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ठंड से ठिठुर रहे गरीब और हुजूर अभी कंबल खरीदने का टेंडर ही निकाल रहे
"30 करोड़ जारी कर चुका है श्रम विभाग सभी जिलों को कंबल खरीदने के लिए, लेकिन… राज्य भर में दिसंबर का कहर शुरू हो गया है. दो दिन की बारिश के बाद रात ठिठुरन भरी हो गयी है. पर ज्यादातर जिलों में गरीबों को सरकार कंबल उपलब्ध नहीं करा सकी है. मजदूर, फकीर, रिक्शा चालक […]
"30 करोड़ जारी कर चुका है श्रम विभाग सभी जिलों को कंबल खरीदने के लिए, लेकिन…
राज्य भर में दिसंबर का कहर शुरू हो गया है. दो दिन की बारिश के बाद रात ठिठुरन भरी हो गयी है. पर ज्यादातर जिलों में गरीबों को सरकार कंबल उपलब्ध नहीं करा सकी है.
मजदूर, फकीर, रिक्शा चालक व सर्वहारा वर्ग का बड़ा तबका सरकार की अोर से मिलने वाले कंबल का इंतजार कर रहा है. शीतलहरी शुरू हो चुकी है, इधर विभिन्न जिले कंबल खरीद का टेंडर ही निकाल रहे हैं. हालत यह है कि राजधानी रांची में अभी दो दिन पहले 52 हजार कंबल आपूर्ति के लिए टेंडर निकाला गया है.
उधर, लोहरदगा जिले में 20 दिसंबर को ही टेंडर खोला गया है. दरअसल पहले झारक्राफ्ट के माध्यम से कंबल उपलब्ध कराया गया था. पर इस बार जिला प्रशासन को यह खरीद करनी है. पर इसमें विलंब हो रहा है. श्रम विभाग के निदेशक राकेश कुमार सिंह के अनुसार कंबल खरीद मद में विभाग ने 30 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं. यह राशि जिले के श्रम अधीक्षक को भेजी गयी है. विभाग की अोर से निर्देश दिया गया था कि 15 दिसंबर से कंबल का वितरण शुरू कर दें.
इधर, जिलों में या तो खरीद प्रक्रिया ही शुरू हुई है या फिर कुछ ही कंबल बांटे गये हैं. गुमला में 30 हजार कंबल खरीदा जाना है. पर अभी जिला प्रशासन ने 2777 कंबल ही खरीद कर ग्रामीण इलाके में बांटे हैं. शहरी क्षेत्र में अभी कंबल बंटना शुरू नहीं हुआ है. उधर चतरा जिले में 58500 कंबल खरीद लिये गये हैं. उपायुक्त जितेंद्र सिंह के अनुसार दो-तीन दिनों में सभी प्रखंडों में कंबल उपलब्ध करा दिया जायेगा. इटखोरी व मयूरहंड में गत वर्ष के बचे हुए कुछ कंबल बिरहोर परिवारों के बीच वितरित किये गये हैं.
कोडरमा जिले से मिली जानकारी के मुताबिक वहां कुल 35 हजार कंबल के विरुद्ध 22 हजार कंबल की खरीद हो गयी है तथा इन्हें वितरित किया जा रहा है. शेष एक-दो दिनों में मिल जाने की बात कही गयी है. प्रति पंचायत 150 तथा प्रत्येक शहरी वार्ड एक सौ कंबल दिये जायेंगे. अन्य जिलों में भी कमोबेश यही स्थिति है.
…जे पीर परायी जाने रे
साकेत कुमार पुरी
वैष्णव जन तो तेने कहिए जे, पीर परायी जाने रे… सिस्टम में बैठे लोगों को जब अंतिम पायदान पर बैठे निरीह गरीबों का दर्द भी नहीं समझ में आये, तो क्या कहें. टाई-कोर्ट में लकदक, एयर कंडीशंड वाहनों और घरों में रहने वाले नौकरशाहों को ठंड की ठिठुरन क्या होती है, यह समझ में नहीं आ सकता.
तभी तो दिसंबर बीतने को है और गरीबों के लिए कंबल खरीदने की अभी प्रक्रिया ही चल रही है. अभी तो टेंडर भी नहीं हुआ है. मतलब कंबल की खरीद होने तक ठंड गुजर जायेगी और गरीब ठंड और अपनी किस्मत से लड़ता हुआ अपनी जान बचाने में कामयाब रहा तो ठीक, अन्यथा ऐसे लोग रोजाना मरते ही रहते हैं, किसी को इससे क्या? यह जघन्य अपराध है साहेब.
सरकार ने डेढ़ माह पहले ही कंबल खरीद के लिए राशि का अवंटन कर दिया था, तकि गरीबों को समय पर कंबल मिल जाये, पर आपके काम करने का पुराना ढर्रा तो आज भी वही है, सो इस बार भी वही हुआ, जो हर बार होता है. कभी फटी-चिथड़ी चादर ओढ़कर आप अपने एसी कमरे से बाहर खुले आसमान के नीचे आकर देखें, शायद तब आपको इन निरीह लोगों की पीड़ा समझ आ जाये. ऐसे में ठंड से लोहा लेते इन लोगों के लिए किसी कवि की लिखी ये पंक्तियां बरबस याद आ रही हैं :
पूस की रात है,
कड़ाके की ठंड है.
कंपकपाती सर्दी और
लाचार गरीबी की जंग है.
मां के मैले आंचल में
खुद को छिपा सोया ये मलंग है.
एक गरीब के बच्चे को हरा ना पाने पर
कुदरत भी दंग है.
यह हाल है
रांची में दो दिन पहले ही निकाला गया है 52 हजार कंबलों की आपूर्ति का टेंडर
कुछ जिलों को छोड़ राज्य के ज्यादातर जिलों का कमोबेश यही हाल है
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