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आगमन का पुण्यकाल-2 : यीशु मसीह के साथ मेरा रिश्ता क्या है ?
फादर अशोक कुजूर समुद्र के किनारे एक बच्चा खेल रहा था़ अचानक एक लहर आयी और बच्चे का चप्पल अपने साथ बहा ले गयी़ बच्चे ने रेत पर लिख दिया : समुद्र चोर है़ उसी समुद्र के दूसरे किनारे पर एक मछुआरा, मछली पकड़ रहा था़ उसने रेत पर लिखा : समुद्र मेरा पालनहार है […]
फादर अशोक कुजूर
समुद्र के किनारे एक बच्चा खेल रहा था़ अचानक एक लहर आयी और बच्चे का चप्पल अपने साथ बहा ले गयी़ बच्चे ने रेत पर लिख दिया : समुद्र चोर है़ उसी समुद्र के दूसरे किनारे पर एक मछुआरा, मछली पकड़ रहा था़ उसने रेत पर लिखा : समुद्र मेरा पालनहार है
एक युवक समुद्र में नहाने गया और डूब कर मर गया़ उसकी मां ने रेत पर लिखा : समुद्र हत्यारा है़ उसी समुद्र के दूसरे किनारे पर एक गरीब बूढ़ा रेत पर टहल रहा था़ उसे एक बड़े सीप में एक अनमोल मोती मिला़ उसने रेत पर लिखा : समुद्र दानी है़ अचानक समुद्र से एक बड़ी लहर आयी और सभी लिखे हुए को मिटा कर चली गयी़ समुद्र वही था, पर समुद्र को देखने का लोगों का नजरिया अलग था़
यीशु मसीह को भी लोगों ने अपने-अपने नजरिए से देखा है़ कुछ लोगों के लिए यीशु मुक्तिदाता, चंगाईकर्ता, चमत्कार करने वाला, तारणहार, उद्धारकर्ता, शांतिदाता, ईशपुत्र थे. वहीं कुछ लोगों ने उन्हें अपदूतग्रस्त, विद्रोही, ईश निंदक और अपराधी भी कहा़ स्वर्गदूत ने यीशु मसीह को जो संज्ञा दी वह थी- ईम्मानुएल अर्थात ईश्वर हमारे साथ है
इस आगमन काल में इस पर चिंतन करने की जरूरत है कि मेरे और यीशु मसीह के बीच के रिश्ते को मैं क्या नाम दूं? मेरे लिए यीशु कौन हैं? इस रिश्ते को परिभाषित करना हर ख्रीस्तीय के लिए महत्वपूर्ण है़
लेखक डॉन बॉस्को यूथ एंड एजुकेशनल सर्विसेज, बरियातू के निदेशक हैं
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