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VIDEO : बाबूलाल के भाजपा में शामिल होने की चर्चा पर क्या है राजनीतिक पार्टियों की राय ?

रांची : झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी के अपने पुराने घर यानी भाजपा में लौटने की चर्चा तेज है. उनका भाजपा में वापस आना तय माना जा रहा है. पांच जनवरी को जब मरांडी ने झाविमो कार्यसमिति भंगकर दी तो अटकलें और तेज हो गयी. इधर, भाजपा में पार्टी के विलय को लेकर […]

रांची : झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी के अपने पुराने घर यानी भाजपा में लौटने की चर्चा तेज है. उनका भाजपा में वापस आना तय माना जा रहा है. पांच जनवरी को जब मरांडी ने झाविमो कार्यसमिति भंगकर दी तो अटकलें और तेज हो गयी. इधर, भाजपा में पार्टी के विलय को लेकर झाविमो के वरिष्ठ पदाधिकारियों और जिलाध्यक्षों के बीच रायशुमारी भी चल रही है.

बदलते राजनीतिक परिदृश्य में पार्टियों का क्या हाल है. इस फैसले से तीन बड़ी पार्टियां प्रभावित होगी जिसमें जेवीएम ( प्र), कांग्रेस और भाजपा शामिल है. हमने इन तीन पार्टियों के प्रवक्ता से बात की. यह जानने का प्रयास किया कि संगठन के तौर पर बड़े नेताओं से इतर पार्टी के आम कार्यकर्ताओं का क्या मत है?. इस फैसले से राजनीतिक नफा नुकसान कितना होगा ?

प्रतुल शाहदेव ( प्रवक्ता, भाजपा)

