बिपिन कुमार सिंह, रांची : झारखंड के बड़े अस्पतालों पर दबाव कम करने के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं. जिस मकसद से राज्य भर के छोटे-मंझोले अस्पतालों में स्वास्थ्य की अत्याधुनिक व्यवस्था (एफआरयू) कायम की गयी थी, वहां मरीजों को समय पर इसका समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा है.
राज्य में स्थापित 73 फर्स्ट रेफरल यूनिट में से 59 ही सक्रिय है. भारत सरकार की आपत्तियों के बाद लगभग ठप पड़े ऐसे सेंटर को सक्रिय करने के प्रयास तेज कर दिये गये हैं.
निदेशक प्रमुख स्वास्थ्य सेवाएं डॉ राजेंद्र पासवान ने एफआरयू में कार्यरत ऐसे सभी चिकित्सकों को अपनी कार्यक्षमता बढ़ाने को लेकर अंतिम चेतावनी जारी की है. अगर इसके बाद भी आंकड़ों में तय बदलाव नहीं आता है, तो इनका वेतन रोक दिया जायेगा.
विभाग की मानें तो चतरा, दुमका, जामताड़ा, लातेहार और पाकुड़ जैसे जिलों की हालत इस समय बेहद खराब है. सबसे खराब हालत चतरा जिले की है. यहां सुविधाओं के बावजूद गंभीर हालत में लाये गये महज 14 मरीजों का ही सी सेक्शन ऑपरेशन एक साल के दौरान संभव हो सका है, जबकि इन जगहों पर आपातकालीन जरूरतों को ध्यान में रखते हुए तमाम तरह की सुविधाएं बहाल की गयी हैं.
आपको बता दें कि इन केंद्रों पर अत्याधुिनक उपकरणों की स्थापना सहित अर्हता के हिसाब से स्त्री एवं बाल रोग विशेषज्ञ, बेहोशी के डॉक्टर और जरूरी ऑपरेशन करने वाले सर्जन की नियुक्ति की गयी है.
क्या कहते हैं नियम
भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, सदर अस्पताल में प्रत्येक महीने 10 सी सेक्शन ऑपरेशन करना अनिवार्य है. अनुमंडलीय और सामुदायिक अस्पतालों में यह संख्या पांच से ऊपर रहना अनिवार्य है. इन जरूरी संख्या के बाद ही टीम सी-सेक्शन मानदेय के तौर पर बतौर इंसेटिव तीन हजार रुपये पाने के हकदार होंगे.
आंकड़े एक नजर में
- राज्य में स्थापित 73 फर्स्ट रेफरल यूनिट में से 59 सक्रिय
- 23 जिला अस्पतालों में से 17 में सी-सेक्शन की सुविधा
- 11 अनुमंडलीय अस्पतालों (एसडीएच-एफआरयू) में से किसी में सुविधा नहीं
- 39 सामुदायिक केंद्र (एफआरयू) में सात के अंदर ही बेहतर इलाज की सुविधा
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