दी जा रही है. यह फाइल उद्योग विभाग के पास लंबित है. सरकार की ओर से इस पर तत्परता नहीं दिखायी जा रही है. टाटा मोटर्स को वेंडर्स पार्क की मंजूरी नहीं मिलने के कारण अपना मल्टी एक्सल प्लांट को शिफ्ट करना पड़ रहा है. परियोजना लंबित है – वर्ष 2011 से योजना से क्या होगा लाभछोटे निवेशक यहां आ सकेंगे.इंजीनियरिंग सेक्टर में मोटर पार्ट्स बनानेवाली कंपनियां यहां निवेश करेंगी. यहां रोजगार के अवसर मिलेंगे. टाटा मोटर्स में उत्पादन आसान हो जायेगा और कंपनी विस्तार कर सकेगी. वर्तमान स्थिति सरकार के पास परियोजना लंबित है. इस परियोजना पर उद्योग मंत्रालय ने अब तक रुचि नहीं दिखायी है. —————————————-केस 4क्या है योजनाआदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र (आयडा) में स्पेशल इकॉनॉमिक जोन (एसइजेड) बनाने का प्रस्ताव लाया गया था. करीब 81 एकड़ जमीन पर इसे स्थापित किया जाना था. इसमें 63 एकड़ पर करीब 45 कंपनियां लगनी थी. करीब 18 एकड़ जमीन पर पेड़-पौधे लगने थे, ताकि यहां के वातावरण को सुरक्षित रखा जा सके.इसमें 51 फीसदी राशि टाटा स्टील और 49 फीसदी राशि भारत सरकार के सहयोग से राज्य सरकार को खर्च करनी थी. करीब 100 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश होता. क्या है परेशानीआदित्यपुर क्षेत्र का विस्तार नहीं हो पा रहा है. नये उद्योग आयडा क्षेत्र में स्थापित नहीं किये गये हैं. सरकारी स्तर पर क्लियरेंस मिलना बाकी है. योजना से क्या होगा लाभनये उद्योग लगेंगे. इसमें उद्योग लगानेवालों के लिए भारत सरकार की ओर से अलग से टैक्स में छूट देने का प्रावधान तय किया गया था. इसका लाभ मिलता व निवेश के साथ ही रोजगार मिलता. परियोजना लंबित है- वर्ष 2003 से वर्तमान स्थितियोजना के लिए टाटा स्टील (जुस्को) के साथ मिल कर गैमन इंडिया ने रूपरेखा तय कर ली है. इसका शिलान्यास 2005 में झारखंड सरकार ने किया, लेकिन इसे धरातल पर नहीं उतारा गया. भारत सरकार के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने इसे मंजूरी दे दी है. राज्य सरकार के स्तर पर इसका क्लियरेंस और जमीन का क्लियरेंस बाकी है. ——————–केस 5क्या है योजनाटाटा स्टील की नोवामुंडी खान (आयरन ओर) का नवीनीकरणक्या है संकटखान अधिनियम 1960 के तहत प्रावधान था कि खदान के लीज का समय पूरा होने के एक साल पहले नवीनीकरण के लिए आवेदन देना होगा. लीज नवीनीकरण को लेकर अगर राज्य सरकार कोई फैसला नहीं लेती है, तो लीज धारक लाइसेंस को रिन्युअल मान सकते हैं. इसे डीम्ड लीज माना जाता था. लौह अयस्क खनन की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एमबी शाह की अध्यक्षता में शाह कमीशन का गठन हुआ था. शाह कमीशन ने झारखंड, गोवा समेत अन्य माइनिंगवाले राज्यों का अध्ययन किया, तो पाया कि सभी खदान डीम्ड लीज के आधार पर संचालित हो रहे हैं. क्या पड़ेगा प्रभावसीधे तौर पर करीब 40 हजार कर्मचारियों की रोजी रोटी पर संकट उत्पन्न हो जायेगा, जबकि करीब 50 हजार से अधिक लोग अप्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित होंगे. परियोजना लंबित है – वर्ष 1962 सेवर्तमान स्थिति – टाटा स्टील की ओर से राज्य सरकार के पास आवेदन दिया गया है.

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