36.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

संविधानसम्मत व आदिवासियों के रक्षार्थ नहीं है पत्थलगड़ी आंदोलन : सालखन

रांची : जदयू के प्रदेश अध्यक्ष सह आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा है कि बुरुगुलिकेरा में हुई जघन्य हत्याकांड के पीछे पत्थलगड़ी आंदोलनकारियों का ही हाथ है, जो देश, संविधान और वर्तमान सरकारी व्यवस्था के विरोधी है़ं इनकी सोच और क्रियाकलाप देशद्रोह की श्रेणी में आता है़ पत्थलगड़ी […]

रांची : जदयू के प्रदेश अध्यक्ष सह आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा है कि बुरुगुलिकेरा में हुई जघन्य हत्याकांड के पीछे पत्थलगड़ी आंदोलनकारियों का ही हाथ है, जो देश, संविधान और वर्तमान सरकारी व्यवस्था के विरोधी है़ं इनकी सोच और क्रियाकलाप देशद्रोह की श्रेणी में आता है़ पत्थलगड़ी आंदोलन को संविधानसम्मत और आदिवासियों के रक्षार्थ नहीं कहा जा सकता़

विरोधाभासी परिस्थितियों में नहीं हो सकती आदिवासियत की रक्षा : उन्होंने कहा कि एक देश के भीतर दूसरा देश, दो संविधान, और दो सरकारी व्यवस्था या सरकारें चलाना संभव नहीं है़ ऐसी विरोधाभासी परिस्थितियों में आदिवासियत की रक्षा नहीं हो सकती है़ यदि संविधान का अनुच्छेद 13 (3) (क) भारतीय संविधान का अंश है, तो उसे संविधान की मूल भावना के तहल चलना- चलाना लाजिमी है़ इस अनुच्छेद में प्रथा, परंपरा, रूढ़ि आदि का विवरण है,
जो सभी जाति- समुदाय की परंपरा आदि के बारे में है, न कि सिर्फ आदिवासियों के़ पर,अनुच्छेद 13 (1) के तहत स्पष्ट किया गया है कि संविधान के भाग तीन के मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करनेवाली विधियां, इस संविधान से ठीक पहले भारत के राज्य क्षेत्र में प्रवृत्त सभी विधियां, उस मात्रा तक शून्य होगी, जिस तक वे इस भाग के उपबंधों के असंगत है़ं
अर्थात जो प्रथा, परंपरा या रूढ़ि संविधान के मूल अधिकारों के खिलाफ हैं, वे अमान्य होंगी, इसी संवैधानिक भावना के तहत तीन तलाक और सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश निषेध, खाप पंचायतों के दुर्भाग्यपूर्ण मनमानी फैसलों आदि को सुप्रीम कोर्ट ने रोकने का आदेश जारी किया है़ आदिवासी पंरपरा, रूढ़ि और आदिवासी ग्राम सभा का कोई भी फैसला यदि संविधान के मूल अधिकारों के खिलाफ होगा, तो उन पर भी सुप्रीम कोर्ट प्रतिबंध लगा सकता है़
पर पत्थलगड़ी आंदोलनकारियों ने अपने पत्थलगड़ी में संविधान के अनुच्छेद 13 (3) (क) को उद्धृत कर और संविधान का गलत प्रचार-प्रसार कर आदिवासी समाज को देश, संविधान और सर्वत्र जारी कर व्यवस्था के खिलाफ भड़काने का काम किया है, जो गलत है़ बेलोसा बबीता कच्छप के सभी तर्कों को भारत सरकार, सुप्रीम कोर्ट और संसद डॉक्टरीन आॅफ इमेनेंट डोमेन के तहत खारिज कर सकते है़ं
आदिवासी स्वशासन पद्धति में जरूरी है सुधार : उन्होंने कहा कि पत्थलगड़ी आंदोलनकारी यदि सचमुच आदिवासियत की रक्षा करना चाहते हैं, तो उन्हें संविधान के भीतर जनतांत्रिक तरीके से अविलंब आदिवासी स्वशासन पद्धति में सुधार करने की कोशिश करनी चाहिए़
इसके तहत इस पद्धति में शामिल अधिकांश स्वशासन प्रमुख, जो वंश परंपरागत चुने जाते हैं, उनका गांव के सभी स्त्री- पुरुषों द्वारा प्रजातांत्रिक तरीके से चयन हो़ स्वशासन पद्धति के प्रमुखों का गुणात्मक सशक्तीकरण भी जरूरी है़
इसके साथ ही, आदिवासी समाज के वोटों की खरीद- बिक्री बंद होनी चाहिए़ लाेगों को हासा- भाषा, जाति धर्म सरना, इज्जत, आबादी, रोजगार, विकास आदि के लिए वोट देकर अच्छे जनप्रतिनिधि चुनना चाहिए़ झारखंड गठन के लगभग दो दशक हो चुके हैं, पर पांचवीं अनुसूची, टीएसी, सीएनटी- एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, वनाधिकार कानून, समता फैसला, स्थानीयता नीति, रोजगार नीति आदि सही ढंग से लागू क्यों नहीं हुए हैं? इससे यही साबित होता है कि अधिकांश आदिवासी जनता और नेता, दोनों ही दोषी है़ं
वैध है त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव पर नगर निगम चुनाव अवैध
एक सवाल के जवाब में श्री मुर्मू ने कहा कि अनुसूचित क्षेत्रों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव वैध है, क्योंकि भारत के संसद ने अनुच्देद 243, 4 (बी) के तहत संविधान में संशोधन कर इसकी बंदिश को हटाया है़ इसी का प्रतिफल पेसा कानून- 1996 है, जो देश के 10 प्रदेशों में लागू है़ पर अनुसूचित क्षेत्रों में नगर निगम चुनाव अवैध है, क्योंकि इसके लिए अब तक संसद में बंदिश को हटाने की कोई संविधान संशोधन नहीं हुआ है़ जो 243 जेडसी (3) के तहत संभव है़
बुरुगुलिकेरा में हुई जघन्य हत्याकांड के पीछे पत्थलगड़ी आंदोलनकारियों का ही हाथ है, जो देश, संविधान और वर्तमान सरकारी व्यवस्था के विरोधी है़ं
टीएसी का हो सकता है गैर आदिवासी अध्यक्ष और सदस्य
उन्होंने कहा कि संवैधानिक प्रावधानों के तहत टीएसी में कोई गैर आदिवासी अध्यक्ष और सदस्य हो सकता है़ अनुच्छेद 244(1), 4 (1) के तहत 15 सदस्य अनिवार्य रूप से आदिवासी होंगे़ बाकी पांच सदस्य गैर आदिवासी भी हो सकते है़ं पर आदिवासी हितों के रक्षार्थ सभी 20 सदस्यों को अनिवार्य रूप से आदिवासी और अध्यक्ष भी आदिवासी होना चाहिए़ संविधान में संशोधन कर यह संभव किया जा सकता है़

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें