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रांची : प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने आइआइटी के प्रोफेसरों से सात दिनों में मांगा जवाब

मुरी स्थित हिंडाल्को में कास्टिक तालाब धंसने का मामला रांची : मुरी स्थित हिंडाल्को में कास्टिक तालाब धंसने के मामले में झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद ने तीन बड़े संस्थानों के प्रोफेसर को शोकाॅज जारी किया है. इनमें आइआइटी मुंबई के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर डीएन सिंह, सेंट्रल बिल्डिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट(सीएसआइआर) रुड़की के […]

मुरी स्थित हिंडाल्को में कास्टिक तालाब धंसने का मामला
रांची : मुरी स्थित हिंडाल्को में कास्टिक तालाब धंसने के मामले में झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद ने तीन बड़े संस्थानों के प्रोफेसर को शोकाॅज जारी किया है. इनमें आइआइटी मुंबई के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर डीएन सिंह, सेंट्रल बिल्डिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट(सीएसआइआर) रुड़की के चीफ साइंटिस्ट ए घोष व आइआइटी आइएसएम धनबाद के प्रोफेसर शरत कुमार दास शामिल हैं.
पर्षद के सदस्य सचिव राजीव लोचन बक्शी के हस्ताक्षर से 11 अप्रैल को जारी नोटिस में लिखा गया है कि गैबियन और सॉयल वाॅल का डिजाइन सीएसआइआर रुड़की द्वारा तैयार किया गया. साथ ही यह सुनिश्चित किया गया था कि मौसम की विपरीत परिस्थितियों में भी यह सेफ डंपिंग होगा. वहीं, आइआइटी के मुंबई प्रोेफेसर डीएन सिंह ने डिजाइन को मान्यता देते हुए यह आश्वस्त किया था कि गैबियन वाॅल का लैटरल प्रेशर को झेलने में सक्षम है. 42 मीटर की ऊंचाई तक भी रेड मड पौंड नहीं धंसेगा.
वहीं, आइअाइटी आइएसएम धनबाद सिविल इंजीनियरिंग विभाग के विभागाध्यक्ष शरत कुमार दास ने 25 जनवरी 2019 को हिंडोल्को इंडस्ट्रीज लिमिटेड मुरी के रेड मड स्टोरेज पॉन्ड पर एक स्टडी रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें निष्कर्ष दिया गया था कि रेड मड पौंड की ऊंचाई 42 मीटर तक की जा सकती है. सदस्य सचिव ने लिखा है कि इसके बावजूद रेड मड पॉन्ड नौ अप्रैल 2019 को धंस गया. पॉन्ड का पश्चिमी साइड में गैबियन वाॅल टूटा और लगभग 600 मीटर तक बड़ी मात्रा में रेड मड और गीला कचड़ा फैल गया. यह रेलवे लाइन और खेतों में पसर गया.
यह भी पाया गया कि रेड मड मुरी-जमशेदपुर रेलवे ट्रैक पर भी फैल गया, जिसके कारण रेल ट्रैक और ट्रांसपोटेशन भी प्रभावित हुआ. सदस्य सचिव ने लिखा है कि इन बातों के मद्देनजर सात दिनों में अपना पक्ष रखें. सात दिनों में संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर प्रदूषण बोर्ड किसी भी प्रकार की कार्रवाई के लिए स्वतंत्र होगा और इसकी पूरी जवाबदेही आपकी होगी.
युगांतर भारती की टीम ने किया दौरा
रांची : मुरी स्थित हिंडाल्को कंपनी के डस्ट से भरे कास्टिक तालाब के धंसने की घटना की जांच के लिए युगांतर भारती, नेचर फाउंडेशन, स्वर्णरेखा क्षेत्र विकास ट्रस्ट और दामोदर बचाओ आंदोलन के सदस्य गुरुवार को मौके पर पहुंचे. इस दल ने हादसे के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन किया. इस दल में रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार डॉ एम के जमुआर, युगांतर भारती के कार्यकारी अध्यक्ष अंशुल शरण, सचिव आशीष शीतल, दामोदर बचाओ आंदोलन के कमलेश ओझा, नेचर फाउंडेशन के निरंजन सिंह एवं विकास मौजूद थे.
दल को ग्रामीणों ने बताया कि करीब डेढ़ बजे एक जोरदार धमाका हुआ और एक अजीब बदबू के साथ गीला मलबा फैल गया. इस बदबू को यात्रा दल ने भी महसूस किया. निरीक्षण के बाद डॉ जमुआर ने कहा कि झारखंड के लगभग सभी कारखानों में सिर्फ माल की धुलाई होती है और मैला एवं गंदगी से पर्यावरण में प्रभाव पड़ रहा है.
उद्योग झारखंड में वेस्ट छोड़ रहे हैं और मूल्य संवर्धन के लिए दूसरे राज्यो में भेज रहे हैं. श्री जमुआर ने कहा कि इस तरह की मानवरचित आपदा से आसानी से बचा जा सकता था. कार्यकारी अध्यक्ष श्री शरण ने कहा कि कास्टिक तालाब का निर्माण आइआइटी की तकनीक से होने के बावजूद हादसा होना कहीं न कहीं शोध पर ही सवाल उठता है.
वर्ष 2017 में ही सीपीसीबी नयी दिल्ली ने हिंडाल्को की मुरी प्लांट पर रोक लगा दी थी. युगांतर भारती की प्रयोगशाला की टीम कल हादसे की जगह से पानी, मिट्टी और हवा का नमूना ले कर जल्द ही एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगी. रिपोर्ट में हादसे की वजह से हुआ लघु एवं दीर्घावधि पर्यावरणीय प्रभाव का वर्णन होगा.

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