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एनडीए के सामने सत्ता विरोधी फैक्टर के मिथक को तोड़ने की होगी चुनौती

सतीश कुमाररांची : झारखंड राज्य का गठन वर्ष 2000 में हुआ. इसके बाद से झारखंड में लोकसभा के तीन चुनाव हुए. पहला चुनाव 2004, दूसरा 2009 व तीसरा 2014 में हुआ. यह संयोग है कि तीनों चुनाव में जिस दल की सरकार केंद्र व राज्य में रही, उस दल का प्रदर्शन लोकसभा चुनाव में अच्छा […]

सतीश कुमार
रांची :
झारखंड राज्य का गठन वर्ष 2000 में हुआ. इसके बाद से झारखंड में लोकसभा के तीन चुनाव हुए. पहला चुनाव 2004, दूसरा 2009 व तीसरा 2014 में हुआ. यह संयोग है कि तीनों चुनाव में जिस दल की सरकार केंद्र व राज्य में रही, उस दल का प्रदर्शन लोकसभा चुनाव में अच्छा नहीं रहा है. सत्ता विरोधी फैक्टर का असर चुनाव के दौरान पार्टी के प्रदर्शन पर दिखता रहा है.

हालांकि इससे पहले के चुनाव में महागठबंधन नहीं हुआ था. इस बार की परिस्थिति भिन्न है. वर्तमान में एक तरफ विपक्ष महागठबंधन कर घेराबंदी में लगा है. वहीं दूसरी तरफ एनडीए एक बार फिर मोदी लहर के सहारे किला बचाने की तैयारी में जुटा है.विभिन्न दलों के प्रत्याशियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ कर जीत हासिल की थी. ऐसे में एनडीए सरकार को इस मिथक को तोड़ना चुनौती होगी. विपक्ष के कई प्रमुख चेहरों को पार्टी में शामिल करा भाजपा इस मिथक को तोड़ने के प्रयास में जुटी हुई है.

हालांकि यह भी एक मिथक था कि रघुवर दास के मुख्यमंत्री बनने से पहले रांची के सीएम आवास में कोई भी मुख्यमंत्री तीन साल से ज्यादा नहीं टिक सका था. रघुवर दास इस मिथक को तोड़ते हुए पांच साल का कार्यकाल पूरा करने की ओर हैं. लोकसभा चुनाव में जहां महागठबंधन भूमि अधिग्रहण बिल, वनाधिकार कानून, भूख से मौत समेत अन्य मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाने की तैयारी में हैं.

वहीं दूसरी तरफ एनडीए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों, सर्जिकल स्ट्राइक समेत अन्य मुद्दों को लेकर जनता के बीच जायेगी. इसको लेकर एनडीए व महागठबंधन ने अपनी तैयारी पूरी कर ली है. झारखंड में चार चरणों में चुनाव होना है. 23 मई को परिणाम घोषित होना है.

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