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खेत बचाने में महिलाएं आगे : दयामनी

रांची : नीदरलैंड के हेग शहर में स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज द्वारा ‘आदिवासियों के प्रतिदिन का जीवन : भारत से आदिवासियों की आवाज’ विषय पर सेमिनार का आयोजन हुअा, जिसमें आदिवासी प्रतिनिधि दयामनी बारला ने कहा कि आदिवासी समाज समतामूलक और सामुदायिकता पर आधारित है़ खेत में काम करने से लेकर खेत बचाने […]

रांची : नीदरलैंड के हेग शहर में स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज द्वारा ‘आदिवासियों के प्रतिदिन का जीवन : भारत से आदिवासियों की आवाज’ विषय पर सेमिनार का आयोजन हुअा, जिसमें आदिवासी प्रतिनिधि दयामनी बारला ने कहा कि आदिवासी समाज समतामूलक और सामुदायिकता पर आधारित है़

खेत में काम करने से लेकर खेत बचाने के आंदोलन तक में महिलाओं और पुरुषों ने बराबरी की भूमिका निभायी है़ जब ब्रिटिश हुकूमत ने आदिवासियों से उनकी जमीन का लगान मांगा, तब 1770 में प्रतिकार शुरू हुआ, जो 1900 तक अलग- अलग रूप में चला़
‘आदिवासियों की जमीन पर सरकार और माओवादी’ विषय पर एक्टिविस्ट ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि सरकार व माओवादियों के बीच संघर्ष में नुकसान आदिवासियों का हुआ है़ इसमें मारे गये ज्यादातर पुलिसकर्मी, आम आदमी और नक्सली आदिवासी ही हैं.
नक्सली आंदोलन की शुरुआत के दौर में उन्होंने आदिवासियों के हक की रक्षा के लिए कुछ काम जरूर किया, लेकिन इस आंदोलन की वजह से आज आदिवासियों के लोकतांत्रिक आंदोलनों को भी नक्सली आंदोलन बताकर सरकार कहर बरपाती है़ सेमिनार में बिजू टोप्पो द्वारा निर्देशित डॉक्यूमेंटरी फिल्म ‘प्रतिकार’ और ‘द हंट’ की स्क्रीनिंग भी हुई़ इसमें विश्वविद्यालय के शिक्षक और शोधार्थी शामिल हुए़

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