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आसान नहीं महिलाओं की नाइट ड्यूटी की राह

आसान नहीं महिलाओं की नाइट ड्यूटी की राह नई दिल्लीमहिलाओं को नाइट शिफ्ट की इजाजत देने के मकसद से केंद्र सरकार ने फैक्ट्रीज ऐक्ट 1948 में संशोधन की पहल जरूर की है, लेकिन इसकी मांग करने वाली इंडस्ट्री ही इस मसले पर बंटी हुई है। राज्यों के कानून भी इसके आड़े आएंगे और राज्यों के […]

आसान नहीं महिलाओं की नाइट ड्यूटी की राह नई दिल्लीमहिलाओं को नाइट शिफ्ट की इजाजत देने के मकसद से केंद्र सरकार ने फैक्ट्रीज ऐक्ट 1948 में संशोधन की पहल जरूर की है, लेकिन इसकी मांग करने वाली इंडस्ट्री ही इस मसले पर बंटी हुई है। राज्यों के कानून भी इसके आड़े आएंगे और राज्यों के अब तक के रु ख को देखकर नहीं लगता कि महिला कर्मचारियों के लिए नाइट ड्यूटी की राह आसान होगी। दिल्ली-एनसीआर में कुछ बड़ी आईटी और हॉस्पिटैलिटी कंपनियों व मीडिया संस्थानों को छोड़कर सिर्वस सेक्टर में भी महिलाओं की रात में भागीदारी नहीं के बराबर है। मॉल्स, कॉल सेंटर्स और दूसरे कमर्शल वर्कप्लेस के लिए राज्यों ने अपने कानून थोड़े लचीले किए हैं, लेकिन वहां भी आए दिन लेबर डिपार्टमेंट और पुलिस का हस्तक्षेप देखने को मिलता है। कंपनियों का कहना है कि अमेंडमेंट के बाद भी वे महिलाओं को तब तक नाइट शिफ्ट में नहीं लगाएंगे, जब तक सरकार लॉ ऐंड ऑर्डर और सेफ्टी इन्फ्रास्ट्रक्चर का इंतजाम करे। महंगा पड़ेगा सेफ्टी का खर्चटेलिकॉम इंडस्ट्री ऐंड सिर्वसेज असोसिएशन ऑफ इंडिया के प्रेजिडेंट और इलेक्ट्रॉनिक्स फर्म एल्टेक सिस्टम्स के सीएमडी प्रबीर कुमार सांडेल ने कहा, सिर्फ अमेंडमेंट से कुछ नहीं होगा। अभी तो आईटी और सिर्वस सेक्टर में ही महिलाओं के पोटेंशल का पूरा इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। असेंबलिंग लाइन और प्रॉडक्शन में उन्हें लाने के लिए सरकार को सेफ्टी में मदद करनी होगी। सेफ्टी का सारा खर्च कंपनियां नहीं उठा सकतीं। उन्होंने बताया कि 60,000 महिला कर्मचारियों वाले आईटी हब गुड़गांव में कुछ गिनी-चुनी एमएनसी को छोड़कर दूसरे बीपीओ और कॉल सेंटर्स अब तक महिलाओं को नाइट शिफ्ट में काम नहीं दे पाए हैं। फेल हुए अमेंडमेंट2005 में फैक्ट्रीज ऐक्ट में मामूली संशोधन कर टेक्सटाइल्स और आईटी सेक्टर को महिलाओं से रात में सीमति अविध तक काम लेने की इजाजत दी गई, लेकिन कुछ दिन बाद ही हरियाणा सरकार ने गुड़गांव के कॉल सेंटर्स को नोटिस जारी कर निर्देश दिया कि वे महिलाओं से रात में काम नहीं लें। कॉल सेंटर्स ने इसे कोर्ट में भी चुनौती दी, लेकिन राज्य सरकर की यह दलील भारी पड़ी कि कॉल सेंटर आईटी नहीं बल्कि आईटी इनेबल्ड सिर्वसेज (आईटीईएस) में आते हैं और उन पर अमेंडमेंट लागू नहीं होता। जानकार बताते हैं कि सरकार ने बाद में आईटी में भी सिर्फ उन्हीं को ऐसा करने की इजाजत दी, जिन्होंने उसके सेफ्टी नॉर्म्स का पालन किया। विमिन उद्यमियों की रायफेडरेशन ऑफ इंडियन विमिन आंत्रप्रेन्योर्स की रशेल सक्सेना ने कहा, एक्सटेंडेड ऑवर्स में काम नहीं कर पाने से वेज गैप बढ़ता है और महिलाओं का करियर ग्रोथ भी रु कता है, लेकिन हम इसकी इजाजत तभी देंगे जब कानून व्यवस्था सही हो। दिल्ली शॉप्स ऐंड इस्टैब्लिशमेंट ऐक्ट 1954 में कहा गया है कि किसी भी व्यावसायिक या कारोबारी परिसर में महिलाओं से रात 8 बजे से सुबह 7 बजे के बीच काम नहीं लिया जा सकता। राजधानी की हॉस्पीटैलिटी लॉबी के दर्जनभर टॉप होटल्स को इससे छूट दे दी गई, लेकिन बाद में एलजी ने यह छूट खत्म कर उन्हें भी इसके दायरे में ला दिया। छोटी कंपनियों की चिंतादिल्ली की 50 हजार से अधिक छोटी फैक्तिट्रयों की नुमाइंदगी करने वाले अपेक्स चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्स्ट्री की ओर से भी फैक्ट्रीज ऐक्ट में संशोधन के लिए केंद्र सरकार को सुझाव भेजे गए हैं। चैंबर के वाइस प्रेजिडेंट रघुवंश अरोड़ा ने कहा, लेबर लॉज और विमिंज़ विर्कंग ऑवर्स में ढील हम भी चाहते हैं, लेकिन यह तभी सफल होगा जब केंद्र सरकार राज्यों और स्थानीय उद्यमियों से बात करे। करीब 7000 यूनिटों वाले नोएडा आंत्रप्रेन्योर्स असोसिएशन के प्रेजिडेंट विपिन मल्हन ने कहा, एमएसएमई गेट के अंदर की जिम्मेदारी ले सकते हैं, लेकिन महिलाओं के घर तक की सेफ्टी का इंतजाम करना और इसका खर्च उठाना उनके लिए संभव नहीं। उन्होंने कहा कि नोएडा में आधे से ज्यादा इंडस्ट्रियल एरिया मेनस्ट्रीम ट्रांसपोर्ट से कनेक्टेड नहीं हैं।

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