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रांची : पैसा है, पर खर्च कैसे करें समझ नहीं पा रहे अफसर

दिल्ली से लौटकर मनोज सिंह जिले के अधिकारी स्वीकार करते हैं कि इतनी ज्यादा राशि खर्च करने की क्षमता जिलों में नहीं है रांची : डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन (डीएमएफ) स्कीम के तहत राज्य के जिलों को पैसा तो बहुत मिल रहा है, लेकिन इसे खर्च कैसे और कहां किया जाये इसका रास्ता अधिकारियों को नजर […]

दिल्ली से लौटकर मनोज सिंह
जिले के अधिकारी स्वीकार करते हैं कि इतनी ज्यादा राशि खर्च करने की क्षमता जिलों में नहीं है
रांची : डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन (डीएमएफ) स्कीम के तहत राज्य के जिलों को पैसा तो बहुत मिल रहा है, लेकिन इसे खर्च कैसे और कहां किया जाये इसका रास्ता अधिकारियों को नजर नहीं आ रहा है. जिले के अधिकारी स्वीकार करते हैं कि इतनी ज्यादा राशि खर्च करने की क्षमता जिलों में नहीं है. इसके लिए न तो मैन पावर है न ही एजेंसी. हालांकि, कुछ जिलों के अधिकारी इस मामले में राज्य सरकार के निर्देशों के हिसाब से खर्च कर रहे हैं. कुछ अधिकारी मानते हैं कि डीएमएफ के तहत पैसा खर्च करने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश भी नहीं है.
भारत सरकार के खान विभाग के अधिकारी भी मानते हैं कि इस स्कीम को लेकर और अधिक मंथन करने की जरूरत है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसइ) द्वारा दिल्ली में डीएमएफ के स्टेटस रिपोर्ट जारी करने के मौके पर भारत सरकार के खान विभाग के संयुक्त सचिव निरंजन कुमार सिंह ने बताया कि भारत सरकार राशि खर्च करने के कई रास्ते सोच रही है.
इसमें एक रास्ता आसपास के जिलों में खर्च करने का है. मध्य प्रदेश सरकार के खान विभाग के प्रधान सचिव नीरज मंडलोई कहते हैं कि पहली बार खान विभाग विकास की योजना पर काम कर रहा है. पूर्व में खान विभाग केवल रेगुलेटरी बॉडी के रूप में था. इस कारण पैसा खर्च करने के मुद्दे पर भ्रम की स्थिति है. झारखंड के खान विभाग के सचिव अबू बकर सिद्दीकी कहते हैं कि झारखंड मेंयह राशि पेयजल और शौचालय पर खर्च की जा रही है. खनन वाले इलाकों की सबसे बड़ी समस्या पीने के पानी की है. इसका कारण है कि सारंडा में लाल तो धनबाद में काला पानी मिलता है, जो पीने लायक नहीं होता है. वहीं सीएसइ की निदेशक सुनीता नारायण और उप निदेशक चंद्रभूषण का कहना है कि पैसा कहां खर्च करना है, यह जिलों को तय करना है. इसमें राज्य सरकार का हस्तक्षेप पूरी तरह गलत है. राजस्थान में ऐसा किया जा रहा है. बैठक में धनबाद, बोकारो, चाईबासा और चतरा के उपायुक्तों ने भी हिस्सा लिया.
तीन साल में 2696 करोड़ मिले हैं झारखंड को
झारखंड में खनन वाले जिलों को पिछले तीन साल में कुल 2696 करोड़ रुपये मिले हैं. यह राशि सीधे जिले के उपायुक्तों के पास जा रही है.
सीएसइ की प्रोग्राम मैनेजर श्रेष्ठा बनर्जी की टीम ने झारखंड के चार जिलों (धनबाद, बोकारो, रामगढ़ और प सिंहभूम) में स्कीम का अध्ययन किया. टीम ने पाया कि अब तक 538 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. इसमें जलापूर्ति योजना पर 1433, सेनिटेशन पर 274 करोड़ रुपये स्वीकृत किये गये हैं. श्रेष्ठा का कहना है कि झारखंड में इस स्कीम का लाभुक कौन होगा, चिह्नित करना चुनौती है.
क्योंकि इस पैसे को खर्च करने के लिए झारखंड के जिलों में कोई सेटअप नहीं है. राज्य या जिला स्तर पर डीएमएफ का वेबसाइट नहीं है. सेनिटेशन का काम है, जो कंस्ट्रक्शन आधारित है. इससे राज्य की मूल समस्या (कुपोषण, अशिक्षा) पर काम नहीं हो रहा है. धनबाद में खनन से सबसे अधिक प्रभावित एरिया झरिया है, इसके लिए एक रुपया भी नहीं स्वीकृत किया गया.
क्या-कहा जिला उपायुक्तों ने
एक साल में जिले को 450 करोड़ रुपये मिले हैं. जिले के पास इतनी बड़ी एजेंसी नहीं होती है, जो इतना पैसा खर्च कर सके. इस कारण राज्य सरकार का आदेश मिलने के बाद जलापूर्ति योजना शुरू की गयी है. इससे 700 गांवों को फायदा होगा. झरिया के लिए अलग से पैसे की व्यवस्था की गयी है.
अंजेलेयेलू डोड्डे, उपायुक्त, धनबाद
जिले को करीब 460 करोड़ रुपये मिले हैं. लोग समझते हैं कि यह पैसा डीसी की पॉकेट मनी की तरह है. जहां चाहे खर्च कर सकते हैं. ऐसा नहीं है. जिले में सप्लाई पानी की बड़ी स्कीम ली गयी है. इससे 670 गांवों को लाभ होगा.
अरवा राजकमल, उपायुक्त, चाईबासा
जिले को मिले 400 करोड़ रुपये में से 230 करोड़ की जलापूर्ति योजना ली गयी है. 90 आंगनबाड़ी का जीर्णोद्धार हो रहा है. चार एंबुलेंस खरीदी गयी है. पंचायती राज संस्थाओं की बहुत अधिक सहभागिता नहीं हो पा रही है. इसके कई कारण हैं.
जितेंद्र कुमार सिंह, उपायुक्त, चतरा
जिले में 271 करोड़ रुपये जलापूर्ति योजना के लिए स्वीकृत किये गये हैं. 100 करोड़ रुपये से पाइप लाइन बिछाया जा रहा है. जो योजना बना है, उसमें कई कमियां हैं. कानून ऐसा होना चाहिए, जिससे कम से कम कमी की गुंजाइश हो.
मृत्युंजय कुमार वर्णवाल, उपायुक्त, बोकारो

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