रांची : आज पूरा देश अभियंता दिवस (इंजीनियर्स डे) मना रहा है़ इतने वर्षों में इंजीनियरिंग के क्षेत्र में ज्यादातर पुरुषों का ही प्रवेश होता था. अब स्थिति बदल चुकी है. एक समय था, जब ज्यादातर युवतियां मेडिकल, शिक्षण व बैंक की नौकरी को ही ज्यादा महत्व देती थीं. अब बड़ी संख्या में महिलाएं इंजीनियरिंग के क्षेत्र में आ रही हैं अौर बेहतर कर भी रही हैं.
सरकार के कार्य विभागें में भी उनका सराहनीय योगदान है़ झारखंड में भी बड़ी संख्या में महिला इंजीनियर सेवा दे रही हैं. सुबह से लेकर देर शाम तक लोगों को बिजली आपूर्ति कराने में जुटी हुई हैं. पथ निर्माण विभाग, भवन निर्माण के क्षेत्र में आर्किटेक्ट व सिविल इंजीनियर के रूप में योगदान दे रही हैं. भवन बनवा रही हैं. डिजाइन तैयार कर रही हैं. सड़क की डिजाइन से लेकर उनकी गुणवत्ता पूर्ण निर्माण के लिए मेहनत कर रही हैं. प्रस्तुत है ऐसी ही कुछ महिला इंजीनियरों पर लता रानी और पूजा सिंह की यह रिपोर्ट.
दमखम दिखा रहीं महिला इंजीनियर
मुझे फील्ड में काम करना काफी अच्छा लगता है बतौर जूनियर इंजीनियर अंजू केरकेट्टा दो साल पहले झारखंड ऊर्जा विभाग में नियुक्त हुईं. उनका योगदान मुख्य रूप से विभाग के फील्ड वर्क में है. इनके कार्यों में लोगों को बिजली का कनेक्शन दिलाना, सर्वे करना, पोल लगवाना शामिल है. साथ ही उपयोक्ताओं की शिकायत सुनती हैं और उसका निदान करती हैं. वह बताती हैं कि मैं अपने दायित्वों को बखूबी निभा रही हूं. दिन हो या रात फील्ड में काम को लेकर तत्पर रहती हैं.
अंजू का एक ही लक्ष्य है लोगों को हर हाल में विभाग की ओर से दी जाने वाली सुविधाओं को उपलब्ध कराना. अभी आइटीआइ पावर हाउस में सेवा दे रही हैं. परिवार के साथ-साथ अपने काम में सामंजस्य बनाकर चल रही हैं. अंजू की तीन साल की बेटी है. धूप हो या छांव जब अंजू बिजली के तारों को सहेजती नजर आती हैं, तो आस-पास लोग उनकी तारीफ करते नहीं थकते. अंजू के मुताबिक युवतियों को चाहिए कि वे जो भी पढ़ाई कर रही हैं, उसे पूरे मनोयोग के साथ करें. कहती हैं कि मुझे फील्ड में काम करना काफी अच्छा लगता है. उन्होंने वर्ष 2002 में बोकारो महिला पॉलिटेक्निक से पढ़ाई की है.
मां का सपोर्ट नहीं होता, तो बंधनों को तोड़ नहीं पाती
मधुमाला इलेक्ट्रिक विभाग के कोकर डिविजन में कार्यरत है़ं तीन वर्षों से जेइ के पद पर अपनी सेवा दे रही है़ं डिविजन के टेक्निकल के साथ-साथ फिल्ड के कार्यों को देख रही है़ं डिविजन में आनेवाले लोड सेंसर को देखती हैं. फील्ड में वेरिफिकेशन के लिए भी जाना पड़ता है़ मधुमाला ने गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक दुमका से डिग्री हासिल की है. अपनी ब्रांच में अकेली गर्ल्स कैंडिटेट थीं. वह कहती हैं कि बचपन से कुछ अलग करने की सोच थी. कुछ अलग करने के लिए वैसे काम को चुना, जिसमें पुरुषों का दबदबा है़ मधु कहती हैं कि वैसा कोई काम नहीं जो महिलाएं नहीं कर सकती़ वह बताती हैं कि इस क्षेत्र में आने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा़ मां का सपोर्ट नहीं होता, तो सामाजिक बंधनों के कारण आगे नहीं निकल पाती़ मधु अभी एएमआइइ की पढ़ाई कर रही है़ं उनके पति विद्युत आपूर्ति क्षेत्र जमशेदपुर में कार्यरत है़ं दो बच्चे हैं. वह कहती हैं कि खुद पर विश्वास रखने से सफलता अवश्य मिलती है.
खुद को साबित करने के लिए की कड़ी मेहनत
माया रानी लाल जल संसाधन विभाग झारखंड सरकार में एग्जिक्यूटिव इंजीनियर हैं. करियर की शुरुआत 1988 में हुई. पहली पोस्टिंग जमशेदपुर में थी. पटना की रहनेवाली माया ने एनआइटी पटना से बीटेक किया. वह अपने बैच की पहली महिला थीं, जो सिविल इंजीनियरिंग कर रही थीं. वाटर रिसोर्स में एमटेक किया है.
