लेखक : मुरारी शर्मा, पूर्व सीसीएलकर्मी, सौंदा डी, पतरातू (रामगढ़)इंट्रो– इसमें कोई दो राय नहीं कि हमने आजादी के उषाकाल में बड़े ही उत्साह के साथ तिरंगे को हाथ में लेकर वीर शहीदों का जयघोष करते हुए आजादी का जश्न मनाया. परंतु, यह भी सत्य है कि आजादी के लगभग 15 वर्षों के बाद सन 1962 में जब चीन ने हमारे देश के ऊपर धोखे से आक्रमण किया, हमें हार का सामना करना पड़ा. कारण चाहे जो भी हो, परंतु हम अपने देश के शत्रु को सबक नहीं सिखा पाये. जैसा कि हमने 15 अगस्त 1947 को संकल्प लिया था.भारत वर्ष के इतिहास में 15 अगस्त का दिन स्वतंत्रता दिवस के रूप में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है. स्वतंत्रता का प्रतीक तिरंगा झंडा नील गगन में झूम-झूम कर लहराते हुए दुनिया को यह संदेश देता है कि हमारे देश की संप्रभुता अखंड है. हम सभी भारतवासी एक हैं. कोई भी दुश्मन हमारी तरफ बुरी नजरों से देखेगा, तो उसे हम सबक सिखा कर रहेंगे.इसमें कोई दो राय नहीं कि हमने आजादी के उषाकाल में बड़े ही उत्साह के साथ तिरंगे को हाथ में लेकर वीर शहीदों का जयघोष करते हुए आजादी का जश्न मनाया. खूब वीरतापूर्ण नारे लगाये. परंतु, यह भी सत्य है कि आजादी के लगभग 15 वर्षों के बाद सन 1962 में जब चीन ने हमारे देश के ऊपर धोखे से आक्रमण किया, हमें हार का सामना करना पड़ा. कारण चाहे जो भी हो, परंतु हम अपने देश के शत्रु को सबक नहीं सिखा पाये. जैसा कि हमने 15 अगस्त 1947 को संकल्प लिया था.दूसरी ओर, भारत को छोड़ने से पूर्व अंगरेजों ने मिस्टर जिन्ना को ऐसा पाठ पढ़ाया कि जिन्ना के सिर पर पाकिस्तान का भूत सवार हो गया. भारत-पाकिस्तान विभाजन के विषय पर पंडित नेहरू और महात्मा गांधी के बीच कई दिनों तक बहस होती रही. पर भारत के विभाजन को कोई रोक नहीं पाया और इसके फलस्वरूप उस समय जो परिस्थिति पैदा हुई, सात लाख से अधिक भारतीय अपने में लड़-कट कर समाप्त हो गये. आजादी के जंग में बापू के साथ उनके द्वारा चलाये गये सत्याग्रह में जिन लोगों ने कंधे से कंधा मिला कर साथ दिया था, वे ही एक दूसरे के शत्रु बन गये. यह कैसी विडंबना थी कि आजादी के उस संक्रमण काल में भारत वासियों ने जितनी त्रासदी झेली, अंगरेजों के दो सौ वर्षों के उनके शासनकाल में नहीं झेली होगी.आज भी उन पुराने जख्मों से मवाद रिसता दिखाई पड़ता है. चीन और पाकिस्तान कहने को तो पड़ोसी देश हैं, परंतु इनके क्रिया-कलापों से हमेशा शत्रुता की बू आती है. यह हमारी सीमाओं पर बराबर घुसपैठ की ताक में रहते हैं. चीन की दादागिरी बढ़ती ही जा रही है. वो अपनी विस्तारवादी नीति पर अमल करते हुए हमारे देश के पूर्वोत्तर राज्यों पर अपना हक जताता रहता है. पाकिस्तान हमारे देश की सीमा पर हमेशा सिज फायर का उल्लंघन करता रहता है. हमारे सैनिकों की धोखे से हत्या कर उनका सिर काट ले जाता है. कितनी घृणित एवं क्रूर मानसिकता है पाक सैनिकों की.मुझे तो लगता है कि यह सब भारत के अभिन्न अंग कश्मीर को विवादित बनाये रखने की साजिश के तहत हो रहा है और चीन भी इसमें पाकिस्तान का साथ दे रहा है.