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धूम्रपान करनेवाले 60% लोगों का फेफड़ा होता है खराब
रेसेपिकॉन-2018 का आयोजन l दिल्ली मेट्रो हॉस्पिटल के डॉ दीपक तलवार ने कहा रांची : दिल्ली मेट्रो अस्पताल के डॉ दीपक तलवार ने कहा कि धूम्रपान करनेवाले लोगाें का फेफड़ा खराब होने की संभावना बढ़ जाती है. धूम्रपान करनेवाले 60 फीसदी लोगों का फेफड़ा खराब होता है, जिनको बाद में हार्ट व लंग्स कैंसर होनेे […]
रेसेपिकॉन-2018 का आयोजन l दिल्ली मेट्रो हॉस्पिटल के डॉ दीपक तलवार ने कहा
रांची : दिल्ली मेट्रो अस्पताल के डॉ दीपक तलवार ने कहा कि धूम्रपान करनेवाले लोगाें का फेफड़ा खराब होने की संभावना बढ़ जाती है.
धूम्रपान करनेवाले 60 फीसदी लोगों का फेफड़ा खराब होता है, जिनको बाद में हार्ट व लंग्स कैंसर होनेे की संभावना रहती है. ऐसे मरीज क्रोनिक ऑक्सट्रेक्टिव पल्मोनरी डिजिज (सीओपीडी) से पीड़ित हो जाते है. पीड़ित मरीजों में 50 फीसदी को अस्पताल में भर्ती करना पड़ता है. भर्ती 50 फीसदी मरीजों में 10 फीसदी की मौत हो जाती है. वह रविवार को होटल बीएनआर चाणक्या में रेसेपिकॉन-2018 कार्यक्रम में जानकारी दे रहे थे.
उन्होंने कहा कि फेफड़े की बीमारी की जांच के लिए स्पाइरोमीटर जांच की जाती है. यह सस्ती व आसान जांच है. जांच कराने के बाद अगर मरीज का फेफड़ा 70 फीसदी काम नहीं करता है, तो वह सीओपीडी से पीड़ित होता है. आजकल बेहतर दवाएं हैं, जिसका उपयोग कर फेफड़े की बीमारी को ठीक किया जा सकता है. पटना से डॉ एसके मधुकर ने बताया कि अल्कोहल व धूम्रपान के कारण अस्थमा की बीमारी होती है. ऐसे मरीज एआरडीएस से पीड़ित हो जाते हैं. डॉ श्यामल सरकार ने बताया कि धूम्रपान करने, चूल्हा पर खाने बनाने, खदानवाले क्षेत्र में रहनेवाले लोगों को अस्थमा होने की संभावना ज्यादा होती है. ऐसे लोगों को ज्यादा दिन तक खांसी होने पर डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए. कार्यक्रम में डॉ एसके पॉल, डॉ अरुण सरकार सहित राज्य के कई डॉक्टर मौजूद थे.
अस्थमा की दवाओं से ज्यादा कारगर है इन्हेलर, नहीं होता साइड इफेक्ट : डॉ राहुल
मेट्रो अस्पताल से आये डॉ राहुल कुमार ने बताया कि अस्थमा की दवा से ज्यादा कारगर इन्हेलर है. दवाओें के सेवन से साइड इफेक्ट होने की संभावना रहती है, जबकि इन्हेलर में ऐसा नहीं होता है.
ज्यादा समय से खांसी हो, सांस के साथ आवाज आने लगे और मौसम बदलते ही व्यक्ति संक्रमित हो जाये, तो यह अस्थमा के लक्षण हैं. इन्हेलर को लेकर समाज में काफी भ्रम है, जिसे दूर करने की जरूरत है. मरीजों को ऐसा लगता है कि इन्हेलर लेने पर यह जीवन भर लेना पड़ेगा, लेकिन यह आपको क्रोनिक होने से बचाता है.
लंबी बीमारी, बच्चे और बुजुर्गों के लिए निमोनिया का टीका ज्यादा जरूरी : डॉ हड्डा
एम्स के फेफड़ा रोग विशेषज्ञ डॉ विजय हड्डा ने बताया कि जिन लोगों को हार्ट, किडनी व लीवर की बीमारी ज्यादा दिनों तक रहे, उन्हें निमोनिया होने की संभावना रहती है. वहीं बच्चों व बुजुर्ग में भी निमोनिया होने की संभावना ज्यादा होती है. ऐसे लोगों का टीकाकरण करना चाहिए. उन्होंने बताया कि हमारा फेफड़ा स्पंज की तरह होता है, जिसमें हवाएं भरी होती है. निमोनिया होने पर यह कठोर होता है.
सूजन होने से बलगम बन जाता है. पूरा फेफड़ा संक्रमित हो जाये, तो सांस लेने में दिक्कत होती है. तेज बुखार है, तो यह निमोनिया का लक्षण हो सकता है. ऐसे में तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए. अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ती है.
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