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नॉर्थ.. फोटो 1857 की क्रांति में चतरा का अहम योगदान

फोटो दीनबंधू, चतरा इंट्रो– 30 जुलाई 1857 ई को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के आह्वान पर रामगढ़ बटालियन के आठवीं नेटिव इन्फैंट्री के जवानों ने सम्मिलित होने का संकल्प लिया़ दो अक्तूबर 1857 ई को चतरा में मेजर इंगलिश की सेना के साथ मुठभेड़ हुई़ सूबेदार जय मंगल पांडेय व नादिर अली खां के नेतृत्व में […]

फोटो दीनबंधू, चतरा इंट्रो– 30 जुलाई 1857 ई को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के आह्वान पर रामगढ़ बटालियन के आठवीं नेटिव इन्फैंट्री के जवानों ने सम्मिलित होने का संकल्प लिया़ दो अक्तूबर 1857 ई को चतरा में मेजर इंगलिश की सेना के साथ मुठभेड़ हुई़ सूबेदार जय मंगल पांडेय व नादिर अली खां के नेतृत्व में युद्ध करते हुए 150 स्वतंत्रता सैनिकों ने अपने प्राणों की आहूति दे दी़ जय मंगल पांडेय और नादिर अली ने इस जंग में अंगरेजों के छक्के छुड़ा दिये थे़ नयी तकनीकी के तोप,गोला व बारूद के बावजूद पुराने पारंपरिक हथियारों से जवानों ने अंगरेजों के हौसले पस्त कर दिये थे़ हरजीवन तालाब (अब फांसी तालाब) स्थित वृक्षों में वीरों के शवों को लटका दिया गया था़ चतरा की धरती रक्तरंजित हो गयी थी़ छोटानागपुर में 1857 ई की फांसी का पहला स्थान चतरा था़ चतरा जिला का अतीत स्वर्णिम रहा है़ वर्तमान समय में यह जिला उग्रवाद की समस्या से जूझ रहा है़ 1857 की क्रांति में चतरा का अहम योगदान है. यहां के लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था. यहां के स्वतंत्रता सेनानियों ने अंगरेजों के खिलाफ युद्ध कर ब्रिटिश सरकार की नींव हिला दी थी़ 1857 की क्रांति में फंासी का पहला स्थान चतरा है़ यह जिला राज्य के सर्वाधिक पिछड़े जिले के रूप में जाना जाता है़ इस जिले में अब तक लोगों को बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाया है़ 1857 की क्रांति अंगरेजी सत्ता के लिए एक महान चुनौती थी़ इस क्रांति ने ब्रिटिश सरकार को ललकारा था़ यह क्रांति अंगरेजों की गुलामी के जंजीरों को भारत मां के गले से उतार कर फेंकने का जोखिम भरा कदम था़ क्रांतिकारियों ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूमा़ मगर अंगरेजों के सामने झुकना पसंद नहीं किया़ चतरा के पूर्व प्राचार्य डॉ इफ्तेखार आलम के अनुसार 30 जुलाई 1857 ई को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के आह्वान पर रामगढ़ बटालियन के आठवीं नेटिव इन्फैंट्री के जवानों ने सम्मिलित होने का संकल्प लिया़ दो अक्तूबर 1857 ई को चतरा में मेजर इंगलिश की सेना के साथ मुठभेड़ हुई़ सूबेदार जय मंगल पांडेय व नादिर अली खां के नेतृत्व में घमसान युद्ध करते हुए 150 स्वतंत्रता सैनिकों ने अपने प्राणों की आहूति दे दी़ जय मंगल पांडेय और नादिर अली ने इस जंग में अंगरेजों के छक्के छुड़ा दिये थे़ नयी तकनीकी के तोप,गोला व बारूद के बावजूद पुराने पारंपरिक हथियारों से जवानों ने अंगरेजों के हौसले पस्त कर दिये थे़ इसी हरजीवन तालाब (अब फांसी तालाब) स्थित वृक्षों में वीरों के शवों को लटका दिया गया था़ चतरा की धरती रक्तरंजित हो गयी थी़ छोटानागपुर में 1857 ई की फांसी का पहला स्थान चतरा था़ यहां के शहीदों को अंगरेजी सरकार ने देश द्रोह की संज्ञा दी और क्षेत्र को उपेक्षित रखा़ देश की आजादी के बाद भी आज तक स्थिति में सुधार नहीं हुई. दुर्गादत्त पाठक व मंगल राम ने अहम भूमिका निभायी देश की आजादी में सिमरिया के स्वतंत्रता सेनानी दुर्गा दत्त पाठक व मंगल राम ने अहम भूमिका निभायी़ इन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू व नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ देश की आजादी की लड़ाई लड़ी़ दोनों स्वतंत्रता सेनानियों ने सिमरिया के लोगों को अंगरेजी शासन का विरोध करने के लिए एकजुट किया था़ दुर्गादत्त पाठक के नेतृत्व में सिमरिया में अंगरेजी सिपाहियों पर हमला किया गया़ स्व पाठक के पुत्र व सेवानिवृत्त शिक्षक रामविनीत पाठक का कहना है कि उनके पिता घर परिवार को छोड़ कर भारत माता को प्रेम करते थे़ उन्होंने बताया कि जब वे छोटे थे, तब अंगरेजी सिपाहियों ने उनके पिता की बेरहमी से पिटाई कर उन्हें जेल में बंद कर दिया था़ तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व इंदिरा गांधी ने स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित करने के लिए दुर्गा दत्त पाठक को दिल्ली बुलाया था, लेकिन स्व पाठक अस्वस्थ होने के कारण दिल्ली नहीं जा सके. सन 1974 में उनकी मृत्यु हो गयी़ पुत्र रामविनीत पाठक ने बताया कि चतरा में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को आना था़ उनके पिता दुर्गा दत्त और उनके साथी स्वागत के लिए मंच बना रहे थे़ तभी एक अंगरेज सिपाही ने आकर पूछा कहां से आये हो. इस पर दुर्गादत्त पाठक ने कहा कि सिमरिया से़ अंगरेज सिपाही ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि इतनी दूरी से़ इस पर दुर्गादत्त पाठक ने अंगरेज सिपाही से कहा कि जब आप सात समंदर पार आ सकते हैं, तो हम 18 किमी से क्यों नहीं आ सकते़ जवाब सुन कर अंगरेज सिपाही गुस्से में आ गया और उनकी बेरहमी से पिटाई कर दी़ मंगल राम लावालौंग के रहने वाले थे़ उन्होंने लावालौंग में लोगों को देश की आजादी के लिए अंगरेजों के खिलाफ लड़ने के लिए एकजुट किया था़ आज दोनों स्वतंत्रता सेनानियों के लिए मात्र सिमरिया प्रखंड कार्यालय में स्तूप बना हुआ है़

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