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बदहाल छात्रावास : निर्माण तो अंधाधुंध हुए, पर नहीं रखा गया गुणवत्ता का ख्याल

अनुपयोगी छात्रावासों के लिए कोई नहीं है जवाबदेह, कार्रवाई क्या की गयी पता नहीं पहले से निर्मित छात्रावासों के अलावा कल्याण विभाग ने राज्य गठन के बाद एससी, एसटी व ओबीसी के लिए कुल 514 छात्रावास (पांच रद्द होने के बाद 509) बनाने शुरू किये. इनमें से करीब सौ गत तीन वर्ष से लेकर 10 […]

अनुपयोगी छात्रावासों के लिए कोई नहीं है जवाबदेह, कार्रवाई क्या की गयी पता नहीं
पहले से निर्मित छात्रावासों के अलावा कल्याण विभाग ने राज्य गठन के बाद एससी, एसटी व ओबीसी के लिए कुल 514 छात्रावास (पांच रद्द होने के बाद 509) बनाने शुरू किये. इनमें से करीब सौ गत तीन वर्ष से लेकर 10 वर्षों तक से लंबित हैं.
प्रति छात्रावास औसत निर्माण लागत 70 लाख रुपये है. इस तरह करीब 34 हजार बेड वाले सभी 509 छात्रावासों के निर्माण पर सरकार के 356 करोड़ रुपये खर्च हुए या हो रहे हैं. पूर्व की सरकारों ने छात्रावासों का अंधाधुंध निर्माण करना शुरू किया था. इनमें से ज्यादातर की गुणवत्ता ठीक नहीं है.
कई मामले में तो यह भी नहीं देखा गया कि जो छात्रावास बनाये जा रहे हैं, उसकी उपयोगिता है भी या नहीं. पर सौ करोड़ के लंबित 135 छात्रावासों तथा बन कर अनुपयोगी छात्रावासों के लिए किसी को न तो जवाबदेह बनाया गया है और न ही किसी कार्रवाई की सूचना है.
स्कूलों व छात्रावासों संबंधी विभागीय रिपोर्ट के तथ्य
इन स्कूलों के कुल 1125 क्लास रूम में से 375 का उपयोग अन्य कार्यों में हो रहा
कुल 68 विद्यालय भवनों की मरम्मत की जरूरत, फर्श टूटे हुए
560 दरवाजे व 1035 खिड़कियां जर्जर
22 स्कूलों में छात्रावास नहीं, मुख्य भवन का ही उपयोग छात्रावास की तरह
कुल 20 विद्यालयों में शौचालय नहीं है, 88 स्कूलों के शौचालय में से 69 चालू हालत में नहीं
कुल शौचालयों में से 20 की छत, 304 दरवाजे, 252 पैन व 52 सेप्टिक टैंक की मरम्मत की जरूरत
सिर्फ 10 स्कूलों के शौचालय में पानी
सिर्फ एक सौ विद्यालयों में पेयजल, लेकिन 87 में अपर्याप्त
सर्वे किये गये 75 स्कूलों में बिजली नहीं, 62 सोलर यूनिट में से 17 खराब
57 स्कूलों के रसोई घर में बर्तन अपर्याप्त (तवा, कलछुल, बाल्टी व लोटा तक नहीं)
सिर्फ 21 विद्यालयों में कंप्यूटर व 81 में टीवी
26 स्कूलों में चहारदीवारी भी नहीं
(नये विद्यालयों को छोड़, पुराने में कमोबेश आज भी स्थिति यही है)
छात्रावासों का हाल
छात्रावासों में इनकी क्षमता से 2789 विद्यार्थी अधिक रह रहे थे
अंचादेवी बालिका उच्च विद्यालय, मधुपुर छात्रावास में सुरक्षा प्रहरी नहीं, यहां कोई छात्रा नहीं रहती
एसटी बालिका कल्याण छात्रावास, सेक्टर दो बोकारो में रात्रि प्रहरी, रसोईया व सफाई कर्मी नहीं. बारिश से चहारदीवारी बह गयी
श्यामा प्रसाद उच्च विद्यालय जमशेदपुर, एसएस बालक उच्च वि. चाकुलिया तथा प्रोजेक्ट बालिका उच्च विद्यालय के छात्रावास जर्जर
अनुसूचित जाति बालिका छात्रावास, बरवाडीह पूरी तरह बर्बाद
काशीराम साहू कॉलेज, सरायकेला में बालक-बालिका छात्रावास एक साथ. इसलिए छात्राएं नहीं रहती
उच्च विद्यालय तिरुलडीह सरायकेला का छात्रावास जर्जर, कोई नहीं रहता एसटी बालक छात्रावास, लिट्टीपाड़ा का छात्रावास जर्जर, बच्चे स्कूल के कमरे में रहते हैं
( ऐसे छात्रावासों की बड़ी संख्या के कारण सबका नाम देना संभव नहीं है)
गिरिडीह : कई कमरे हो चुके हैं जर्जर, खुद खाना बनाते हैं छात्र
शहरी क्षेत्र के बरगंडा में संचालित आदिवासी कल्याण छात्रावास के आठ कमरों में से कई जर्जर हो चुके हैं. बरसात में कमरों में पानी टपकता है, जिससे वहां रहनेवाले छात्रों को काफी परेशानी होती है. यहां 50-60 छात्र रहते हैं. छात्रावास के लिए सरकार से कोई फंड नहीं मिलता. जिला कल्याण पदाधिकारी रामेश्वर चौधरी ने कहा कि वह छात्रावास की मरम्मत का प्रस्ताव सरकार को भेजेंगे.
