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रांची के डॉ गौरव ने बनाया चावल दाने से छोटा रडार, दीवार के पार रखी चीजों को भी पकड़ लेगा यह रडार

अभिषेक रॉय रांची : रांची पीस रोड निवासी डॉ गौरव बनर्जी और उनकी टीम ने चावल के दाने से भी छोटे आकार का रडार तैयार किया है. फिलहाल डॉ गौरव बेंगलुरू स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर हैं. यहां उनकी टीम को इसे बनाने में पांच साल का वक्त […]

अभिषेक रॉय

रांची : रांची पीस रोड निवासी डॉ गौरव बनर्जी और उनकी टीम ने चावल के दाने से भी छोटे आकार का रडार तैयार किया है. फिलहाल डॉ गौरव बेंगलुरू स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर हैं. यहां उनकी टीम को इसे बनाने में पांच साल का वक्त लगा. सिमॉस (कॉम्पलिमेंट्री मेटल ऑक्साइड सेमीकंडक्टर) टेक्नोलॉजी की मदद से यह रडार बना है. इसकी खासियत है कि यह दीवार के पार रखी चीज का पता लगा सकती है. इतना ही नहीं, रडार संबंधित वस्तु की दूरी, उसकी गति और आकार का पता लगा सकती है. डॉ बनर्जी ने इस टेक्नोलॉजी को देश की बड़ी उपलब्धि बताया है.

रडार तैयार करने में लगा पांच साल : डॉ गौरव बनर्जी ने बताया कि रडार बनाने का काम 2015 में शुरू किया गया था.

इसकी डिजाइनिंग को लेकर दो साल तक रिसर्च किया गया. डिजाइन फाइनल होने के बाद इसे प्रधानमंत्री के ‘इम प्रिंट प्रोग्राम’ की मदद मिली. 2017 में भारत सरकार से आर्थिक मदद मिलने के बाद रिसर्च एंड डेवलपमेंट में समय लगा. 2019 के जनवरी में चिप की डिजाइन को अंतिम रूप देकर इसे बनने के लिए ताइवान भेजा गया. छह माह बाद यह बनकर वापस आया. इसके बाद अन्य छह माह इसे टेस्ट करने में बीत गये. जनवरी 2020 के अंत में सिमॉस चिप रडार को टेस्ट करने के बाद फाइनल कर दिया गया.

1992 में सेंट जेवियर्स से की इंटर की पढ़ाई

डॉ बनर्जी का परिवार रांची पीस रोड में सौ साल से रह रहा है. उन्होंने बताया कि उनके दादाजी 1920 के दशक में रांची आये थे. आज भी रांची में चौथी पीढ़ी रह रही है. डॉ गौरव ने 10वीं तक की पढ़ाई केंद्रीय विद्यालय, हजारीबाग और बोकारो से की है. इसके बाद 1992 में सेंट जेवियर्स कॉलेज से इंटर की पढ़ाई की. फिर आइआइटी खड़गपुर से इसीइ पूरी की. इसके बाद अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से पीएचडी पूरी की. विभिन्न कंपनियों में काम करने के बाद 2010 में भारत वापस लौट कर आइआइसी ज्वाइन किया.

रक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन और कृषि क्षेत्र में लाभपरक

डॉ गौरव बनर्जी ने बताया कि इस चिपनुमा रडार का इस्तेमाल रक्षा के क्षेत्र में किया जा सकता है. इसके अलावा परिवहन, स्वास्थ्य और कृषि क्षेत्र में भी यह उपयोगी है.

उन्होंने बताया कि परिवहन के क्षेत्र में इसे ऑटोमोटिव रडार के रूप में वाहन में इस्तेमाल किया जा सकता है. भविष्य में यह एडवांस ड्राइवर असिस्टेंट सिस्टम यानी ऑटोमेटिक कार को भी मजबूती देगा. वहीं कृषि क्षेत्र और पशुपालन में लोगों को मदद मिलेगी. रडार के जरिये जानवरों के बीच होनेवाली बीमारी और पौधे के तेजी से नष्ट होने के कारण का पता लगाया जा सकता है. जानवरों में होनेवाली बीमारी का यह रडार एक साथ सैकड़ों जानवर की हृदय गति और श्वसन तंत्र का मेजरमेंट कर पता लगा सकेगा.

चिप के आकार के रडार में कई उपकरण

सिमॉस टेक्नोलॉजी से बने इस रडार में एक ट्रांसमीटर, तीन रिसीवर और एक उन्नत फ्रीक्वेंसी सिंथेसाइजर लगाया गया है. डॉ बनर्जी ने बताया कि इन सभी इलेक्ट्राॅनिक उपकरणों को एक छोटे चिप के रूप में बदलना ही चुनौती थी. यही कारण है कि इसके बनने में समय लगा. वर्तमान में इस रडार को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) के साथ जोड़ने की प्रक्रिया चल रही है.

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