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पर्यावरण के मामले में झारखंड के लोग भगवान के सबसे लाडले बेटे व बेटियां हैं
पर्यावरण साहित्य सम्मेलन. हैपीनेस इंडेक्स से ही भारत बन सकता है विश्व गुरु, डॉ राजेंद्र ने कहा रांची : प्रकृति व इंसान एक-दूसरे के पूरक हैं. वे एक-दूसरे को समझते थे. जब तक इंसान प्रकृति का नियंता नहीं था, उसका हिस्सा था, वह काल सतयुग कहा गया. जब भारत के लोग प्रकृति को भगवान मानते […]
पर्यावरण साहित्य सम्मेलन. हैपीनेस इंडेक्स से ही भारत बन सकता है विश्व गुरु, डॉ राजेंद्र ने कहा
रांची : प्रकृति व इंसान एक-दूसरे के पूरक हैं. वे एक-दूसरे को समझते थे. जब तक इंसान प्रकृति का नियंता नहीं था, उसका हिस्सा था, वह काल सतयुग कहा गया. जब भारत के लोग प्रकृति को भगवान मानते थे, तब वह विश्व गुरु हुअा करता था. हम जीडीपी ग्रोथ के जरिये विश्व गुरु नहीं बन सकते, बल्कि हैपीनेस इंडेक्स से ही विश्व गुरु बना जा सकता है.
अर्थात हम अपने पर्यावरण को बचा कर और लोगों की खुशियां बढ़ा कर ही विश्व गुरु बन सकते हैं. उक्त बातें मैग्सेसे पुरस्कार विजेता व जल पुरुष के नाम से प्रसिद्ध डॉ राजेंद्र सिंह ने कही. वे शुक्रवार को अॉड्रे हाउस परिसर में चल रहे पर्यावरण मेला के चौथे दिन आयोजित पर्यावरण साहित्य सम्मेलन का उदघाटन कर रहे थे. सम्मेलन का आयोजन युगांतर भारती व नेचर फाउंडेशन की अोर से किया गया था.
डॉ सिंह ने सतयुग से लेकर कलयुग तक के उदाहरणों के माध्यम से साहित्य, प्रकृति व पर्यावरण पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत की जीवन शैली प्रकृति पर आधारित है. भारतीय जीवन पर्यावरण व प्रकृति से भरा है.
आज गांव से लोग उजड़ कर शहरों की अोर जा रहे हैं. इससे प्रकृति से नाता टूटता है, तो सूखा पड़ता है. पर्यावरण पर संकट आता है. उन्होंने कहा कि वर्ष 2017 में 13 राज्यों के 327 जिलों में सूखा पड़ा था. आजादी के बाद पहली योजना के समय देश के 232 गांव नो सोर्स विलेज थे. वहां पानी नहीं था. 2017 में 2.65 लाख गांवों में पानी था, लेकिन वह पीने लायक नहीं था. डॉ सिंह ने कहा कि हमें आदिवासियों की जीवन शैली से सीखना होगा, जो प्रकृति से कम से कम लेते हैं और उसे बचाये रखते हैं.
आज जितनी तथाकथित विकसित इलाकों की जमीन बीमार है, उतनी आदिवासियों की जमीन नहीं है. प्रकृति के मामले में झारखंड साैभाग्यशाली है. झारखंड के लोग भगवान के सबसे लाडले बेटे व बेटियां हैं, क्योंकि यहां अभी भी जंगल, पर्याप्त बारिश होती है आैर पानी उपलब्ध है. यहां की मिट्टी अच्छी है, लेकिन आनेवाले समय में यह बिगड़ने वाली है.
जल पुरुष ने कहा कि भारत का साहित्य खुशियों का साहित्य है. इसमें प्रकृति व पर्यावरण का वर्णन है. पर्यावरण का साहित्य लालची होकर नहीं लिखा जा सकता. वह शुभ व लाभ अर्थात सर्व समाज की चिंता करके ही लिखा जा सकता है. हमारे विकास की अवधारणा विस्थापन, प्रदूषण, बाढ़ व सूखा पैदा करती है. आजादी के समय भारत की जितनी जमीन पर बाढ़ व सूखा था, आज उससे कहीं 10 गुना ज्यादा जमीन बाढ़ व सूखा से प्रभावित है.
पर्यावरण को बचाने के लिए सामाजिक जागरूकता जरूरी : दिनेश उरांव
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विधानसभा अध्यक्ष डॉ दिनेश उरांव ने कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए सामाजिक जागरूकता जरूरी है. पर्यावरण संरक्षण के उपाय करने के पूर्व उसे समझना जरूरी है.
इस दिशा में कई कदम उठाये जा रहे हैं, लेकिन जब तक लोगों तक इसे नहीं पहुंचाया जायेगा, तब तक पर्यावरण का संरक्षण नहीं हो सकेगा. उन्होंने पर्यावरण की रक्षा के लिए खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय द्वारा किये जा रहे प्रयासों की सराहना की.
प्रकृति के बिना जीवन की कल्पना नहीं हो सकती: रणेंद्र कुमार
इससे पूर्व विषय प्रवेश कराते हुए खेलकूद व युवा कार्य विभाग व टीआरआइ के निदेशक रणेंद्र कुमार ने कहा कि प्रकृति व पर्यावरण हिंदुस्तानियों के जीवन में वेदों के समय से है. प्रकृति हमारे देवी-देवताअों के रूप में है. प्रकृति के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है. साहित्य की मूल रचना प्रकृति व पर्यावरण है, बाकी सब अनुकृतियां हैं.