12 कमरोंवाले इस छात्रावास में छह कमरे ठेकेदार के कब्जे में है
जवाहर लाल नेहरू महाविद्यालय, चक्रधरपुर के एसटी छात्रावास की स्थिति ठीक नहीं है. करीब 30 वर्ष पूर्व जेएलएन कॉलेज के समीप बने 50 बेड वाले इस छात्रावास का अभी मरम्मत किया जा रहा है. कुल 12 कमरोंवाले इस छात्रावास में छह कमरे ठेकेदार के कब्जे में हैं. शेष छह कमरों में 24 बेड हैं. जिसमें 42 छात्राएं रहती हैं.
इन 42 छात्राओं के उपयोग के लिये मात्र दो शौचालय व तीन बाथरूम है. इससे विद्यार्थियों को काफी परेशानी होती है. रसोई घर की स्थिति भी काफी खराब है. खाना पकाने के लिये टूटे-फूटे बरतन का उपयोग होता है. विभाग ने जेनरेटर की व्यवस्था तो की है. पर जनरेटर चलाने के लिये डीजल की व्यवस्था छात्राएं खुद करती हैं. मेस में खाना बनाने की सामग्री व रसोइया का भार भी गरीब छात्राओं पर पड़ता है.
गैस संयोजन के लिए आवेदन दिया, पर नहीं हो रही सुनवाई
घाटशिला महाविद्यालय के फुलडुंगरी स्थित आदिवासी कल्याण छात्रावास के तीनों भवनों में से दो भवन जीर्ण शीर्ण स्थिति में हैं. इन्हीं भवनों में 200 छात्र जान जोखिम में डाल कर पढ़ाई करने को विवश हैं. वर्ष 1984 में बने इस छात्रावास की दीवारों की रंगाई पुताई 20 वर्षों से नहीं हुई है. 2009 में तीसरे भवन का निर्माण हुआ. मगर अभी तक इस भवन में बेड, चेयर और टेबल की व्यवस्था नहीं की गयी है.
छात्रावास की चहारदीवारी नहीं है तथा खिड़की-दरवाजे भी जर्जर हो चुके हैं. बाथरूम का पाइप क्षतिग्रस्त हो चुका है. बिजली का वायरिंग उखड़ गया है. उज्ज्वला योजना के दौर में छात्राएं यहां लकड़ी फूंक कर खाना बनाती हैं. छात्राअों ने बताया कि गैस संयोजन के लिए बीडीअो को कई बार आवेदन देने पर भी काम नहीं हुआ है.
चार कमरों में रहते हैं 300 छात्र कमरों में चूहों का है बोलबाला
कुमार कालिदास मेमोरियल कॉलेज के आदिवासी छात्रावास के कुल चार बड़े कमरों में लगभग 300 सौ छात्र रहते हैं. हर कमरे में लगभग 80 छात्र रहते हैं. कमरे में लगी चौकियों पर सामान्यतः दो छात्र व परीक्षा के समय तीन-तीन छात्र सोते हैं. मेस में खाना बनाने के लिए सिर्फ एक कारीगर है.
जो कि चार आदिवासी छात्रावास का खाना बनाता है. मेस और कमरों में चूहों का बोलबाला है. हर जगह को चूहों ने कुरेद डाला है. गड्डों व चूहों के बिल से कमरे भरे पड़े हैं. बारिश होते ही छत से पानी टपकने लगता है. ऐसी स्थिति में छात्र पढ़ाई करने को विवश हैं. हालांकि छात्रावास संख्या-4 की हालत छात्रावास संख्या-1 की तुलना में काफी अच्छी है. हर कमरे में चार बेड लगे हुए हैं.
टेबल व कुर्सी की व्यवस्था है. फैन भी लगा हुआ है. लेकिन पानी रिसने से सब बेकार हो जाता है. छात्रावास संख्या-एक के बाथरूम में साफ-सफाई का घोर अभाव है. छात्रों ने बताया कि यहां कोई अधिकारी या प्रिंसिपल कभी देखने तक नहीं आते हैं. एक बार मूलभूत सुविधाअों को लेकर छात्रों ने आंदोलन किया, तो उलटे छात्रों पर ही केस दर्ज कर दिया गया.