हमारा देश शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का पक्षधर है, परंतु इसका मतलब यह नहीं कि हम अपने देश की सीमा का अतिक्रमण करने वालों पर नजर नहीं रखते. हमारे देश की सेना व हमारी सामरिक शक्ति सन 1962 की तुलना में आज पूर्णत: सशक्त है. हम जल, थल और नभ तीनों में दुनिया के अन्य विकसित राष्ट्रों की पंक्ति में आज पूरी शक्ति के साथ खड़े हैं. हम संहार नहीं सृजन के पक्षधर हैं. ”हम किसी को आंख दिखाना नहीं चाहते, हमें आंख झुकाना भी पसंद नहीं, हम आंखों में आंखें डाल कर बात करने में विश्वास रखते हैं।”यह सच है कि सारी समस्याओं का समाधान बातचीत के माध्यम से ही संभव है. परंतु हमारे पड़ोसी देश, खास कर चीन और पाकिस्तान सारी सीमाओं को तोड़ते नजर आ रहे हैं. चीन तो अभी तक अपने पुरानी गीत पर गौरवान्वित है, परंतु पाकिस्तान बार-बार हार का सेहरा पहनने के बावजूद भी अभी तक बचकाना हरकत से बाज नहीं आ रहा. ऐसी परिस्थिति में हमें कोई ठोस कदम उठाना होगा, जो हमारी विदेश नीति के भी अनुकूल हो और हम अपना सामरिक शक्ति का एहसास भी दुनिया को करा सकें.कुछ हद तक हम इसमें सफल भी हुए हैं. परंतु हमारे देश में आंतरिक समस्याएं भी कम नहीं, जिनका समाधान भी हमारे सामने यक्ष प्रश्न बन खड़ा है. लोकतंत्र के जितने भी अपवाद हैं, आज पूरी शक्ति से एक साथ खड़े दिखते हैं. मंडल-कमंडल की बातें होती है. अगड़े-पिछड़े का मुद्दा, अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण हेतु अनर्गल प्रलाप, गुटबाजी और इन्हीं सब के बीच पल रहा आतंकवाद हमारे देश को अंदर से खोखला कर रहा है. सारे विकास कार्य या तो अवरुद्ध हैं या अधूरे पड़े हैं. धन कमाना अच्छी बात है. परंतु, देश को बीमार बना, देश की जनता के साथ छल करके, उनके हितों के साथ विश्वासघात करके कमाया गया धन कुछ समय के लिए समृद्धि का प्रतीक बन सकता है. परंतु कालांतर में काली कमाई का काला पैसा मुंह पर कालिख भी पोत देता है.आजादी के इस पावन पर्व पर समस्त भारत वासियों को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने संयुक्त प्रयासों से देश के अंदर पनप रहे सारे घटकों को, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया के विपरीत है, उनका शमन करेंगे और हम अपनी सारी ऊर्जा अपने देश की संप्रभुता को अक्षुण्ण बनाये रखने में लगा देंगे. हम भाषा, जाति, क्षेत्र, संप्रदाय अथवा धर्म के नाम पर देश को नहीं बंटने देंगे. जय हिंद!
फोटो ..नॉर्थ..देश की संप्रभुता को अक्षुण्ण रखने का संकल्प लें
लेखक : मुरारी शर्मा, पूर्व सीसीएलकर्मी, सौंदा डी, पतरातू (रामगढ़)इंट्रो– इसमें कोई दो राय नहीं कि हमने आजादी के उषाकाल में बड़े ही उत्साह के साथ तिरंगे को हाथ में लेकर वीर शहीदों का जयघोष करते हुए आजादी का जश्न मनाया. परंतु, यह भी सत्य है कि आजादी के लगभग 15 वर्षों के बाद सन […]
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