पर्यावरण की रक्षा, हमारी रक्षा है. हमारे साहित्य में प्रकृति मूल आधार है. साहित्यकार डॉ अशोक प्रियदर्शी ने कहा कि साहित्य क्रांति नहीं करता है. क्रांति परिस्थितियों से नहीं होती है. साहित्य जागरूक करने का काम करता है. सावधान करता है. प्रकृति के प्रति समर्पण व सम्मान देना जरूरी है. प्रकृति पर अत्याचार से भुगतना हमें ही होगा. प्रकृति नहीं बचेगी, तो हम भी नहीं बचेंगे.
सम्मेलन में साहित्यकार डॉ गिरिधारी राम गाैंझू, महादेव टोप्पो, डॉ राम प्रसाद, डॉ शैलेश कुमार मिश्र, डॉ जिंदर सिंह मुंडा, डॉ प्रज्ञा गुप्ता, डॉ अवध पुराण व डॉ सरस्वती गगराई ने झारखंड की लोक भाषाओं में पर्यावरण पर अपने विचार रखे. इस अवसर पर वीरेंद्र कुमार सिंह, मधुकर, प्रणव कुमार बब्बू, आनंद कुमार, जितेंद्र नारायण सिंह, शेखर शाहदेव सहित बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे.
जागृति से ही पर्यावरण की रक्षा होगी : सरयू राय
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे खाद्य सार्वजनिक वितरण व उपभोक्ता मामलों के मंत्री सरयू राय ने कहा कि लोगों में जागृति लाने के लिए यह एक छोटा सा प्रयास है.
जागृति लाकर ही पर्यावरण की रक्षा की जा सकती है. इसमें सभी लोगों का सहयोग जरूरी है. उन्होंने कहा कि पर्यावरण के प्रति संवेदना आयेगी, तो माहौल अपने आप बदल जायेगा.
हमारे साहित्य का मूल आधार पर्यावरण ही है. जल संसाधन विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ डीके तिवारी ने कहा कि जो साहित्य है, वही प्रकृति है. साहित्य पढ़ने में जो आनंद आता है, वहीं आनंद प्रकृति के बीच जाने पर आता है. आज विज्ञान भी नेचुरल साइंस की ओर बढ़ रहा है. प्रकृति व साहित्य में अटूट संबंध है.
रांची : पर्यावरण मेला आयोजित कवि सम्मेलन में कवियों ने कविताअों के माध्यम से प्रकृति की महत्ता बतायी. हिंदी, जनजातीय व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के कवियों ने पर्यावरण पर आधारित कविताओं का पाठ किया. कवि नीरज नीर ने कहा: देख कर ताप आदमी बोला बाप रे बाप, अब तो शहर में भी आ गया सांप. सांप सकपकाया, फिर अड़ा, फिर तन कर हो गया खड़ा, फन फैला कर बोला, मैं शहर में नहीं आया जंगल में आ गये हैं आप. यह सुन हॉल तालियों से गूंज उठा.
संजीता कुजारा टाक ने मैंने सुनी है पेड़ों की बातें… और उसने कहा ऑक्सीजन, मैंने कहा तुम… उसने कहा, कार्बन डाइऑक्साइड, मैंने कहा तुम्हारे विचार और जादूगर कविता से खूब वाहवाही बटोरी. ज्योति लकड़ा ने कहा, आज भी याद है मुझे आजी की कहानियां, जिनमें होते पैरों में प्राण.. लेकिन फिर भी कटते रहे पेड़ और हवाओं में बुने जा रहे हैं षड्यंत्र, लाल गलियारे के बहाने. सुना है हर पांच किलोमीटर पर बनाये जायेंगे विवाह मंडप, जहां दूल्हे का लिबास पहन आयेंगे नरेश दिल्ली के राजघराने से अपने कॉरपोरेट बारातियों संग. और साखू का देश सारंडा हो गया है वीरान कविता से लोगों की संवेदनाओं को झकझोरा.
राजीव थेपड़ा ने अपने गीत ये खेत, ये मिट्टी,ये फसलें, ये पानी का पाठ कर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया. मोनिका प्रेमी टोप्पो ने कहा जब हमने मांदर पर थाप दी, लोगों ने कहा इसमें भूतों का वास है और जंगल हमारी विरासत, प्रवीण परिमल ने फर्क है पानीदार होने और पानी के करीब होने में, रश्मि शर्मा ने थकी थकी से धरती है, पेड़ों ने कम कर दिया है ऑक्सीजन देना, दमे के मरीज की तरह हांफ रहे हैं लोग, शहर छोड़ गांव की ओर भाग रहे हैं लोग. रणेंद्र कुमार ने कहां गये हैं बादल, हहा रही है
धूप का पथ कविता प्रस्तुत की. कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे डॉ अशोक प्रियदर्शी ने इस होली में गांव गया था, बहुत दिनों पर गांव, कंचे खेले कौड़ी खेली, फिर पीपल की छांव… गीत गाकर लोगों का मन मोह लिया. महादेव टोप्पो व रोमिस कंडुलना ने भी अपनी कविताएं पढ़ीं. इस अवसर पर विधानसभाध्यक्ष डॉ दिनेश उरांव, खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय सहित सैकड़ों लोगों ने कविताअों का आनंद लिया. कवि सम्मेलन के बाद कलाकारों द्वारा पर्यावरण पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया.
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