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झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 : इस बार कई सीटों पर है कांटे की टक्कर, 25 और 35 वोटों के अंतर से जीतने का भी है रिकॉर्ड

सुनील चौधरी कई सीटों पर बहुत ही कम अंतर से हुआ है फैसला रांची : झारखंड विधानसभा चुनाव में जहां प्रत्याशी 70 हजार से अधिक वोटों से भी जीत दर्ज करते हैं. वहीं कम वोटों से भी जीतनेवाले प्रत्याशी हैं. कड़ी टक्कर में यहां 25 वोट से भी जीत कर विधायक बने हैं. जो हारते […]

सुनील चौधरी

कई सीटों पर बहुत ही कम अंतर से हुआ है फैसला

रांची : झारखंड विधानसभा चुनाव में जहां प्रत्याशी 70 हजार से अधिक वोटों से भी जीत दर्ज करते हैं. वहीं कम वोटों से भी जीतनेवाले प्रत्याशी हैं. कड़ी टक्कर में यहां 25 वोट से भी जीत कर विधायक बने हैं. जो हारते हैं, उन्हें कसक रह जाती है कि काश थोड़ी और मेहनत कर लेते.

या उनके समर्थकों को लगता है कि काश परिवार के लोग भी वोट दे देते. या जो वोट नहीं देने गये थे, उन्हें लगता है कि शायद वो वोट दे देते, तो उनके प्रत्याशी की जीत हो जाती. झारखंड में पूर्व में भी कई सीटों पर कांटे की टक्कर होती रही है. वर्ष 2019 के चुनाव में भी कई सीट पर जोरदार टक्कर है. किसका पलड़ा भारी होगा, यह कहना कठिन है. यहां कुछ ऐसे ही सीट का जिक्र किया जा रहा है, जहां कम मतों के अंतर से हार-जीत का फैसला हुआ था.

हुसैनाबाद से 35 वोटों से जीते थे कमलेश

वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव में हुसैनाबाद सीट से एनसीपी के कमलेश सिंह ने केवल 35 वोट से जीत दर्ज की थी. राजद के संजय कुमार सिंह यादव को उन्होंने हराया था. कमलेश सिंह को 21661 वोट मिले थे जबकि संजय सिंह यादव को 21626 वोट मिले थे.

हटिया से 25 वोटों से जीते थे शाहदेव

वर्ष 2009 विधानसभा चुनाव में हटिया सीट पर सिर्फ 25 वोट से जीत-हार का फैसला हुआ था. हटिया से कांग्रेस के प्रत्याशी गोपाल शरण नाथ शाहदेव ने भाजपा के रामजी लाल सारडा को मात्र 25 वोटों से हराया था. गोपाल शरण नाथ शाहदेव को 39921 वोट मिले थे और भाजपा को 39896 वोट मिले थे.

तोरपा से 43 वोट से पौलुस जीते थे

वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में तोरपा सीट से झामुमो प्रत्याशी पौलुस सुरीन ने भाजपा के कोचे मुंडा को महज 43 वोट के अंतर से हराया था. तोरपा विधानसभा सीट पर हुए कांटे के संघर्ष में पौलुस सुरीन को 32003 वोट मिले थे, जबकि कोचे मुंडा को 31960 मिले थे.

एक हजार से कम वोटों से जीत-हार हुई है…

इनके अलावा ऐसे भी प्रत्याशी रहे हैं, जो एक हजार से कम वोटों के अंतर से जीते हैं. इनमें 2014 में बड़कागांव सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी निर्मला देवी ने आजसू प्रत्याशी रौशन लाल चौधरी को 411 वोटों से हराया था.

2009 के चुनाव में भी कमल किशोर भगत ने सुखदेव भगत को 606 वोटों से हराया था. फिर 2014 के चुनाव में ही लोहरदगा सीट पर आजसू के कमल किशोर ने कांग्रेस के सुखदेव भगत को 411 वोट से हराया था. 2014 के चुनाव में राजमहल सीट पर भाजपा के अनंत ओझा ने झामुमो के मो ताजुद्दीन को 702 वोट के अंतर से हराया था.2014 विधानसभा चुनाव में बोरियो सीट पर भाजपा के ताला मरांडी ने झामुमो के लोबिन हेंब्रम को 712 वोटों से हराया था. इसी तरह वर्ष 2005 में बिसुनपुर सीट से भाजपा के चंद्रेश उरांव ने निर्दलीय चमरा लिंडा को 569 वोटों से हराया था.

1967 से लगातार वोट दे रहे हैं देवराज खत्री, कहा- जरूर करें मतदान

रांची के कृष्णा नगर कॉलोनी निवासी 75 वर्षीय देवराज खत्री ने कहा कि वे 1967 से लगातार मतदान करते आ रहे हैं. उन्होंने कहा : 1967 में जब मैं पहली बार मतदान करने गया था, मुझे काफी खुशी महसूस हुई थी.

पहले के चुनाव की तुलना में अब पारदर्शिता अधिक आयी है, लेकिन पहले जो खुशी देखने को मिलती थी, वह खुशी अब नहीं देखने को मिलती है . उन्होंने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों के लिए बूथ पर किसी तरह की सुविधा उपलब्ध नहीं होती है. कम से कम अलग से लाइन की व्यवस्था होनी चाहिए और बैठने के लिए कुर्सी तक होना चाहिए.

पहले जहां बैलेट से चुनाव होता था अब इवीएम से हो रहा है. जिस कारण से वोटिंग से लेकर मतगणना तक जल्दी-जल्दी हो जा रहा है. बावजूद भी यह देखने को मिल रहा है कि मतदान का प्रतिशत घटता जा रहा है और इसकी मुख्य वजह लोगों में प्रत्याशी के प्रति आकर्षण का ना होना है . क्योंकि प्रत्याशी सिर्फ चुनावी घोषणाएं करते हैं और काम के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति करते हैं.

इसके कारण वोटरों में निराशा का भाव पैदा होता जा रहा है और चुनाव या वोट के प्रति उत्साह में कमी आ रही है, जो स्वाभाविक है. परंतु मेरा सबों से आग्रह कि अपने मताधिकार का प्रयोग करें मतदान अवश्य करें और दूसरों को भी मतदान के लिए प्रेरित करें कम से कम हम वृद्ध से यह सीख अवश्य लें .

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