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नदियों को निगल रहा शहर
मनोज सिंह/विवेक चंद्र, रांची : कभी अपनी तेजी पर इतराने वाली नदियां अब केवल नाला भर बन कर रह गयी हैं. अतिक्रमण के कारण नदियों का उद्गम स्थल अब जनवरी में ही सूखने लगता है. अतिक्रमण ने नदियों की गहराई पाट दी है. नदी की राह उथली हो चुकी है. फरवरी की शुरुआत में ही […]
मनोज सिंह/विवेक चंद्र, रांची : कभी अपनी तेजी पर इतराने वाली नदियां अब केवल नाला भर बन कर रह गयी हैं. अतिक्रमण के कारण नदियों का उद्गम स्थल अब जनवरी में ही सूखने लगता है. अतिक्रमण ने नदियों की गहराई पाट दी है. नदी की राह उथली हो चुकी है. फरवरी की शुरुआत में ही शहर के आसपास से गुजरनेवाली सभी नदियों में पानी की पतली धार भी नहीं बचती है. उनमें केवल शहर के नालों से निकलने वाली गंदगी बहती है. दरअसल, शहर के आसपास की सभी नदियां अब केवल शहर का कूड़ा निकालने वाले नाले का स्वरूप ले चुकी हैं.
सूख चुका है जल संग्रहण क्षेत्र
अतिक्रमण ने शहर के आसपास की सभी नदियों का जल संग्रहण क्षेत्र भी सूखा दिया है. नतीजा, कभी मई-जून में बंद होनेवाले जल प्रपातों से अब फरवरी महीने में ही पानी गायब हो जाता है. नदियों के सूखने का असर ग्राउंड वाटर लेबल पर भी खूब पड़ा है. नदियों के आसपास के क्षेत्र में भी भूमिगत जलस्रोत पाताल तक पहुंच गये हैं. डीप बोरिंग फेल हो रहे हैं. कई जगहों पर हजार फीट गहरे जाने पर भी पानी नहीं मिल रहा है. कोशिशों के बाद भी हरमू नदी का संरक्षण नहीं हो रहा है. यही हाल रहा, तो अगले 10 बरस से भी कम समय में स्वर्णरेखा और जुमार जैसी बरसाती नाला बन चुकी नदियों का भी नाम-निशान मिट जायेगा.
चुप हैं सरकार और प्रशासन
नदियों की राह में लगातार किये जा रहे निर्माण पर सरकार खामोश है. निर्माण पूरी तरह अवैध होने के बावजूद उनको हटाने या रोकने की कोई कोशिश नहीं की जाती है. भूमिगत जल का स्तर ऊपर उठाने के लिए भी सरकार या प्रशासन द्वारा किया जा रहा प्रयास नगण्य है. वाटर हार्वेस्टिंग बहुमंजिली भवनों में अनिवार्य जरूर किया गया है, लेकिन निर्माण नहीं करनेवालों के लिए चेकिंग प्वाइंट की मॉनिटरिंग दुरुस्त नहीं है. डीप बोरिंग रोकने के लिए भी बहुत विशेष प्रयास नहीं किये गये हैं.
नदी, जो गायब हो गयी
मराश्री नदी : नामकुम के मराश्री पहाड़ से निकलने वाली नदी का उद्गम स्थल सूख गया. नदी के रास्ते को भर कर निर्माण कर लिया गया. अब मराश्री पहाड़ से निकलने वाली नदी का निशान तक नहीं बचा है.
नदियां, जो बरसाती नाला बन गये
स्वर्णरेखा नदी
हरमू नदी
जुमार नदी
पोटपोटो नदी
नदियां, जो फरवरी में ही सूख गयीं
कोयल
कारो
गौतमधारा
जल प्रपात, जिनसे फरवरी में ही बंद हो गया था पानी का गिरना
दशम फॉल
हुंडरू फॉल
जोन्हा फॉल
सीता फॉल
हिरनी फॉल
फैक्टशीट
नदी का नाम सरकारीआंकड़ों में नदी की न्यूनतम चौड़ाई वर्तमान चौड़ाई
हरमू नदी 24.39 मीटर कई जगहों पर एक मीटर से भी कम
जुमार नदी 30.48 मीटर एनएच 33 के पास लगभग दस मीटर
स्वर्णरेखा नदी 24.46 मीटर हटिया और नामकुम में पांच मीटर से कम
पोटपोटो नदी 32.37मीटर सात से आठ मीटर
जुमार नदी कोबालू-गिट्टी का डंपिंग यार्ड बना दिया
मेसरा. जुमार नदी कांके प्रखंड के लिए जीवन धारा है, लेकिन इस पर अतिक्रमण कर नाला का रूप दे दिया गया है. यह नदी सिमलिया, सोसो, बालू, कोकदोरो, सिरांगो, उरुगुटू, बूढ़ी बागी, कुम्हरिया, बनहारा, रेंडो में नाले के रूप में बह रही है. डुमरदगा के पास जुमार पुल के समीप कचरा फेंकने से लेकर निर्माण सामग्री का डंपिंग यार्ड बना दिया गया है. इस नदी में कहीं-कहीं 10-10 फीट तक पानी है, तो कहीं यह नाला के रूप में है.
