वरीय संवाददाता, रांचीउग्रवादी संगठन तृतीय प्रस्तुति कमेटी (टीपीसी) का गठन वर्ष 2005 में हुआ था, लेकिन इसकी पृष्ठभूमि वर्ष 2004 से ही तैयार होने लगी थी. चतरा, लातेहार, हजारीबाग व पलामू में वर्ष 2004-05 में भाकपा माओवादी (21 सितंबर 2004 से पहले एमसीसीआइ) के एक खास जाति के नक्सलियों की लगातार गिरफ्तारी हुई थी. इस कारण संगठन में दो फाड़ होने लगी थी. एक जाति के नक्सलियों को लग रहा था कि दूसरी जाति के नक्सली अपना दबदबा बढ़ाने के लिए उन्हें गिरफ्तार करवा रहे हैं. टीपीसी के गठन के वक्त दो बड़े नक्सली नेता अमूल्य सेन और कन्हैया चटर्जी की तसवीर लगाने को लेकर विवाद हुआ था. अमूल्य सेन की तसवीर पहले लगाने की मांग करने वाले माओवादियों ने अलग होकर टीपीसी बनायी थी. लेकिन इससे बड़ा एक सच यह भी था कि उस वक्त ब्रजेश, मुकेश और पुरुषोत्तम पर संगठन के पैसे का गबन करने का आरोप था. टीपीसी के गठन के वक्त ये तीनों उग्रवादी संगठन के सवार्ेच्च पद पर थे. पुरुषोत्तम मारा जा चुका है और ब्रजेश और मुकेश अब भी जिंदा है और चतरा-हजारीबाग में सक्रिय है. इन उग्रवादियों के बारे में कहा जाता है कि टीपीसी के गठन के बाद इनकी संपत्ति में इजाफा हुआ है. चार जिलों में बढ़ता गया टीपीसी का वर्चस्वहजारीबाग, चतरा, लातेहार और पलामू में धीरे-धीरे माओवादियों की पकड़ कमजोर पड़ती गयी. माओवादियों के कमजोर पड़ने के साथ ही टीपीसी का वर्चस्व बढ़ता गया. हजारीबाग के बड़कागांव से होने वाले अवैध कोयला कारोबार, टंडवा, पिपरवार से कोयले की ट्रांसपोर्टिंग, लोहरदगा की बॉक्साइट ढुलाई समेत अन्य धंधों से मिलने वाले लेवी की राशि माओवादियों के बजाये टीपीसी के उग्रवादियों को मिलने लगी.
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वर्ष 2005 में बना था टीपीसी संगठन
वरीय संवाददाता, रांचीउग्रवादी संगठन तृतीय प्रस्तुति कमेटी (टीपीसी) का गठन वर्ष 2005 में हुआ था, लेकिन इसकी पृष्ठभूमि वर्ष 2004 से ही तैयार होने लगी थी. चतरा, लातेहार, हजारीबाग व पलामू में वर्ष 2004-05 में भाकपा माओवादी (21 सितंबर 2004 से पहले एमसीसीआइ) के एक खास जाति के नक्सलियों की लगातार गिरफ्तारी हुई थी. इस […]
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