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रांची : आदिवासी संगठनों की बैठक, भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक का विरोध, 27 को सभी जिलों में होगा धरना-प्रदर्शन
रांची : नगड़ाटोली स्थित सरना भवन में बुधवार को आदिवासी संगठनों की बैठक हुई. भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक सहित अन्य मामलों पर विचार किया गया. निर्णय लिया गया कि भाजपा सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ 27 जून को झारखंड के प्रत्येक जिले में धरना प्रदर्शन आयोजित होगा. 20 अगस्त को राजभवन के समक्ष महाधरना […]
रांची : नगड़ाटोली स्थित सरना भवन में बुधवार को आदिवासी संगठनों की बैठक हुई. भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक सहित अन्य मामलों पर विचार किया गया. निर्णय लिया गया कि भाजपा सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ 27 जून को झारखंड के प्रत्येक जिले में धरना प्रदर्शन आयोजित होगा. 20 अगस्त को राजभवन के समक्ष महाधरना किया जायेगा.
इसके अलावा 20 दिसंबर को आदिवासी विद्रोह महारैली का आयोजन किया जायेगा. आदिवासी सरना महासभा के मुख्य संयोजक देव कुमार धान ने कहा कि झारखंड सरकार भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून, लैंड बैंक, जमाबंदी रद्द करने अौर मास्टर प्लान 2037 को लागू कर इस राज्य को विनाश के कगार पर ले जा रही है.
यह आदिवासियों के लिए बहुत बड़ा खतरा है. यह राज्य की आदिवासी मूल निवासी जनता को समूल नष्ट करने की साजिश है. उन्होंने कहा कि अब एकजुट होकर लड़ाई करने की जरूरत है. रघुवर दास बार-बार कहते हैं कि आदिवासियों की जमीन कोई नहीं छीन सकता. अगर उनका कहना सच है तो एसएआर कोर्ट से दखल दिहानी के चार हजार मामलों में अविलंब जमीन पर वास्तविक मालिकों (आदिवासियों) को हक दिलायें.
समाजसेवी मोती कच्छप, पूर्व मंत्री भगत एवं सी सिंकू ने संयुक्त रूप से कहा कि भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून बनाकर सरकार मनमाने तरीके से आदिवासियों की जमीन छीनना चाहती है. यह कानून जिसे राष्ट्रपति ने अनुमोदित किया है, राज्य की जनता खारिज करती है. बैठक को निरंजना हेरेंज टोप्पो, अजीत उरांव, धनेश्वर उरांव, जीतवाहन उरांव, प्रभु उरांव, विकास मिंज, बुधवा उरांव ने भी संबोधित किया.
रांची : राष्ट्रपति को भ्रम में रख पारित कराया गया बिल : झामुमो
रांची : झामुमो के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि संवैधानिक परंपराओं, स्थापित नियम और मर्यादाओं को ताक पर रख कर सरकार ने बहुमत के बल पर भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता का अधिकार (झारखंड संशोधन) विधेयक 2017 को पारित कराया है.
इस विधेयक में स्पष्ट उल्लेख किया गया था कि यह एक जनवरी 2014 से प्रवृत्त हुआ समझा जायेगा. उन्होंने कहा कि राज्य विधानसभा से पारित विधेयक किस संवैधानिक हैसियत से राज्य सरकार के अधिकारी द्वारा संशोधन किया गया.
सरकार ने यह भी जरूरी नहीं समझा कि संशोधित विधेयक को पुन: कैबिनेट के माध्यम से विधानसभा के पटल पर रख कर उसे चर्चा के बाद पारित कराया जाये. सरकार ने राष्ट्रपति को भ्रम रख कर इस विधेयक पर स्वीकृति प्राप्त कर ली. इसमें स्पष्ट उल्लेख है कि राज्य सरकार सामाजिक प्रभाव आकलन एवं लोक प्रायोजन एवं खाद्य सुरक्षा के सभी संवैधानिक प्रावधानों को विधेयक के माध्यम से निरस्त करती है. सरकार कह रही है कि विधेयक पारित होने से स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय के लिए जमीन अधिग्रहित की जायेगी.
सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि 1476 बुनियादी विद्यालयों का विलय कर सरकार किस प्रकार विद्यालय, महाविद्यालय व विश्वविद्यालय का निर्माण करना चाहती है. राज्य में भूखमरी से मौत हो रही है. कर्ज में डूबे किसानों की आत्महत्याएं बढ़ रही हैं. ऐसे में कृषि योग्य भूमि को अधिग्रहण करने की कौन सी मजबूरी आ गयी. क्या इससे पहले राज्य में सरकारी योजनाओं के लिए जमीन की कमी हुई है?
भेदभाव कर रही है सरकार : राजद
रांची : राजद के प्रदेश प्रवक्ता डॉ मनोज कुमार ने कहा कि राज्य सरकार दुर्भावना से ग्रसित होकर भेदभाव पूर्ण कार्य कर रही है. उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार ने मदरसा व संस्कृत विद्यालय के शिक्षक और शिक्षकेतर कर्मचारियों को पेंशन देने का निर्णय लिया था, जो जनहित और सैकड़ों परिवार के जीवनयापन के लिए जरूरी था. परंतु वर्तमान सरकार ने इस फैसले को कैबिनेट से निरस्त करने का निर्णय लिया है, जो विद्वेषपूर्ण है. सरकार मदरसों को अनुदान देने में भी भेदभाव करती है.
भूमि अधिग्रहण बिल का विरोध गलत
कांके बोड़ेया के पंचायत समिति सदस्य सोमा उरांव ने कहा कि भूमि अधिग्रहण बिल का विरोध गलत है. इस बिल के लागू होने से विकास को गति मिलेगी. आज आदिवासियों की जमीन औने-पौने दाम पर ली जा रही है. बिल के लागू होने से मुआवजा के रूप में जमीन की चारगुना कीमत मिलेगी.
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