बिरसा कृषि विवि में पांच दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन
रांची : बिरसा कृषि विवि के कुलपति डॉ पी कौशल ने कहा है कि राज्य के अधिकतर लोग बांस का उपयोग जलावन एवं परंपरागत कार्यों के लिए करते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में बांस को जंगल के रूप में उगाया जाता है.
यह तेजी से बढ़ने वाला और बहुपयोगी पौधा है. ग्रामीण क्षेत्रों में बांस की वैज्ञानिक तकनीक से व्यावसायिक खेती और उनके मूल्यवर्द्धन से ग्रामीण आजीविका को सशक्त किया जा सकता है. गांव में एक बांस की बिक्री 35-50 रुपये में होती है. अगर बांस उत्पाद निर्माण का आधुनिक यंत्र द्वारा मूल्यवर्द्धन किया जाये और इसे लघु कुटीर उद्योग का स्वरूप दिया जाये, तो मात्र बांस के व्यवसाय से दस गुना से अधिक लाभ कमाया जा सकता है. कुलपति मंगलवार को बिरसा कृषि विवि में बांस की खेती, प्रबंधन एवं मूल्यवर्द्धन विषय पर आयोजित पांच दिवसीय प्रशिक्षण का उदघाटन कर रहे थे.
डॉ कौशल ने प्रशिक्षण प्राप्त लोगों में से मास्टर ट्रेनर का चयन कर सूदूर ग्रामीण क्षेत्रों तक बांस उत्पादन एवं मूल्यवर्द्धन की आधुनिक तकनीक के प्रचार प्रसार पर बल दिया. परियोजना अन्वेषक डॉ एमएस मल्लिक ने कहा कि परियोजना के अधीन वानिकी संकाय में बांस की नर्सरी का विकास किया जा रहा ताकि राज्य के ग्रामीणों को बांस की उन्नत किस्में उपलब्ध करायी जा सके.
डीन वानिकी डॉ महादेव महतो ने झारखंड में पाये जाने वाले बांस की सात किस्मों के बारे में बताया. डॉ एमएच सिद्दीकी ने बांस को जंगल में सबसे जल्दी तैयार होने वाला पौधा बताया और इसके विभिन्न उत्पाद के निर्माण में उपयोगिता के बारे में बताया. अनुसंधान निदेशक डॉ डीएन सिंह ने कृषि कार्य से बचे समय में कृषि वानिकी और बांस की व्यावसायिक खेती के उपयोग पर बल दिया.
इस अवसर पर डॉ एके चक्रवर्ती, डॉ आरबी साह ने भी अपने विचार रखे. संचालन ब्यूटी कुमारी तथा धन्यवाद डॉ पीआर उरांव ने दी. कार्यक्रम में डॉ वी शिवाजी, डॉ अनिल कुमार, डॉ बसंत उरांव, डॉ जे केरकेट्टा आदि उपस्थित थे.