माया बताती हैं कि जब मैंने करियर की शुरुआत की तब समय बहुत ही चुनौती भरा था. एक महिला सिविल इंजीनियर के रूप में स्वयं को स्थापित करने में मुझे काफी संघर्ष करना पड़ा. जब मैंने इस काम को शुरू किया था तब समाज काफी हेय दृष्टि से देखता था.फील्ड में काम करना आसान नहीं था. आज सिविल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में इनकी एक अलग पहचान है. माया रानी ने ग्रामीण विकास में भी काम किया है. वर्तमान में दो डिवीजन के प्रभार में हैं. पति भी फाॅरेस्ट डिपार्टमेंट मेदिनीपुर में पोस्टेड हैं. माया कहती हैं कि इंजीनियरिंग एक एेसा क्षेत्र है, जहां महिलाएं खुद स्ट्रांग बन जाती हैं.
लड़कियों के लिए घर से निकलना भी मुश्किल था
लातेहार जैसे माओवादी प्रभावित जगह से निकलकर सरोज कुमारी वर्तमान में पथ निर्माण विभाग में बतौर एग्जिक्यूटिव इंजीनियर कार्यरत हैं. 11 सालों से इस विभाग में अपनी सेवा दे रही हैं. सरोज 2007 बैच की इंजीनियर हैं. अनुसूचित जनजाति से आनेवाली सरोज के मुताबिक जब मैंने इंजीनियर बनने की सोची तब हमारे इलाके से लड़कियों को घर से निकलना भी मुश्किल था. पापा आर्मी में थे. ऐसे में शुरू से ही मेरे भीतर के इरादों को मजबूत किया. सरोज ने एनआइटी पटना से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. इसके बाद जेपीएससी के माध्यम से पथ निर्माण विभाग में नियुक्त हुईं. विभाग में पहले असिस्टेंट इंजीनियर के रूप में ज्वाइन किया. पथ निर्माण विभाग के ग्रामीण कार्य सेक्शन में भी सेवा दी. सरोज कहती हैं कि इस पेशे में काम के घंटे तय नहीं होते हैं. इसके बावजूद मैं अपने काम को काफी इंज्वॉय करती हूं. कई बार ऐसा भी हुआ कि बहुत इमरजेंसी होने के बावजूद यहां तक घर में किसी की मृत्यु होने के बाद भी शामिल नहीं हो पायी. काम को लेकर पूरा झारखंड घूम लिया है. खुशी मिलती है, जब अब लोग झारखंड की सड़कों को खूबसूरत कहते हैं. खासकर पतरातू घाटी को.
बिल्डिंग डिजाइन में बना रही हैं अपनी पहचान
कांके रोड निवासी श्रुति सौम्या जाधवपुर यूनिवर्सिटी, कोलकाता से इंजीनियरिंग कर रही हैं. आर्किटेक्ट फाइनल इयर की स्टूडेंट हैं. श्रुति अपनी यूनिवर्सिटी में आर्किटेक्टर लाइन में बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं. श्रुति बिल्डिंग डिजाइनिंग से अपनी अलग पहचान बना रही हैं. वह कहती हैं कि बचपन से ही इंजीनियर बनने का शौक था और इंजीनियरिंग में भी अलग क्षेत्र में उनकी रुचि थी. श्रुति कहती हैं कि बिल्डिंग डिजाइनिंग में महिलाओं का रुझान कम है़, पर उन्हाेंने ब्लिडिंग डिजाइनिंग को ही अपना क्षेत्र बनाया. आर्किटेक्ट इंजीनियरिंग की अन्य ब्रांच से अलग होता है़ अन्य सेक्टर में कैंपसिंग होती है़, पर इस फील्ड में अपनी पहचान खुद बनानी होती है. अपना फर्म खोलना होता है. क्लांइट बनाने होते हैं. बड़े क्लाइंट से लेकर एक मजदूर तक को डील करना होता है. यह प्रोफेशन लड़कियों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होता है. हालांकि लड़कियां अब चुनौतियां का सामना बखूबी कर रही हैं.
पिता के सपनों को पूरा करने के लिए बन गयीं इंजीनियर
एचइसी में मेटालर्जिकल इंजीनियर लीना प्रिया चार सालों से यहां सेवा दे रही हैं. वह सेंट्रल मेटालर्जिकल टेस्टिंग यूनिट में एक्जिक्यूटिव पद पर है़ं उनका काम है एचइसी में बननेवाले मेटेरियल की टेस्टिंग करना. वह मूल रूप से हाजीपुर की हैं, लेकिन जन्म सिंदरी में हुआ़ प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिशु विद्या मंदिर सिंदरी से हुई. इसके बाद मेटालर्जिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीआइटी सिंदरी से की. लीना प्रिया कभी पत्रकारिता में अपने सपने को उड़ान देना चाहती थीं, लेकिन पिता के कहने पर इंजीनियरिंग की. लीना बताती हैं कि पिता लाल बहादुर शर्मा कोल इंडिया से रिटायर हो चुके है़ं.
उनका सपना था कि मैं इंजीनियर बनूं. उनके सपने को पूरा करने के लिए मेटालर्जिकल इंजीनियरिंग बीआइटी सिंदरी से 2011 में पढ़ाई पूरी की. इसके बाद कोलकाता में क्वालिटी मैनेजर के पद पर सेवा दी. वहां से निकल कर आइआइटी कानुपर से एमटेक की पढ़ाई शुरू की. एक सेमेस्टर के बाद ही 2014 में एचइसी में सेवा देने लगी. लीना भाभा ऑटोमिक रिसर्च सेंटर के लिए भी काम कर चुकी हैं. उन्हें उत्कृष्ट कार्य के लिए 26 जनवरी 2018 को सम्मानित भी किया जा चुका है़ इस सपना के पीछे पापा के अलावा मां राजकुमारी शर्मा और भाई का भी योगदान रहा.