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रांची : एक राष्ट्र, एक चुनाव की व्यवस्था देश के अस्तित्व की जड़ें हिला देगी : शिबू

विधि आयोग की ओर से मांगी गयी राय पर झामुमो ने दिया सुझाव रांची : एक राष्ट्र, एक चुनाव पर विधि आयोग की ओर से मांगी राय पर झामुमो ने अपना सुझाव भेज दिया है. झामुमो के केंद्रीय अध्यक्ष सह दुमका सांसद शिबू सोरेन की ओर से भेजे गये सुझाव में कहा गया है कि […]

विधि आयोग की ओर से मांगी गयी राय पर झामुमो ने दिया सुझाव
रांची : एक राष्ट्र, एक चुनाव पर विधि आयोग की ओर से मांगी राय पर झामुमो ने अपना सुझाव भेज दिया है. झामुमो के केंद्रीय अध्यक्ष सह दुमका सांसद शिबू सोरेन की ओर से भेजे गये सुझाव में कहा गया है कि एक राष्ट्र, एक चुनाव की व्यवस्था देश के अस्तित्व की जड़ें हिला कर रख देगी. संवैधानिक, व्यावहारिक एवं प्रक्रियात्मक बिंदु से साफ होता है कि लोकसभा एवं विधानसभाओं के एक साथ चुनाव देश के संघीय ढांचे को विघटित करने, राज्य सरकारों को कमजोर करने एवं देश के वंचित वर्गों में नवजागृत राजनैतिक चेतना को कुचलने की साजिश है. नोटबंदी और जीएसटी के घोषित उद्देश्य सवालों के घेरे में हैं.
इसने तो देश की अर्थव्यवस्था की जड़ें हिलायी हैं. प्रस्तावित व्यवस्था के पीछे छिपे उद्देश्य भी बेहद खतरनाक हैं. किसी राजनीतिक दल एवं व्यक्ति को अपने राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए देश की व्यवस्था को तहस-नहस करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.
अत: झामुमो इस प्रस्ताव का विरोध करती है. पार्टी का सुझाव होगा कि इस प्रस्ताव के पूरे ढांचे को समेकित रूप से उचित माध्यम से देश के सामने रखा जाये, ताकि गुण दोष के आधार पर देश की जनता उस पर निर्णय सुना सके.
चुनाव खर्च में कमी आने का तर्क हास्यास्पद
पत्र में कहा गया है कि प्रस्तावित व्यवस्था के पक्ष में यह तर्क दिया जा रहा कि इससे चुनाव में होने वाले खर्च में कमी आयेगी, यह तर्क हास्यास्पद है.
जिस देश में राष्ट्रीय राजनीतिक दल आर्थिक दानव का रूप अख्तियार कर लिया हो, जहां राष्ट्रीय दलों का साल में एक हजार करोड़ रुपये की घोषित आमदनी हो, जहां राष्ट्रीय दलों का अपना चुनावी बजट दुनिया के कुछ छोटे देशों के जीडीपी के बराबर हो, उस देश में खर्च में कटौती के नाप पर बाबा साहब अांबेडकर के द्वारा बनाये गये संविधान को कोई समाप्त करना चाहे, तो इसे आप सुधार कहेंगे या साजिश.
प्रस्तावित व्यवस्था के पीछे छिपे उद्देश्य भी बेहद खतरनाक हैं
असंवैधानिक है यह अवधारणा
झामुमो का मानना है कि एक राष्ट्र, एक चुनाव की अवधारणा में कई प्रकार की खामियां हैं. मूल रूप से यह पूरी अवधारणा असंवैधानिक व अव्यावहारिक है. विगत दशकों में राष्ट्रीय दलों द्वारा जन अाकांक्षाओं के अनुरूप परिणाम नहीं देने के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में वंचितों, दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों एवं अल्पसंख्यकों का एक बड़ा तबका व्यवस्था की खामियों के विरुद्ध अपने आक्रोश को व्यक्त करने के लिए अपने-अपने क्षेत्रों में क्षेत्रीय दलों को आगे बढ़ाया और उन्हें समर्थन दिया. देश के लगभग 70 प्रतिशत राज्यों में क्षेत्रीय दलों की मजबूत स्थिति है.
इसने स्थानीय समस्याओं पर प्रभावी कार्य कर लोगों का भरोसा जीता है. एक साथ चुनाव होने से राष्ट्रीय मुद्दे हावी होंगे. स्थानीय मुद्दे गौण हो जायेंगे. पिछड़े क्षेत्रों एवं कमजोर वर्गों के हितों का बड़ा नुकसान होगा. देश में इस विषय पर चल रही रायशुमारी की प्रक्रिया पर झामुमो को आपत्ति है.
यह संविधान संशोधन का विषय है
यह संविधान संशोधन का विषय है, कानून की समीक्षा का नहीं.संविधान संशोधन पर निर्णय संसद के द्वारा लिया जाता है. यह भी कहा गया है कि प्रस्तावित व्यवस्था के क्रियान्वयन में बड़ी बाधाएं आयेंगी और इसे सही तरीके से लागू करना संभव नहीं हो पायेगा. पिछले तीन-चार सालों में देश में विभिन्न राज्यों में गठबंधन की सरकारें बनी हैं, चली हैं. कई अवसरों पर अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले गिरी हैं.
अगर यह व्यवस्था लागू होती है और सरकार गठन के दो-तीन साल की अवधि में सरकार गिरती है, तो क्या एेसी परिस्थिति में राज्य के वैधानिक सरकारों को बर्खास्त करते हुए लोकसभा के साथ इन राज्यों के भी चुनाव कराये जायेंगे?
यदि कुछ राज्यों में अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही सरकार गिरती है, तो क्या केंद्र सरकार को बर्खास्त करते हुए इन राज्यों के विधानसभा के साथ लोकसभा के चुनाव कराये जायेंगे? क्या ऐसा करना संविधान के मूल भावना के अनुकूल होगा?

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