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भारतीय योद्धा, जिसे मिला था ‘विक्टोरिया कॉस’

प्रथम विश्वयुद्ध का शताब्दी वर्ष : गोविंद सिंह राठौड़ की बहादुरी पर देश को है नाज -पूरी दुनिया प्रथम विश्व का शताब्दी वर्ष मना रही है. प्रथम विश्व युद्ध में लड़ने वाले भारतीय सैनिकों का ब्रिटेन की ओर से सम्मान किया जायेगा. इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून ने भी […]

प्रथम विश्वयुद्ध का शताब्दी वर्ष : गोविंद सिंह राठौड़ की बहादुरी पर देश को है नाज -पूरी दुनिया प्रथम विश्व का शताब्दी वर्ष मना रही है. प्रथम विश्व युद्ध में लड़ने वाले भारतीय सैनिकों का ब्रिटेन की ओर से सम्मान किया जायेगा. इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून ने भी भारतीय सैनिकों के योगदान की तारीफ की है. भारतीय जांबाजों ने अपनी वीरता से पूरी दुनिया में नाम कमाया है. ऐसे ही एक योद्धा थे गोविंद सिंह राठौड़. तो आज हम आपको बता रहे हैं एक ऐसे भारतीय सैनिक की दास्तां, जिन्हें उनकी वीरता के लिए ‘विक्टोरिया क्र ॉस’ से नवाजा गया. सेंट्रल डेस्कएक दिसंबर 1917 को ब्रिटिश इंडियन सेना की दूसरी लांसर्स टुकड़ी फ्रांस के एपिहे में कैमबराई की लड़ाई में दुश्मन जर्मन सेना से चारों ओर से घिर गयी. यूनिट का छह मील दूर पेइजियर्स स्थित ब्रिगेड से संपर्क टूट गया. अब किसी को छह मील दूर बिग्रेड तक घोड़े पर जाकर इस स्थिति के बारे में जानकारी देनी थी. लांस दफादार गोविंद सिंह राठौड़ और सोवर जोत राम को इस काम की जिम्मेदारी दी गयी.दोनों को दो अलग-अलग रास्ते से भेजा गया. जोत राम की रास्ते में जर्मन सेना की गोलीबारी में मौत हो गयी. राठौड़ रुके नहीं और दौड़ते रहे, लेकिन एक मील बाद गोलीबारी में उनका घोड़ा मारा गया. वे थोड़ी देर के लिए घोड़े के पास ही लेटे रहे और फिर वे यह सोच कर दौड़ पड़े कि उन्हें कोई नहीं देख रहा. लेकिन जर्मन सेना ने जोरदार गोलीबारी की. राठौड़ नीचे गिर गये और मरने की तरह बरताव किया. फिर जब गोलीबारी रुकी, तो वह फिर उठे और दौड़ पड़े. ब्रिगेड हेड क्वार्टर तक पहुंचने तक यह चलता रहा. अब हेड क्वार्टर से संदेश फिर से टुकड़ी तक पहुंचाना था.वे दूसरे घोड़े पर चढ़े और रवाना हुए, लेकिन दो-तिहाई रास्ता पार करने के दौरान वह घोड़ा भी गोलियों का शिकार हो गया. फिर भी वे पैदल ही भागते रहे और अपनी यूनिट तक पहुंच गये. एक घंटे बाद एक बार फिर से हेड क्वार्टर तक संदेश पहुंचाना था, राठौड़ को फिर कहा गया, तो वह इसके लिए तैयार हो गये. उनके साथियों ने कहा कि वह काफी खतरा उठा चुके हैं, लेकिन राठौड़ ने कहा कि वे रास्ता जानते हैं जबकि और कोई रास्ते के बारे में नहीं जानता. इसलिए वह एक बार घोड़े पर सवार हुए और दौड़ पड़े. आधे रास्ते ही पहुंचे थे कि दुश्मनों के बम धमाके में उनका घोड़ा मारा गया और राठौड़ एक बार फिर पैदल दौड़ पड़े. घायल गोविंद सिंह राठौड़ हेड क्वार्टर पहुंचे और संदेश सुनाया. टुकड़ी तक संदेश ले जाने के लिए वे एक बार फिर तैयार हो गये, लेकिन इस बार उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी गयी. कौन थे गोविंद राठौड़गोविंद सिंह राठौड़ को उनकी दृढ़ता, बहादुरी और साहस के लिए ब्रिटिश सेना के सवार्ेच्च शौर्य सम्मान विक्टोरिया क्र ॉस से सम्मानित किया गया. राठौड़ राजस्थान के नागौर जिले के दंबोई गांव के रहने वाले थे. उनके परिवार की तीसरी पीढ़ी भी सेना की उसी यूनिट में है, जिसमें गोविंद सिंह राठौड़ थे. उनके पोते कर्नल राजेंद्र सिंह राठौड़ जब भी यह कहानी सुनाते हैं, उनका सीना गर्व से फूल जाता है. राजेंद्र के पिता गंगा सिंह राठौड़ भी सेना में थे.

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