भूमाफियाओं ने बेच दी स्वर्णरेखा की 40 एकड़ जमीन
झारखंड की लाइफ लाइन कही जानेवाली स्वर्णरेखा नदी की 40 एकड़ जमीन गायब हो गयी है. सरकारी जमीन को भूमाफियाओं ने बेच दी है. उस जमीन पर रिहायशी बस्ती बसा ली है. हटिया के पास रिवर व्यू कॉलोनी के पास स्वर्णरेखा नदी महज पांच फीट चौड़ी बच गयी है. सरकारी नक्शे के मुताबीक स्वर्णरेखा नदी की चौड़ाई 40 फीट थी, जो अब पांच फीट बच गयी है.
नदी तट से 200 फीट तक ग्रीनलैंड जमीन है, जहां निर्माण कार्य नहीं हो सकते हैं. लेकिन, स्वर्णरेखा नदी अब नदी तट पर बेतहाशा अतिक्रमण हुआ है. प्रभात खबर ने पांच अक्तूबर 2016 के अंक में यह खबर प्रमुखता से प्रकाशित की थी. इस पर संज्ञान लेते हुए तत्कालीन रांची के डीसी मनोज कुमार ने नामकुम सीओ कुमुदनी टुडु को जांच के आदेश दिये थे.
जमीन की नापी कराकर अतिक्रमण करनेवालों की सूची तैयार कर तुरंत मांगी थी. डीसी के आदेश पर कुमुदनी टुडू ने आठ सदस्य जांच टीम गठित की थी, जिस पर तत्कालीन अंचल निरीक्षक अनिल कुमार सहित अन्य कर्मचारियों ने स्वर्णरेखा पुल से ओवरिया पुल तक स्वर्णरेखा नदी के 40 एकड़ जमीन की खोज करने लगे. अधिकारियों को जमीन नहीं मिली. अधिकारियों ने बताया की जमीन गायब है.
बिल्डर ने बना दिया पुल
एक बिल्डर ने रिवर व्यू कॉलोनी के स्वर्णरेखा नदी में आठ लाख रुपये खर्च कर पुल बनाया है. उसने अपने प्लॉट में जाने का रास्ता बनाकर उसमें बहुमंजली इमारत बनाने का नक्शा पास होने के लिए डाल दिया है. नामकुम सीओ मनोज कुमार ने पिछले वर्ष एक एकड़ 40 डिसमिल भूमी पर अतिक्रमण किये हुए घरों के मालिकों को नोटिस भी दिया गया था. जेसीबी से कुछ मकानों को तोड़ा भी गया था. लेकिन फिर वहां मकान बनना चालू हो गया है. उसी जमीन में हटिया टीओपी नंबर-2 को बनाने के लिए 20 डिसमिल जमीन आवंटित की गयी थी. लेकिन, वहां पर आज तक कोई टीओपी नहीं बन पाया है.
पहले साफ थी यह नदी
जानकारी के अनुसार 10 वर्ष पहले स्वर्णरेखा नदी में हटिया गांव के लोगों द्वारा नदी के पानी से ही नहाना कपड़ा साफ करना एवं पीने के लिए भी पानी का उपयोग करते थे. जैसे-जैसे औद्योगिक क्षेत्रों से निकलने वाले नाले के पानी को नदी में बहाया जाने लगा, वैसे ही नदी का पानी गंदा होने लगा. लोगों की सारी दिनचर्या समाप्त होते चली गयी.
कभी बालू का स्रोत थी पोटपोटो, आज नाला बन चुकी है
रांची : पोटपोटो नदी कभी बालू निकासी का बड़ा माध्यम था. 20 साल पहले तक यहां से हर दिन दर्जनों ट्रक बालू निकाला जाता था. बरसात के दिनों में यहां का 30-40 फीट पानी हो जाता था. यह नदी आज नाला का रूप ले चुकी है. कांके डैम से निकलने वाली इस नदी के किनारे कई स्थानों पर कब्जा हो रहा है. गारू के आसपास तो नदी को भरकर वहां आवासीय परिसर बनाया जा रहा है. यही स्थिति बोड़ेया के आसपास भी है.
आइआइसीएम पुल के किनारे ग्रीन लैंड पर दर्जनों आवास बना दिये गये हैं. बरसात के मौसम को छोड़कर इस नदी में वर्ष के अन्य महीनों में पानी भी नहीं रहता है. कहीं-कहीं जमा हुआ पानी है, जिससे खेती भी होती है. अरसंडे वाले इलाके में नदी के किनारे कई आवास बन गये हैं. पोटपोटो नदी का निकास कांके डैम से है.
यहां से यह निकल आगे जाकर जुमार नदी में मिल जाती है. बोड़ेया के करीब में इससे सहायक एक नाला बन गया है, जो आगे चल कर इसी नदी का हिस्सा हो जाता है. आइआइसीएम के करीब पोटपोटो नदी मैदान का रूप ले चुका है. गर्मी और जाड़े में इसका उपयोग खेल के मैदान के रूप में होता है. स्थिति यह है कि अब तो बरसात में भी कभी पानी सड़क तक नहीं आ पाता था.
मिट्टी भरकर किया जा रहा है कब्जा
नदी के कई स्थानों पर अतिक्रमणकारियों ने चहारदीवारी बनाकर मिट्टी भर दी है. इसके बाद वहां निर्माण कर दिया है. नदी के किनारे वाले इलाकों में जमीन दलालों की नजर है. कई स्थानों पर सरकारी रोक के बावजूद निर्माण हो रहा है. दाखिल-खारिज नहीं होने के बाद भी जमीन की खरीद बिक्री जोरों पर हो रही है.
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