बाबूलाल मरांडी के भाजपा में शामिल होने को लेकर प्रदेश स्तर पर कोई सूचना नहीं है. इस तरह के बड़े फैसले केंद्रीय नेता और प्रदेश के सचिव लेते हैं.
पार्टी के साधारण कार्यकर्ता इस फैसले पर क्या सोचते हैं ?
हमारी पार्टी अनुशासन के साथ काम करती है और पार्टी के लिए हर फैसले के साथ होती है.
चुनाव से ठीक पहले जिस तरह पार्टी ने दूसरी पार्टी के विधायकों को लाकर टिकट दिया उसका तो नुकसान उठाना पड़ा ?
हमें नुकसान आजसू के साथ गठबंधन ना करने का हुआ अगर उनके साथ गठबंधन होता तो पार्टी निश्चित तौर पर 16 सीटें जीतती और इसका फायदा होता
विधायक दल का नेता अबतक नहीं चुना गया है
इसमें देरी हो रही है पार्टी इस पर जल्द फैसला लेगी. प्रदेश अध्यक्ष ने इस्तीफा दे दिया है लेकिन उनका इस्तीफा अबतकक स्वीकार नहीं किया गया है, चुनाव में हार की समीक्षा हो रही है.
क्या रघुवर दास जी को पार्टी में संगठन मजबूत करने को लेकर कोई बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जायेगी ?
रघुवर दास जी हार के बाद लगातार जनता के संपर्क में हैं और इसमें कोई दो राय नहीं है कि अभी भी वह झारखंड में भाजपा का चेहरा हैं. हार के बाद भले लोग यह कह रहे हैं कि उनके नेतृत्व में चुनाव पर असर पड़ा लेकिन लोकसभा चुनाव में संथाल में हमें उन्ही के चेहरे पर जीत मिली. इस क्षेत्र में उन्होंने बहुत काम किया था.
आलोक- ( कांग्रेस, प्रवक्ता )
बंधु तिर्की और प्रदीप यादव कांग्रेस के संपर्क में हैं. इस सवाल पर आलोक ने बताया कि दोनों नेता हमारे शीर्ष नेतृत्व के साथ संपर्क में हैं. बंधु तिर्की को लेकर मैं इतना कह सकता हूं कि पार्टी में आने की उनकी संभावना ज्यादा है क्योंकि वह शुरूआत से ही यूपीए फोल्डर के नेता रहे हैं. कांग्रेस के कार्यकर्ता भी चाहते हैं कि बंधु पार्टी में शामिल हों. संघर्ष वाले नेता हैं हमारे साथ रहे हैं.
क्या बंधु तिर्की के पार्टी में शामिल होने के साथ- साथ मंत्री पद देने की भी तैयारी है ?
बंधु पार्टी में आ रहे हैं लेकिन मंत्रीपद को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई है. हमारे यहां मोलभाव नहीं चलता है. चुनाव से पहले भी कई नेता कांग्रेस में शामिल हुए थे लेकिन किसी को टिकट देना का वादा नहीं किया था हमने. बंधु पार्टी में आते हैं तो पार्टी की आवश्यकता के अनुसार उन्हें जिम्मेदारी सौंपी जायेगी.
प्रदीप यादव कांग्रेस के संपर्क में हैं ?
प्रदीप यादव शीर्ष नेताओं के साथ संपर्क में है. हमारी पार्टी केंद्रीय नेतृत्व से चलती है. मैं यह कह सकता हूं कि प्रदेश स्तर पर अबतक दोनों को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है लेकिन बंधु जी के हमारे साथ आने की संभावना है
सरोज सिंह ( प्रवक्ता- JVM (P) )
बाबूलाल मरांडी पार्टी का विलय भाजपा में कर रहे हैं क्या यह सही है ?
राजनीति में संभवनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता हालांकि अबतक हमारे पास इसे लेकर कोई आधिकारिक सूचना नहीं है.
अगर बाबूलाल भाजपा में शामिल हो रहे हैं तो पार्टी का आम कार्यकर्ता का इस पर क्या मत है ?
हमारी पार्टी का कार्यकर्ता बाबूलाल जी के फैसले के साथ है. वह राज्यहित में भी जो भी फैसला लेंगे मंजूर होगा.इससे ज्यादा मैं आपको कुछ नहीं बता पाऊंगा
बाबूलाल के इस फैसले से क्या असर होगा
अगर बाबूलाल मरांडी भाजपा में शामिल होते हैं तो राज्य को एक और आदिवासी चेहरा मिल जायेगा. ऐसे में राज्य में वैसे नेताओं की राजनीति पर असर पड़ेगा जो खुद को आदिवासी चेहरे के रूप में और मजबूत करने में लगे हैं. इन नेताओं का जिक्र करें तो सबसे बड़ा नाम अर्जुन मुंडा का है. बाबूलाल के बाद 2003 में अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली थी. अर्जुन मुंडा खूंटी से सांसद हैं और राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति कर रहे हैं. उन्हें आदिवासी कल्याण मंत्रालय मिला है.
कैसा रहा है बाबुलाल मरांडी का राजनीतिक सफर
बाबूलाल मरांडी राज्य के पहले मुख्यमंत्री रहे. शुरुआती पढ़ाई गांव से पूरी करने के बाद उन्होंने गिरिडीह कॉलेज में दाखिला लिया इस दौरान वह संघ और आरएसएस में काम करते रहे उन्हें विश्व हिन्दू परिषद का सचिव बनाया गया. भाजपा ने 1991 में यहां से लोकसभा चुनाव का टिकट दिया लेकिन इस सीट से बाबूलाल जीत नहीं पाये. साल 1996 में एक बार फिर वे शिबू सोरेन से इसी सीट पर मात खा गए. इस हार के बाद भी पार्टी ने उन पर भरोसा किया औऱ 1998 के विधानसभा चुनाव के लिए मरांडी को भाजपा का अध्यक्ष बना दिया . इसी साल हुए आम चुनाव में वे जीतने में कामयाब रहे. 1999 में अटल सरकार में उन्हें वन पर्यावरण राज्य मंत्री बनाया गया. 2000 में झारखंड राज्य बनने के बाद एनडीए सरकार में बाबूलाल ने राज्य में सरकार बनाई.
साल 2003 में अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बना दिया गया. 2004 के लोकसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी ने कोडरमा सीट से चुनाव जीता. 2006 में कोडरमा सीट सहित बीजेपी की सदस्‍यता से भी इस्तीफा देकर ‘झारखंड विकास मोर्चा’ नाम से नयी राजनीतिक पार्टी बनाई. 2014 के चुनाव में बाबूलाल की पार्टी ने 8 विधानसभा सीटों पर कब्जा किया. भाजपा ने उनके छह विधायकों को अपनी पार्टी में कर लिया. 2014 में बाबूलाल मरांडी के भाजपा में जाने की बात लगभग तय माना जा रहा था लेकिन बाबूलाल ने फैसला लेने में समय लिया और उनके विधायक भाजपा में चले गये. अब एक बार फिर बाबूलाल मरांडी के भाजपा में शामिल होने की चर्चा तेज है.

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