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फ्लाइआेवर पर कराेड़ों खर्च, लेकिन डायवर्सन घटिया, जिंदगी नरक
अनुज कुमार सिन्हा रांची के कांटाटोली में फ्लाइओवर बन रहा है. अच्छा काम है. इस काम काे 10-15 साल पहले हो जाना चाहिए था. चलिए, सरकार ने कम से कम ठोस निर्णय तो लिया. उम्मीद है समय पर यह फ्लाइआेवर बन जायेगा, ताकि रांची की जनता को ट्रैफिक जाम से कुछ राहत मिले. इसमें चुनौतियां […]
अनुज कुमार सिन्हा
रांची के कांटाटोली में फ्लाइओवर बन रहा है. अच्छा काम है. इस काम काे 10-15 साल पहले हो जाना चाहिए था. चलिए, सरकार ने कम से कम ठोस निर्णय तो लिया. उम्मीद है समय पर यह फ्लाइआेवर बन जायेगा, ताकि रांची की जनता को ट्रैफिक जाम से कुछ राहत मिले.
इसमें चुनौतियां हैं. अभी तो काम शुरू हुआ है. जो वहां से गुजर रहा है, उससे पूछिए. अगर गाड़ी से वह आ रहा है तो झूले का आनंद ले रहा है. फ्लाइआेवर के बगल में डायवर्सन बनाया गया है. मिट्टी भर दी गयी है और बन गया डायवर्सन. अफसरों के दिमाग की दाद देनी हाेगी.
यह फ्लाइआेवर दो महीने में नहीं बननेवाला है. ढाई-तीन साल लग सकते हैं. ऐसे में इतना घटिया डायवर्सन से काम नहीं चलनेवाला. इस फ्लाइआेवर पर कराेड़ों खर्च हाेनेवाले हैं. ऐेसे में अगर डायवर्सन (दाेनाें आेर की सड़क) ढंग से बनता, सड़कें समतल हाेतीं, ताे रांची की जनता की पीड़ा कम हाेती. बहुत ज्यादा खर्च भी नहीं पड़ता. वैसे भी बाद में ही सही, इसे बनाना ताे है, ताे फिर अभी क्याें नहीं बनाते. अभी इसी रास्ते से एंबुलेंस भी गुजरता है.
साेचिए, क्या हाल हाेगा मरीज का? जरा मंत्री या सीनियर अफसर एक दिन उसी रास्ते से गुजर कर देखें. कमर की दुर्गति हाे जायेगी. नेता-अफसर आम जनता के कष्ट काे या ताे समझ नहीं रहे हैं या फिर उन्हें इससे काेई मतलब नहीं है. क्या इस काम के लिए भी मुख्यमंत्री ही आदेश देंगे. यह देखना अफसराें का काम है. उन्हें अपनी जिम्मेदारी निभानी हाेगी.
हर दिन के जाम से जनता परेशान है. अभी लाेगाें काे पता ही नहीं चल रहा है कि कहां-कहां फ्लाइआेवर बननेवाला है. कभी रातू राेड में बनने की बात सामने आती है, कभी हरमू में ताे कभी कचहरी चाैक से लालपुर हाेते हुए कांटाटाेली.
घाेषणा हाेती है, विराेध हाेता है आैर निर्णय बदल दिया जाता है. जाे भारी पड़ता है, उसकी बात मान ली जाती है. सभी काे अपने वाेट बैंक की चिंता है. उसके वाेटराें काे कष्ट नहीं हाेना चाहिए. यहां ध्यान देना हाेगा कि आज नहीं ताे कल, सड़काें काे आैर चाैड़ा करना ही हाेगा, एक नहीं, अनेक फ्लाइआेवर बनाने हाेंगे.
जितना विलंब हाेगा, परेशानी उतनी बढ़ेगी. इसलिए फैसले जल्द लिये जायें. जल्द निर्माण आरंभ हाे. समय पर पूरा हाे. चेहरा देख कर मकान-जमीन लेने पर फैसले नहीं लिये जायें. अगर बनना है ताे बनेगा, जमीन लेनी है ताे लेंगे (पूरा भुगतान भी करें, न्याय भी हाे, इसका ख्याल जरूर रहे). अब भी कांटाटाेली में उस तेजी से काम नहीं हाे रहा है, जिस तेजी से हाेना चाहिए.
तीन-तीन शिफ्ट में काम हाे, वह भी तेजी से. समय से पहले इसे पूरा करे. इसका हाल रांची-टाटा राेड जैसा नहीं हाे, इसका ध्यान रखा जाना चाहिए. सरकार-प्रशासन समझे कि एक-एक दिन के विलंब से कितनी परेशानी बढ़ रही है. जिस यात्री काे कांटाटाेली से खेलगांव पहुंचने में दस मिनट लगना चाहिए (दूरी लगभग चार किलाेमीटर), टाटीसिल्वे हाेकर आने में अभी लगभग 40 से 50 मिनट लग रहे हैं. सभी कष्ट इसलिए सह रहे हैं ताकि भविष्य में आना-जाना बेहतर हाे.
अभी असली परेशानी बाकी है. अभी ताे छाेटे डायवर्सन से काम चलाया जा रहा है, लेकिन जब पुल का पिलर बनना आरंभ हाेगा, डायवर्सन की लंबाई बढ़ती जायेगी. इसके साथ ही जनता का कष्ट भी बढ़ेगा, जाम भी बढ़ेगा. इन सभी के लिए तैयार रहिए. हां, अगर प्रशासन, सरकार चाैकस रहे, जनता सहयाेग करे ताे परेशानी कम हाे सकती है, वरना नरक भाेगने के लिए तैयार रहिए.
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