-कैंटीन निजी हाथों में जाये, तो तीन रुपये की दाल 75 में मिलेगीसेंट्रल डेस्कसन 2003 में चिकेन बिरियानी 27.50 रुपये की, 2009 में 33 रुपये की और अभी 51 रुपये की. आप हैरत में पड़ जायेंगे कि यह जन्नत कहां है. साहब, जन्नत तो वहीं होती है, जहां हुक्मरान रहते हैं. 50 रुपये में एक भरपूर प्लेट चिकेन बिरियानी का मजा लेते हैं हमारे सांसद, संसद की कैंटीन में. आप 80 रुपये में एक किलो टमाटर खरीदते हैं और सांसद अपनी कैंटीन में इतने पैसे में ब्रेड के साथ टमाटर सूप (8 रुपये), तली मछली व चिप्स (25 रु पये), सैंडविच (6 रुपये), फलों का ताजा रस (14 रु पये), फलों का सलाद क्रीम के साथ (14 रुपये) और पुडिंग (12 रुपये) का लुत्फ उठा सकते हैं. इतना सब खाने-पीने के बाद भी उनके पास एक रुपया बच जायेगा, जबकि टमाटर आपको पूरा एक किलो मिल पायेगा या नहीं, इसकी गारंटी नहीं है. जिसे 15 रुपये से कम में, शाकाहारी थाली मिल रही हो, अगर उसे बताया जाये कि 75 रुपये सिर्फ दाल के लगेंगे, तो वह हैरान नहीं होगा, बल्कि भड़क उठेगा. ऐसा ही कुछ हुआ हमारे सांसदों के साथ. कुछ दिन पहले संसद की कैंटीन में खाना खाकर सपा सांसद राम गोपाल यादव और जया बच्चन बीमार पड़ गये. यह मामला जोर-शोर से संसद में उठा. लगभग 300 कर्मचारियों वाली, संसद की कैंटीन ‘न नफा न नुकसान’ के आधार पर उत्तर रेलवे चलाता है, जिसके लिए उसे भारी सब्सिडी मिलती है. सांसदों की शिकायत को देखते हुए, उत्तर रेलवे ने सोचा कि क्यों न खाना बाहर से मंगाया जाये. इसके लिए खान-पान के क्षेत्र में सक्रिय मशहूर कंपनियों- आइटीसी, एमटीआर और हल्दीराम वगैरह को बुलाया गया.मंगलवार को इस सिलसिले में एक बैठक हुई. संसद के अधिकारियों को जब निजी कंपनियों के भाव के बारे में पता चला, तो वे दंग रह गये. संसद की कैंटीन में सांसदों को दाल फ्राई अभी 3 रुपये में मिलती है. हल्दीराम ने इसके लिए 50 रु पये, एमटीआर ने 60 और आइटीसी ने 75 रुपये की मांग की है. सांसदों के बीच काफी लोकप्रिय, मटर पनीर के लिए हल्दीराम का भाव 60 रु पये, एमटीआर का 75 और आइटीसी का 80 रु पये है. बैठक बेनतीजा रही, लिहाजा फिलहाल कैंटीन जैसे चल रही थी, चलती रहेगी. कंपनियों ने कहा कि उन्होंने जो भाव बताया है, उससे कम में खाना नहीं दे सकतीं. संसदीय सचिवालय के अधिकारी जानते हैं कि कंपनियों ने जो भाव बताया है, अगर वह लागू कर दिया गया तो सांसद भड़क उठेंगे.हर साल करोड़ों की सब्सिडीपिछली बार, दिसंबर 2010 में कैंटीन में खाने-पीने की चीजों की कीमतें बढ़ी थीं. इसके पहले यह बढ़ोतरी 2009, 2003 और 1985 में की गयी थी. 2000-2001 में कैंटीन को सालाना लगभग दो करोड़ रुपये सब्सिडी मिलती थी. 2007-08 में यह 5.33 करोड़ और 2008-09 में 7.44 करोड़ रुपये हो गयी. 2011-12 में यह सब्सिडी 11.94 करोड़ रुपये पहुंच गयी. 2013-14 में सब्सिडी 14 करोड़ रुपये रही. रेलवे के एक अधिकारी ने बताया, हम यहां 1968 से कैंटीन चला रहे हैं. राज्यसभा और लोकसभा सचिवालय का हम पर पिछले तीन साल की सब्सिडी का 27 करोड़ रुपये बकाया है. इसके पहले का भी बकाया है जिसे हम बट्टे खाते में डाल चुके हैं.पुरानी है सांसदों की शिकायत2003 में भी सांसदों ने कैंटीन का खाना अच्छा न होने की शिकायत की थी. तब यह चर्चा उठी थी कि राज्य सभा सांसद और मशहूर होटल संचालक ललित सूरी संसद कैंटीन की जिम्मेदारी संभाल सकते हैं. सूरी ने कहा था कि वह बगैर कीमतें बढ़ाये ही कैंटीन को सुधार देंगे, क्योंकि उनके पास होटल कारोबार का लंबा अनुभव है. लेकिन ऐसा नहीं हो सका था और कैंटीन रेलवे ही चलाती रहा.दूर पकता है खाना2012 में दिल्ली के दमकल विभाग की आपत्ति के बाद संसद के मुख्य परिसर में खाना पकना बंद हो चुका है. सुरक्षा कारणों से कैंटीन संचालकों को खाना दो किलोमीटर दूर संसद के विस्तारित परिसर के रसोईघर में पकाना पड़ता है. मुख्य भवन में गैस सिलिंडिरों का इस्तेमाल मना है. रेलवे ने पाइप से गैस लाने का प्रस्ताव दिया है, जिससे मुख्य भवन में खाना पक सके. इस प्रस्ताव पर संसद के जवाब का इंतजार है. जब सत्र चल रहा होता है, तो रोज तकरीबन चार हजार लोग संसद की कैंटीन में खाते हैं. रसोई दूर होने पर इतनी बड़ी जरूरत को पूरा करना चुनौती भरा होता है. कैंटीन से निकलनेवाले कचरे और उसकी बदबू की वजह से भी कैंटीन को मुख्य भवन से दूर रखा गया है.
जब सांसदों को पता चला आटे-दाल का भाव
-कैंटीन निजी हाथों में जाये, तो तीन रुपये की दाल 75 में मिलेगीसेंट्रल डेस्कसन 2003 में चिकेन बिरियानी 27.50 रुपये की, 2009 में 33 रुपये की और अभी 51 रुपये की. आप हैरत में पड़ जायेंगे कि यह जन्नत कहां है. साहब, जन्नत तो वहीं होती है, जहां हुक्मरान रहते हैं. 50 रुपये में एक […]
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