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जनता ने कई मजदूर नेताओं को भी भेजा है दिल्ली दरबार

मनोज सिंह संसद में आम लोगों का प्रतिनिधित्व भी करते रहे हैं मजदूर यूनियन के नेता बिहार के मुख्यमंत्री बने थे कोल यूनियन के नेता बिंदेश्वरी दूबे रमेंद्र कुमार यूनियन के प्रभाव क्षेत्र से दूर बेगूसराय से बने थे सांसद रांची : झारखंड की राजनीति में मजदूरों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है. झारखंड में […]

मनोज सिंह

संसद में आम लोगों का प्रतिनिधित्व भी करते रहे हैं मजदूर यूनियन के नेता

बिहार के मुख्यमंत्री बने थे कोल यूनियन के नेता बिंदेश्वरी दूबे

रमेंद्र कुमार यूनियन के प्रभाव क्षेत्र से दूर बेगूसराय से बने थे सांसद

रांची : झारखंड की राजनीति में मजदूरों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है. झारखंड में कई बड़ी-बड़ी उत्पादन इकाइयां हैं. यहां काम करनेवाले मजदूरों की आवाज बननेवाले मजदूर नेता भी दिल्ली दरबार पहुंचते रहे हैं, मजदूरों ने चुनाव जीता कर उन्हें दिल्ली तक पहुंचाया है. इसमें कई मजदूर नेता श्रमिकों की मांगों को लेकर दिल्ली में आवाज भी लगाते रहे हैं.

झारखंड के कोयलाबहुल इलाकों से सीटू, इंटक, एचएमएस और बीएमएस से जुड़े कई नेता चुनाव जीते हैं. इनमें संयुक्त बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दूबे, बाबूलाल मरांडी, शिबू सोरेन जैसे दिग्गज नेता शामिल हैं.

1962 में चुनाव जीते थे उदयकर मिश्र : भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जमशेदपुर से चुनाव जीतने वाले उदयकर मिश्र भी ट्रेड यूनियन के बड़े नाम थे. वह टाटा कंपनी में मजदूरों की आवाज थे. उनकी आवाज पर टाटा कंपनी के एक-एक मजदूर खड़े हो जाते थे.

1984 में जमशेदपुर के लोगों ने एक बार फिर एक मजदूर नेता गोपेश्वर को दिल्ली भेजा. गोपेश्वर इंटक से जुड़े नेता थे. वह कांग्रेस की टिकट से चुनाव जीते थे. गोपेश्वर मूल रूप से सहरसा के रहनेवाले थे. उन्होंने अपनी मेहनत से टाटा में अपनी पहचान बनायी थी. उन्होंने टाटा स्टील में काम करनेवाले मजदूरों के लिए कई कल्याकारी योजनाएं चलवायी थी.

धनबाद से जीतते थे कामरेड एके राय : एके राय सीटू से संबद्ध बिहार कोलियरी कामगार यूनियन के नेता थे. इंजीनियर से मजदूर नेता बने थे. सिंदरी से विधायक बने. बाद में धनबाद लोकसभा क्षेत्र का कई बार नेतृत्व किया.

उनकी एक अावाज से धनबाद के मजदूर जमा हो जाते थे. वह मूल रूप से कोयला कामगारों की समस्याओं को लेकर संघर्षरत रहते थे. श्री राय के बाद धनबाद लोकसभा का नेतृत्व इंटक के नेता ददई दुबे ने भी किया. ददई दुबे देश में इंटक के बड़े नेता माने जाते हैं. स्टील और कोयला उद्योग में वह सक्रिय रहे हैं.

कोयला मजदूरों के लिए गठित होनेवाली वेतन समझौता कमेटी (जेबीसीसीआइ) में भी वह रहे हैं. इंटक के बड़े नेता बिंदेश्वरी दूबे भी मजदूरों के बड़े नेता होते थे. वह जेबीसीसीअाइ के सदस्य हुआ करते थे. श्री दूबे कोयला मजदूर से नेता बने थे. मजदूरों के समर्थन से वह लोकसभा में सांसद, कई बार विधायक बने. श्री दूबे बिहार में मुख्यमंत्री भी बने. श्री दूबे के साथी ट्रेड यूनियन नेता रामदास सिंह को भी गिरिडीह की जनता ने लोकसभा भेजा था.

वह बाद में भाजपा और बीएलडी से सांसद बने. राष्ट्रीय कोयला मजदूर यूनियन का गठन करनेवाले श्री सिंह मजदूर नेताओं के बीच बड़ा नाम थे. 1984 में हजारीबाग से सीट से जीतने वाले दामोदर पांडेय भी मजदूरों के बड़े नेता थे. वह इंटक से संबद्ध से थे. संयुक्त बिहार में इंटक के अध्यक्ष भी थे. श्री पांडेय इंडो आसी ग्लास के साथ-साथ कई यूनियनों से जुड़े हुए थे.

बाबूलाल और शिबू सोरेन भी चलाते हैं ट्रेड यूनियन : झारखंड मुक्ति मोरचा का भी ट्रेड यूनियन चलता है. शिबू सोरेन इस यूनियन के अध्यक्ष हैं. श्री सोरेन की अध्यक्षता वाला ट्रेड यूनियन मूल रूप से सीसीएल, बीसीसीएल और इसीएल में प्रभावी है. बाबूलाल मरांडी भी द झारखंड कोलियरी मजदूर यूनियन के अध्यक्ष हैं. इनका यूनियन सीसीएल, बीसीसीएल और इसीएल में सक्रिय है.

झारखंड से बाहर जाकर जीते हैं रमेंद्र कुमार : रमेंद्र कुमार एटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. वह कोयला उद्योग के साथ-साथ कई औद्योगिक इकाइयों में मजदूरों का नेतृत्व करते हैं. बड़कागांव से कई बार विधायक का चुनाव जीतनेवाले श्री कुमार झारखंड से बाहर जाकर चुनाव जीते हैं. श्री कुमार 11वीं लोकसभा चुनाव में (1996) में बिहार के बेगूसराय सीट से सांसद बने थे.

इनके अतिरिक्त गया सिंह, शफी खान, टीकाराम मांझी, केदार दास, राजेंद्र सिंह जैसे कई बड़े ट्रेड यूनियन नेता रहे हैं, जिनको लोकसभा चुनाव में जनता का आशीर्वाद नहीं मिल पाया है. गया सिंह को बाद में राज्यसभा भेजा गया था.

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