छत से टपकता है पानी दीवार भी हाे चुकी जर्जर
करनडीह स्थित लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय के आदिवासी कल्याण छात्रावास का भी हाल बुरा है. इंटर से स्नातक तक के दो सौ छात्र यहां रहते हैं.
वर्ष 2006 में बने इस छात्रावास की छत और दीवार से बरसात के मौसम में पानी टपकता है. छात्रों के अनुसार दीवार से सटने से कई बार करंट लगा है. किचेन में ईंट से बना देसी चूल्हा है. छात्र आपस में चंदा करके कुक को मानदेय का भुगतान करते हैं. जबकि खाद्य सामग्री छात्र अपने घर से लाते हैं.छात्रावास में तीन ब्लॉक हैं, जिनमें से दो खस्ताहाल हैं.
पहाड़िया बच्चियों के लिए न तो वार्डेन है, न ही रात्रि प्रहरी
प्लस टू बालिका उच्च विद्यालय, दुमका में पहाड़िया छात्राओं के लिए एकमात्र आदिम जनजाति बालिका कल्याण छात्रावास है. छात्रावास में 50 छात्राएं रहती हैं, पर यहां न तो कोई वार्डेन है, न ही रात्रि प्रहरी अौर न ही रसोइया. छात्राएं खुद खाना बनाती हैं. सबके कमरे में गैस चूल्हा है. गरीब छात्राएं पंद्रह-बीस दिनों के अंतराल पर 90 से 100 रु प्रति किलो की दर से एलपीजी गैस भरवाती हैं. छात्राओं ने बताया कि तीन महीने से खराब मोटर को मजबूरी में उन्हें खुद बनवाना पड़ा.
बच्चियों ने 3200 रु खर्च कर मोटर बनवाया. इस तरह दुनियादारी का सारा काम करने के बाद बचे हुए समय में पढ़ती हैं. दुमका,साहेबगंज, पाकुड़ और गोड्डा जिले के सुदूरवर्ती इलाके की इन बच्चियों के अभिभावकों ने शायद सपना देखा था कि हॉस्टल में रहकर उनकी बेटियां खूब पढ़ पायेंगी, लेकिन उन्हें ऐसा लग रहा है कि भले ही वे पढ़ने के लिए आयी हों, लेकिन खाना बनाने और दूसरे कामों में ज्यादा वक्त निकल जा रहा है. पढ़ाई के लिए वक्त नहीं मिल पाता.
चापाकल पर निर्भर हैं छात्रावास के 120 बच्चे
तुलबुल स्थित खिजुरियाटांड़ में संचालित आदिवासी छात्रावास का पानी की टंकी टूट गयी है. उधर शौचालयों में नल की व्यवस्था नहीं है. ऐसे में छात्रावास के 120 बच्चे पूरी तरह चापाकल पर निर्भर हैं. पर दो में से एक चापाकल खराब है. पानी लाने में परेशानी होने से बाथरूम बेकार पड़ा है. वहीं छात्रावास की खिड़कियों के ज्यादातर शीशे टूटे हैं तथा कई दरवाजे क्षतिग्रस्त हैं.
जर्जर छात्रावास में रहने को मजबूर छात्र
खरसावां के प्लस टू हाइस्कूल में 2003 में 50 बेड का छात्रावास बना था. अब इस छात्रावास की छत से प्लास्टर गिर रहे हैं. बारिश में पानी टपक रहा है. फर्श व दीवार का प्लास्टर भी उखड़ रहा है. खिड़की व दरवाजे दीमक खा रहे हैं.
करीब 15 वर्ष पहले उपलब्ध कराये गये बेड की स्थिति खस्ता हो गयी है. बिजली की वायरिंग उखड़ गयी है तथा किचेन की हालत बदतर है व रसोइया नहीं है. बच्चे अपना भोजन खुद बनाते हैं. शौचालय भी काफी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है. वर्ष 2003 के बाद विभाग की ओर से एक रुपया का भी फंड नहीं मिला है.
वर्ष 2014-15 में बरतन उपलब्ध कराया गया था. स्कूल की ओर से विभाग को तीन बार रिपोर्ट भेज कर उक्त भवन के जीर्णोद्धार करने के साथ साथ आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने की मांग की गयी है, जो अब तक पूरी नहीं हुई है. इधर जिले में कई ऐसे भी छात्रावास हैं, जिनका उपयोग दूसरे कार्य में हो रहा है. आदमा स्थित छात्रावास में तसर प्रशक्षिण केंद्र, दलभंगा में सीआरपीएफ कैंप तथा सीनी में प्रशिक्षण केंद्र का संचालन हो रहा है.

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