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जेंडर सेंसटिव जर्नलिज्म के लिए तीन पत्रकारों को सम्मान, अहम विषयों पर हुई परिचर्चा

रांची : स्वयंसेवी संस्था ब्रेकथ्रू की तरफ से आयोजित जेंडर सेंसटिव जर्नलिज्म पर आयोजित रिफ्रेम मीडिया अवार्ड समारोह से बाल विवाह के मुद्दे पर चर्चा हुई. इस कार्यक्रम में तीन पत्रकारों को सम्मानित किया गया. तीनों विजेताओं को सर्टिफिकेट और तीस हजार की धनराशि ब्रेकथ्रू की मीडिया हेड प्रियंका खेर ने दी. इन तीन पत्रकारों […]

रांची : स्वयंसेवी संस्था ब्रेकथ्रू की तरफ से आयोजित जेंडर सेंसटिव जर्नलिज्म पर आयोजित रिफ्रेम मीडिया अवार्ड समारोह से बाल विवाह के मुद्दे पर चर्चा हुई. इस कार्यक्रम में तीन पत्रकारों को सम्मानित किया गया. तीनों विजेताओं को सर्टिफिकेट और तीस हजार की धनराशि ब्रेकथ्रू की मीडिया हेड प्रियंका खेर ने दी. इन तीन पत्रकारों में गांव कनेक्शन की पत्रकार नीतू सिंह. कई अखबार और वेबसाइट में फ्रीलांस पत्रकारिता करने वाले असगर खान और रितिका को यह पुरस्कार मिला.

असगर खान को रिपोर्ट ‘बाल विवाह के रोकधाम’ और रितिका को उनकी खबर ‘हत्या और ऑनर किलिंग की उल्झी गुत्थी’ पर ग्राउंड रिपोर्ट के लिए यह अवार्ड मिला जबकि नीतू को यह पुरस्कार उनकी सखी मंडल से जुड़ी आदिवासी महिलाओं की ग्राउंड रिपोर्टिंग के लिए दी गयी.
इस कार्यक्रम में बाल विवाह के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए रांची के चाणक्य होटल में 26 मार्च को कई स्वयंसेवी संस्था, पत्रकार, फ़िल्मकार,गीतकार और अधिकारी शामिल हुए.
इस चर्चा में सीएमएस के डॉयरेक्टर रघु ने बताया, "झारखण्ड के हमने तीन जिले के 42 ब्लॉक में बाल विवाह को लेकर गोष्ठियां,ट्रेनिंग, कम्युनिटी मोबलाइजेशन, नुक्कड़ नाटक के जरिए काम करना शुरू किया. अगर हम आंकड़ों की बात करें, तो वर्ष 2006-12 के बीच 16.9 उम्र में शादियां हुईं वहीं 2013-19 के बीच 18.74 उम्र में शादियां हुई. ये बदलाव की शुरुआत है उम्मीद है आने वाले दिनों में इसके बेहतर रिजल्ट होंगे.
एनआरएमसी के वाइस प्रेसीडेंट शैलेस नागर ने बताया कि दुनिया की एक तिहाई बाल बधुआ दक्षिण ( बाल श्रमिक जो बंधुआ मजदूर की तरह काम करते हैं) की हैं. जिनमें सबसे ज्यादा मामले बांग्लादेश और उसके बाद भारत और नेपाल जैसे देश में देखे जाते हैं.
बाल विवाह रोकने के लिए मीडिया और पापुलर कल्चर की क्या भूमिका हो सकती है इस विषय पर चर्चा के लिए पांच पैनलिस्ट थे जिसमें जेंडर स्पेस्लिस्ट नासीर हैदर खान ने कहा, "समाज में लड़कियों को लेकर जो सोच बनी होती है वही मीडिया के न्यूज रूम में दिखाई देती है. लड़कियों को भी ज्यादातर वही बीट दे दी जाती है जिससे उनका घरों में सरोकार होता है." वहीं इस पैनलिस्ट की लोकगायिका चन्दन तिवारी ने कई गीतों की पंक्तियाँ सुनाई. उन्होंने कहा, "भोजपुरी में स्त्री के मन की बात होनी चाहिए तन की नहीं. हमारी भोजपुरी वैसी नहीं है जैसी परोसी जाती है. मैं अपने गीतों में बाल विवाह के गीतों की संख्या और बढ़ाऊंगी.
अभिनेत्री, लेखिका अस्मिता शर्मा ने फिल्म इंडस्ट्री में होने वाले भेदभाव का जिक्र करते हुए कहा, "पुरुष एक्टर को महिला ऐक्ट्रेस के मुकाबले लगभग तीन गुना ज्यादा पैसा मिलता है और विज्ञापनों में महिलाओं को वस्तु की तरह परोसा जाता है. लेकिन अगर कंटेंट की बात करें तो आज के दर्शक ज्यादातर समझदार है इसलिए बड़ी-बड़ी फिल्में फ्लॉप हो रही हैं ये इस बात का सुबूत है.
सीनियर जर्नलिस्ट और सांस्कृतिकर्मी निराला बिदेशिया ने लोकगीतों का जिक्र करते हुए कहा, " आज भी हमारे लोकगीतों में भेदभाव है और मीडिया की भी अपनी बाध्यताएं हैं. हाल के दिनों में मीडिया सम्पादकों की भूमिका कमजोर हुई है क्योंकि बड़े फैसले लेने की जिम्मेदारी मैनजरों की है." पिछले पांच वर्षों से मीडिया में काम कर रही बीबीसी की पत्रकार सिंधुवासिनी ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा, "संपादकों को ये समझना चाहिए कि जेंडर और महिला मुद्दे ‘सॉफ्ट’ बीट का हिस्सा नही हैं. ये मुद्दे भी उतने महत्वपूर्ण हैं जितनी बाकी की बीट्स." इस पैनल का संचालन ब्रेकथ्रू के सीनियर मैनेजर- मीडिया एडवोकेसी विनीत त्रिपाठी ने किया. इस अवसर पर काफी संख्या में स्वंयसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि, स्टूडेंट, समुदाय के प्रतिनिधि और मीडियाकर्मी शामिल हुए.कार्यक्रम का संचालन अनिका ने किया और धन्यवाद आलोक भारती ने ज्ञापित किया.

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